लाख टके की बात

उर्मिल कुमार थपलियाल
लाख टके की बात कहूं मैं।
सुन लो कान लगाय।
जाट मरा तब जानिए
जब तेरहीं हुई जाय।
मेरा कहना ना माना तो
खिंच जाएगी खाल।
नादानों की दोस्ती
है जी का जंजाल।
टेढ़ी-मेढ़ी चाल दिखाकर
नाचे मेरे अंगना।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो
रिया हो चाहे कंगना।
इत लखन्वा नवाब
मौज से उड़ा रहे कनकव्वा
उत बच्चे के मुंह से रोटी
छीन ले गये कव्वा।
कालिदास की लेखा-जोखा
युग की थी आवाज।
जिस डाली पर बैठे
उसको काट रहे कविराज।
बड़ी मुश्किलों से मिलती है
जीवन की सौगात।
तुमरे मन की बात सुनें या
अपने तन की बात।

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