मौत का सौदागर, गबन का खिलाड़ी, बीएस तिवारी

क्या बीएस तिवारी के आगे योगी, श्रीकांत शर्मा की हर कवायद हारी ?

  • हरदुआगंज में टर्बाइन मेंटिनेंस के लिए 15 हजार के बजाय 16 लाख दिलाये.
  • गाजियाबाद की एक ही जगह की तीन कंपनियों से कराई अल्प निविदा.
  • 10 लाख से उपर के काम को ई-टेंडर के नियम को ठेंगा दिखा, कराया अल्प निविदा.
  • एकल निविदा की स्थिति में टेंडर की फाईल लखनऊ न भेजना पड़े इसके लिए अयोग्य कंपनी को बनाया योग्य.
  • टेंडर के कार्य के लिए कीमत निर्धारण के फार्मूले को भी किया नजरंदाज.
  • आर्बिट्रेरी (KUTUA) तरीके से टर्बाइन मेंटिनेंस के काम के लिए 16 लाख लागत किया निर्धारित.

लखनऊ : समाजवादी सरकार में अपने जुगाड़ और उपर तक पहुँच रखकर कारनामा करने वाला बीएस तिवारी वर्तमान की पारदर्शिता की वकालत करने वाली भाजपा सरकार में भी मजबूती से डटा हुआ है और अपने खेल को अंजाम दे रहा है. अफसरनामा में खबर चलने के बाद विभाग के बड़े अफसरों ने मामले की लीपापोती करते हुए आई एल पलक्कड़ जैसी दागी कंपनी से किनारा भले ही कर लिया हो लेकिन दागी व भ्रष्ट बीएस तिवारी पर हाथ डालने में विभाग को पसीने आ रहे हैं.

अलीगढ के हरदुआगंज पावर स्टेशन के तत्कालीन परियोजना प्रमुख बीएस तिवारी की जिस घोर लापरवाही और कमीशनखोरी का परिणाम टर्बाइन मेंटिनेंस के लिए लगाए गए 5 मजदूरों की मौत के रूप में सामने आया था. जिसके लिए तब प्रमुख सचिव श्रम अनीता भटनागर ने उस समय चेयरमैन रहे संजय अग्रवाल को परियोजना प्रमुख बीएस तिवारी पर केश चलाने की अनुमति मांगी थी, जांच में उन मजदूरों के मौत के कारणों की वजह भ्रष्टाचार व गबन बताया गया था. हरदुआगंज में भ्रष्टाचार का एक खुलासा आरटीआई के माध्यम से मिली. जानकारी के अनुसार तत्कालीन परियोजना प्रबंधक बीएस तिवारी ने हरदुआगंज स्टेशन में टरबाइन मेंटेनेंस के लिए अपनी चहेती कंपनियों को मेंटेनेंस का काम देने के लिए टेंडर में खेल किया और अयोग्य कंपनियों को भी योग्य ठहराते हुए अपने स्तर से 15 हजार के काम को 16 लाख में कराया.

आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा प्रबंध निदेशक को दिया गया शिकायती पत्र –

बीएस तिवारी ने टेंडर को पूल किया जा सके इसके लिए टरबाईन मेंटिनेंस के लिए ई टेंडर न करके अल्प निविदा कराया ताकि अपनी मनपसंद कंपनियों को अपने मनपसंद रेट पर टेंडर दिया जा सके. इस टेंडर की प्रक्रिया में टेंडर के मूल्य के निर्धारण का जो फार्मूला निर्धारित किया गया है उसका भी अनुपालन नहीं किया गया और आर्बिट्रेरी (KUTUA) तरीके से टर्बाइन मेंटिनेंस के काम के लिए 16 लाख लागत निर्धारित करके अल्प निविदा (लिफाफा) मांगा लिया. इसके अलावा प्रस्तावित एस्टीमेट पर वित्त नियंत्रक का साईन जरूरी होता है उसको भी नहीं कराया बीएस तिवारी ने क्यूंकि उसको डर था कि कहीं वित्त नियंत्रक इसपर कोई आपत्ति न लगा दे और पूरा मामला लखनऊ स्थित मुख्यालय भेजना पड़े.

प्रस्तावित स्टीमेट जिसपर वित्त नियंत्रक के साईन नहीं हैं –

यही नहीं 10 लाख से उपर के काम को ई टेंडरिंग के जरिये दिए जाने के नियम को तोड़ा और अल्प निविदा यानी फिजिकल टेंडर निकालने से पहले अपने से उपर के अधिकारी से अनुमोदन लेना पड़ता है और इसके लिए फाईल को बीएस तिवारी को लखनऊ स्थित मुख्यालय भेजना पड़ता जिससे उसके इस खेल को उजागर होने का ख़तरा था.

