राजनीति में प्रियंका गांधी का आगमन, क्या वह तोड़ पाएंगी मोदी-योगी का तिलिस्म?
प्रियंका गांधी वाड्रा के रूप में गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी के एक और सदस्य का बुधवार को सक्रिय राजनीति में पदार्पण हो गया है। अब तक खुद को अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्र तक सीमित रखने वाली प्रियंका के सामने सपा-बसपा गठबंधन और मोदी-योगी की जोड़ी का करिश्मा तोड़ने की बड़ी चुनौती है। ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला बनते रहे पश्चिमी यूपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा।
कांग्रेस ने प्रियंका को राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही पूर्वांचल का प्रभारी बनाया है। सिंधिया को पश्चिमी यूपी की जिम्मेदारी दी है। सपा-बसपा गठबंधन में जगह न मिलने पर कांग्रेस ने यूपी का रण जीतने के लिए प्रियंका को तुरुप के पत्ते के रूप में इस्तेमाल किया है। युवा नेताओं को कमान सौंपने का कितना चुनावी फायदा मिलेगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक लाभ मिलने की संभावना से कोई इनकार नहीं कर रहा।
कांग्रेस को पूर्वी यूपी के जटिल जातीय समीकरणों को साधने के साथ ही पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण की भाजपा की रणनीति की काट ढूंढनी पड़ेगी। इसके लिए प्रियंका को न केवल पूर्वांचल में सक्रियता दिखानी है, वरन राजनीतिक कौशल को भी साबित करना होगा।