रॉ की महिला अधिकारी को हटाना नहीं था बदनीयती से प्रेरित- हाईकोर्ट

केस के तथ्यों और दस्तावेज की रोशनी में यह नहीं कहा जा सकता कि महिला अधिकारी की सेवा समाप्त करना बदनीयती से प्रेरित था। सरकार की मानें तो नियम 135 का प्रयोग करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। यह टिप्पणी हाईकोर्ट ने रॉ की पूर्व महिला अधिकारी की सेवा अनिवार्य रूप से समाप्त किए जाने को सही बताते हुए की है। रॉ की महिला अधिकारी को हटाना नहीं था बदनीयती से प्रेरित- हाईकोर्ट

पीएम आवास पर की थी खुदकुशी की कोशिश 
महिला पर अगस्त 2008 में प्रधानमंत्री आवास और कैट की दूसरी मंजिल से भी कूदने की कोशिश तथा सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में कपड़े उतारने की कोशिश का भी आरोप था। इससे पहले उसे 2007 में अपने दो वरिष्ठ अधिकारियों पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। इनमें से एक मामला उसने वापस ले लिया था। इसके अलावा इस महिला पर पत्रकारों को अपने पद या विभाग की जानकारी भी साझा करने का आरोप था। 

खुफिया सेवा के नियम 135 का हुआ था प्रयोग  
प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस महिला अधिकारी को नियम 135 का प्रयोग करते हुए 18 दिसंबर 2009 को सेवा से हटा दिया था। महिला अधिकारी पर खुफिया सेवा के नियमों में प्रतिबंधित कार्य करने का आरोप था। इसे पूर्व महिला अधिकारी ने केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट (कैट) में चुनौती दी थी। कैट ने उसे दोबारा सेवा में बहाल करने का आदेश दिया था। केंद्रीय सरकार ने इस आदेश को 2010 में हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 

अदालत ने महिला अधिकारी से दिखाई सहानुभूति  

न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट व न्यायमूर्ति संजीव सचेदवा ने अपने फैसले में कहा केस हालात व साक्ष्यों को तोलना होगा। महिला अधिकारी द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर कपड़े उतारने की कोशिश व खुदकुशी के पीछे केंद्र सरकार द्वारा उसकी एक अन्य अधिकारी के खिलाफ शिकायत का निबटारा न किया जाना मुख्य कारण रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विभागों में काम करने वाले अधिकारी भारी दबाव में काम करते हैं फिर उनसे ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है। वहीं दूसरी ओर जायज व सही शिकायतों का निबटारा न किए जाने से ऐसे मामले व व्यवहार सामने आते हैं। ऐसे हालात में पूर्व महिला को राहत दी जानी चाहिए। 

सेवा व वित्तीय लाभ देने का निर्देश  
हालांकि हाईकोर्ट ने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रिक्रूटमेंट केडर एंड सर्विसेज) रूल्स 1975 के नियम 135 को संवैधानिक रूप से सही ठहराते हुए पूर्व महिला अधिकारी सेवा अनिवार्य रूप से समाप्त किए जाने को भी सही ठहराया। वहीं दूसरी ओर पूर्व महिला अधिकारी को राहत देते हुए वित्तीय रूप से लाभ देने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने महिला अधिकारी की सेवा दिसंबर 2009 के बजाय दिसंबर 2012 से प्रभावी माना जाए। इस हिसाब से उसे मिल रही अस्थायी पेंशन व उसे मिलने वाली वास्तविक पेंशन के अंतर की राशि का भुगतान किया जाए। उसकी पेंशन निर्धारित करने की तिथि उसकी सामान्य सेवानिवृत्त का वर्ष 2023 मानी जाए क्योंकि उसकी जन्मतिथि 1963 है। इस लिहाज से उसे सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ भी दिया जाए।  

पदोन्नति के हिसाब से दिए जाए लाभ 
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि महिला अधिकारी को संयुक्त सचिव पद पर पदोन्नति करने पर विचार किया। इसके उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) पर विचार किया जाए। अगर यह पदोन्नति दी जाती है तो उसकी पेंशन का नए वेतनमान के हिसाब से निर्धारण किया जाए। उसे नियम 135 के मुताबिक एक साल की अवधि का पुनर्वास अनुदान भी दिया जाए। यह सारे निर्देश आठ सप्ताह के भीतर पूरे किए जाए। 

Back to top button