इतना ही नहीं तब के परियोजना प्रमुख और अब जुगाड़ के बल से निदेशक उत्पादन निगम की कुर्सी पर बैठे गबन के खिलाड़ी बीएस तिवारी के इस अल्पकालीन निविदा में भाग लेने वाली कुल तीन कंपनियां मेसर्स प्रेस टूल गाजियबाद, रोप इंडस्ट्रीज गाजियाबाद व मेसर्स शेप मशीन एक ही जगह गाजियाबाद की ही रहीं. आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार अल्प निविदा में भाग लेने वाली इन तीनों कंपनियों में केवल एक मेसर्स प्रेस टूल ही योग्यता पूरी कर सकती थी बाकी दोनों का अनुभव प्रमाण पत्र सप्लाई का लगा था. इन दोनों कंपनियों ने अपने अनुभव प्रमाण पत्र के लिए बीएचईएल (BHEL) को सप्लाई की गई मटेरियल की स्लिप लगाई, जब कि काम मेंटेनेंस का था.

बीएस तिवारी की चहेती कंपनी ने लगाये सप्लाई का अनुभव प्रमाण पत्र जबकि काम मेंटिनेंस का…फिर भी पास …

टर्बाइन रिपेयरिंग का अनुभव न होने के चलते नियमानुसार यह दोनों अयोग्य हो रही थीं, इस हिसाब से अगर केवल प्रेस टूल को ही योग्य दिखा दिया जाता तो यह सिंगल टेंडर हो जाता और फिर इसको फाईनल करने का अधिकार लखनऊ स्थित मुख्यालय को होता. फाईल को लखनऊ न भेजना पड़े इसलिए गबन के खिलाड़ी बीएस तिवारी ने इससे भी बचने के लिए उन दो अयोग्य कंपनियों में से एक को योग्य करार दिया जबकि दोनों की अयोग्यता का आधार एक ही था. इस तरह समान कारणों से अयोग्य दोनों कंपनियों में से एक मेसर्स शेप मशीन, गाजियाबाद को योग्य करा दिया ताकि फाईल को लखनऊ अप्रूवल के लिए न भेजना पड़े.

अब हम बताते हैं कि बीएस तिवारी ने नियमों को ताक पर रखकर यह सब खेल क्यूँ किया. बीएस तिवारी ने 15000 के खर्च को 1600000 बना विभाग को कैसे चपत लगाई. बताते चलें कि इस पावर स्टेशन को टर्बाइन मेंटिनेंस के लिए 10 दिन के लिए ही बंद किया गया. और हरदुआगंज में बीएस तिवारी ने इसी काम के लिए तब 5 मजदूर लगाये थे जोकि हादसे का शिकार हो गए थे और जांच में बीएस तिवारी आरोपी पाए गए थे. दिहाड़ी पर लगाये गये मजदूरों की इंट्री पावर स्टेशन के गेट पास रजिस्टर में दर्ज है. इस तरह उस समय यदि 1 मजदूर की दिहाड़ी 300 होती तो दस दिन में कुल 50 मजदूर काम करते. इस हिसाब से उनकी मजदूरी केवल 15000 होती, जबकि बीएस तिवारी ने इसके लिए नियम क़ानून की धज्जियां उड़ाते हुए विभाग से 1600000 रुपऐ अपनी चहेती कम्पनी को दिलाये.

जैसा की मैंने अपने बीएस तिवारी के पिछले एपिसोड में कहा था की तिवारी के इस कारनामें की फाइल प्रबंध निदेशक अमित गुप्ता के टेबल पर है, तो बताते चलें कि आरटीआई से प्राप्त जानकारी के आधार पर समस्त कागजों के साथ पूरी 150 पन्नों की पूरी फाईल प्रबंध निदेशक अमित गुप्ता को शिकायतकर्ता द्वारा भेजी जा चुकी है, और यह समस्त कागज वहां प्राप्त भी हो चुके हैं. लेकिन सूत्रों के मुताबिक़ प्रबंध निदेशक अमित गुप्ता के द्वारा इस शिकायत का अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया है. प्रबंध निदेशक कि यह उदासीनता दर्शाती हैं कि पिछली सरकार की उच्चाधिकारियों की तरह इस सरकार के उच्चाधिकारीयों पर भी बीएस तिवारी का जादू चल गया है और वो इसको बचाने में लगे हैं.

 

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