तो इसलिए यहाँ दादी-पोते और देवर-भाभी की आपस में की जाती है शादी, वजह हैरान कर देने वाली..

भारत में आज भी पति की मौत के बाद जहां कई हिस्सों में विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं है, वहीं मध्यप्रदेश में एक ऐसा समुदाय भी है जहां की महिलाएं पति की मौत के बाद भी कभी विधवा नहीं होती. इसके लिए चाहे दादी को अपने पोते से और भाभी को अपने देवर से ही शादी क्यों न करनी पड़े. मध्यप्रदेश के मंडला जिले के बेहंगा में रहने वाले गोंड समुदाय में किसी विधवा को ढूंढ पाना लगभग नामुमकिन है. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि इस समुदाय में किसी महिला के पति की मौत हो जाती है तो उसकी शादी घर के अगले कुंवारे लड़के से कर दी जाती है.

मीडियाके  मुताबिक, ऐसे में यदि कोई महिला दोबारा शादी करने से इनकार कर दे तो उसे विशेष तौर पर तैयार किए गए चांदी के कड़े दिए जाते हैं, जिसके बाद उसे वापस शादीशुदा का दर्जा मिल जाता है और ये कड़े जिसने महिला को सौंपे हैं वो ही फिर उसकी पूरी जिम्मेदारी उठाता है. इस समाज के 42 वर्षीय पतिराम वारखेड़े के दादा के गुजर जाने के नौ दिन बाद ही ‘नाति पातो’ परंपरा का पालन करते हुए उसकी शादी उसकी दादी से कर दी गई थी. इसके बाद से वो परिवार में होने वाले सभी कार्यक्रमों में बतौर पति-पत्नी ही शामिल होते थे.

इतना ही नहीं इस तरह की शादी में दादा की मौत के बाद दादी से शादी करने पर पोते को ही घर का मुखिया माना जाता है, फिर चाहे उसके पिता जिंदा हों या नहीं. हालांकि, परंपरा के अनुसार भले ही नाबालिग को अपनी दादी से शादी करनी पड़े, लेकिन उसे बालिग होने पर दूसरी शादी करने की भी छूट रहती है, पर जब तक पहली पत्नी बन चुकी दादी की मौत नहीं हो जाती तब तक उसकी नई पत्नी को दूसरी पत्नी का दर्जा ही प्राप्त रहता है.

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इस तरह की शादी में उम्र में बड़े अंतर के कारण किसी प्रकार का शारीरिक संबंध नहीं होता है. लेकिन यदि होता भी है तो उसे भी गोंड समाज में गलत नहीं माना जाता.गोंड समाज की ही सुंदरो बाई (75) की शादी उनसे उम्र में दस साल छोटे देवर से कर दी गई थी. सुंदरों ने बताया कि शादी के दो साल बाद ही उनके पति की मौत हो गई थी, जिसके बाद परंपरा के मुताबिक उनकी शादी घर में मौजूद कुंवारे देवर से की जानी थी.

इसके लिए उनका देवर तैयार नहीं हुआ तो घर के बुजुर्गों ने उनके मृत पति के श्राद्ध में खाना खाने से मना कर दिया था. जिसके बाद देवर मान गया और उसने ‘देवर पातो’ रीत को निभाते हुए सुंदरो बाई से शादी कर ली और आज उनका वैवाहिक जीवन अच्छा चल रहा है. समाज के लोगों की मानें तो उनके यहां सदियों से चली आ रही इस परंपरा को सिर्फ गांव में रह रहा समुदाय ही नहीं बल्कि वो युवक भी निभाते हैं जो बाहर जाकर बस गए हैं. आदिवासी नेता गुलजार सिंह ने बताया कि उनके यहां के कई युवक बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं, लेकिन फिर भी वो इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं.

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