यहां ठहरे 17 विदेशी पर्यटक इन दिनों उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन को बनाने की ले रहे ट्रेनिंग….

उत्तराखंड घूमने वाले विदेशी पर्यटकों को पहाड़ की वादियां ही नहीं, यहां की संस्कृति, रहन-सहन और खानपान भी अपनी ओर खींचता है। इसकी बानगी सीमांत चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर के पास स्थित पीच एंड पीयर होम स्टे में देखी जा सकती है। यहां ठहरे 17 विदेशी पर्यटक इन दिनों उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन को बनाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं।

मूलरूप से चमोली जिले के पोखरी विकासखंड स्थित गुनियाला गांव निवासी पूनम रावत जर्मनी की भी नागरिक हैं, लेकिन उनका ज्यादातर समय विदेशी पर्यटकों को उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में लाकर उन्हें यहां की दिनचर्या, खेतीबाड़ी और रहन-सहन से परिचित कराने में गुजरता है। इसके पीछे उनका ध्येय होम स्टे के माध्यम से क्षेत्र के लोगों की आर्थिकी को संवारना है। उनका गोपेश्वर से तीन किमी दूर घिंघराण मोटर मार्ग पर रौली में होम स्टे है। जिसे आउटलुक ट्रैवलर के सर्वे में भारत के टॉप पांच होम स्टे का खिताब भी मिल चुका है। इन दिनों पूनम के होम स्टे में विदेशी पर्यटकों का 17-सदस्यीय दल ठहरा हुआ है, जो पांच अक्टूबर को यहां आया था।

दल में सात पुरुष और दस महिलाएं शामिल हैं। ये पर्यटक स्थानीय पर्यटन स्थलों की सैर करने के साथ ही पहाड़ी व्यंजन बनाने का प्रशिक्षण भी ले रहे हैं। इन्हें पहाड़ी भोजन से विशेष लगाव है। इनमें से भारतीय मूल के पर्यटक कार्तिक स्वामी तो मां सती अनुसूया, बदरीनाथ, माणा गांव, वसुधारा और चरण पादुका समेत आसपास के तमाम पर्यटन स्थलों की भी सैर कर चुके हैं।

पीचिज एंड पीयर होम स्टे की प्रबंधक कविता अग्रवाल बताती हैं कि इन विदेशी पर्यटकों को पहाड़ी ढलानों पर बसे गांव बहुत भा रहे हैं। उन्हें यहां की कृषि उपज और पारंपरिक व्यंजनों से भी खास लगाव है। लिहाजा होम स्टे में उनके लिए स्थानीय व्यंजन चैंसू, लाल चावल, फाणू, झंगोरे की खीर, कापली (काफली), मंडुवे के मोमो और रोटी आदि व्यंजनों को बनाने की क्लास चलाई जा रही है।

वतन लौटकर परिजनों को चखाएंगे पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद

यूरोप की 51-वर्षीय डाकमा पहाड़ी जैविक उत्पादों के साथ इनसे बनाए जाने वाले व्यंजनों की दीवानी हैं। वह कहती हैं कि मसालों के बेहद सीमित प्रयोग के बावजूद पहाड़ी भोजन का स्वाद लाजवाब है। जर्मनी निवासी जेन्स वाल्डा गेसेम बताते हैं कि जो सुखद अनुभूति उत्तराखंड के चमोली जिले में होती है, उसका कोई जवाब नहीं। अपने वतन लौटकर परिजनों को भी पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद चखाएंगे।

विदेशी रसोई में पहाड़ी व्यंजनों का जाना गौरव 

तुलसी रावत बताती हैं कि होम स्टे में भोजन बनाने वाले चंदू शाह विदेशियों को पहाड़ी भोजन बनाने की ट्रेनिंग देकर बेहद खुश हैं। हमारे पारंपरिक व्यंजनों का विदेशियों की रसोई में जाना पहाड़ के लिए गौरव की बात है।

Back to top button