रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर SC में आज नहीं हो सकी सुनवाई..

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई शुरू नहीं हो सकी. 6 अगस्त से शुरू हुई इस मामले की रोजाना सुनवाई का आज आठवां दिन था. लेकिन जस्टिस एस. ए. बोबड़े सोमवार को अनुपस्थित रहे, इसी वजह से मामले की सुनवाई नहीं हो सकी. अब ये मामला मंगलवार को ही अदालत में सुना जाएगा.

अभी तक अदालत में निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान के वकील अपनी दलीलें पेश कर चुके हैं. अदालत की ओर से कई बार सबूत मांगे गए, तो वहीं वकीलों ने भी पौराणिक-ऐतिहासिक कई तथ्यों को सामने रखा. सोमवार को रामलला के वकील सीएस. वैद्यनाथन को अपनी दलीलों को आगे रखना था, लेकिन अब ये सुनवाई मंगलवार को जारी रहेगी.

रामलला के वकील ने अदालत में क्या कहा…

शुक्रवार को रामलला विराजमान के वकील सीएस. वैद्यनाथन ने अपनी दलीलें पेश कीं और कई उदाहरण अदालत के सामने रखे. वह लगातार अपनी दलीलों में पुरातात्विक साक्ष्य और मौखिक सबूतों का जिक्र कर रहे हैं.

उनकी तरफ से कहा गया है कि रामजन्मभूमि स्थान पर बाबरी मस्जिद से पहले मंदिर था और इसके कई साक्ष्य भी थे. उन्होंने इसके लिए कुछ नक्शे अदालत में दिखाए, कुछ स्तंभों का जिक्र किया और स्मृतियों के बारे में भी बताया. रामलला के वकील का कहना था कि जिस तरह के देवी-देवताओं की तस्वीरों वाले स्तंभ वहां मिले थे, ऐसे में वहां मस्जिद होने का कोई सवाल नहीं होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने पूछे कई तरह के सवाल…

सुनवाई के दौरान अदालत की तरफ से भी कई तरह के सवाल दागे गए. सुप्रीम कोर्ट ने रामलला के वकील से पूछा कि क्या आप साबित कर सकते हैं कि बाबरी मस्जिद के ऊपर ही मंदिर बना था या फिर उस मंदिर को गिराने के आदेश बाबर या उसके सैनिकों द्वारा ही दिए गए थे. इसके जवाब में रामलला के वकील ने कुछ पौराणिक तथ्यों को पेश किया.

बता दें कि सोमवार को इस सुनवाई का आठवां दिन है. शुरुआती तीन दिनों में निर्मोही अखाड़ा की तरफ से अदालत में अपनी दलीलों को पेश किया गया, उसके बाद से ही रामलला विराजमान के वकील अपनी बात रख रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आदेश दिया गया है कि कोई भी वकील जितना समय लेना चाहे वो ले सकता है, समय की कोई सीमा नहीं है.

गौरतलब है कि इस विवाद की सुनवाई CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ कर रही है. इसमें जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं.

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