अब मोरारी बापू के जरिए गुजरात में पटेलों की नाराजगी खत्म करेगी भाजपा!
इन कोशिशों के तहत ही मोरारी बापू 2 से 10 दिसंबर तक गुजरात के सूरत में जनता को राम कथा का रसपान कराएंगे। यहां विधानसभा चुनाव के लिए मतदान पहले चरण के अंर्तगत 9 दिसंबर को होने हैं, लेकिन बापू के राम कथा आयोजन से जुड़े रणछोड़ भाई का कहना है कि कथा को राजनीति से जोड़ना वाजिब नहीं है।
उन्होंने कहा कि बापू की कथा में कोई राजनीति न हो इसलिए किसी नेता अथवा राजनीतिक दल के नुमाइंदों को नहीं बुलाया गया है। इसमें पूरी तरह से सामान्य जनता कथा सुनने के मकसद से आएगी। कथा का उद्देश्य सैन्य शहीदों के परिवारवालों की मदद के लिए धन जुटाना है और यह कवायद पहले से होती रही है, मगर इस दफे की कवायद बड़ी है।
क्या है आयोजन
सूरत में डायमंड के व्यापार से जुड़े रणछोड़ भाई को संघ से जुड़ा माना जाता है, इसलिए 2 दिसंबर से शुरू हो रही मोरारी बापू की राम कथा को परदे के पीछे से संघ की कवायद माना जा रहा है। इस दफे के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए सबसे ज्यादा चुनौती सूरत में दिख रही है।
यहां पार्टी को दोहरी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। एक तो आरक्षण को लेकर पटेल नाराज हैं तो दूसरी ओर जीएसटी की वजह से टैक्सटाइल और हीरा व्यापारी भाजपा से खफा हैं। दोनों ही भाजपा के परंपरागत मतदाता रहे हैं। इनकी नाराजगी भाजपा को भारी न पड़े इसलिए भगवा परिवार की ओर से तमाम कोशिशें जारी हैं।
मोरारी बापू की कथा को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है, मगर आयोजन समिति से जुड़े रणछोड़ भाई का कहना है कि राम कथा के लिए मोरारी बापू का समय ढाई साल पहले से ही लिया गया है। तब किसको पता था कि चुनाव की तिथियां इसी दौरान पड़ेंगी।
अमर उजाला से बातचीत में उन्होंने कहा कि यदि पता होता कि राम कथा के राजनीतिक मायने निकाले जाएंगे तो वे आयोजन ही नहीं रखते। अथवा इसकी तिथि आगे पीछे कर लेते।
इसके तहत हर साल राशि एकत्रित कर गुजरात के सैन्य शहीदों के परिवारवालों को आर्थिक मदद दी जाती थी, लेकिन दिल में यह बात जरूर चुभती थी कि जवान देश की हिफाजत के लिए शहीद होते थे, इसलिए देश के जवानों के परिवारों की मदद होनी चाहिए।
इस सोच के साथ ही इस दफे वीर जवान मारूती नाम से संस्था बनाई गई। बतौर रणछोड़ भाई आयोजन का खर्च एक स्थानीय बिल्डर ने लिया है, इसलिए बापू की कथा से जो भी राशि एकत्रित होगी, उसे सेना के शहीद जवानों के परिवारों के बीच बांटा जाएगा।
करीब 200 करोड़ की राशि इस कथा के जरिए जुटने की उम्मीद है। रणछोड़ बताते हैं कि परमवीर चक्र से सम्मानितों और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले महाराणा प्रताप, झांसी की रानी, भगत सिंह और सुखदेव सरीखे वीर सपूतों के परिवारवालों को 2 से 10 दिसंबर के बीच राम कथा के दौरान आयोजन में बुलाकर सम्मानित किया जाएगा। राम कथा का पूरे सूरत में प्रचार किया गया है। करीब 1.5 से 2 लाख लोग रोजाना राम कथा सुनने के लिए जुटेंगे।
क्यों हो सकता है विवाद
मोरारी बापू की राम कथा की नीयत के बारे में आयोजकों की दलील चाहे जो भी हो, मगर बापू इन दिनों सियासी चर्चाओं के केंद्र में हैं। धर्म के जरिए भाजपा ने इस दफे जो गुजरात में चुनाव फतह करने का व्यूह रचा है, कहीं न कहीं बापू भी उसमें सियासी औजार बन गए हैं।
बीते दिनों भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के पक्ष में जिन धर्मगुरुओं के वीडियो को जारी हुए, उनमें मोरारी बापू का भी वीडियो था, इसलिए आशंका जताई जा रही है कि अपने राम कथा के जरिए बापू सूरत के नाराज व्यापारियों और पटेलों को भगवा राह पर चलने को कह सकते हैं। वैसे भी गुजरात में मोरारी बापू के भक्तों की तादाद काफी ज्यादा है।
अक्षरधाम मंदिर के स्वामीनारायण संप्रदाय के आयोजन में पहुंचकर पीएम मोदी ने वाहवाही बटोरी, तो उसके बाद भाजपा ने अलग-अलग दिन रमेश भाई ओझा, मोरारी बापू, वरनीस्वरूप दासजी, महंत स्वामीनारायण और नित्यस्वरूप दास के वीडियो अपने फेसबुक पेज पर जारी किए।
इनमें इन कथाकारों ने पीएम मोदी के कामकाज की तारीफ की है। कुछ ने तो सीधे भाजपा को जिताने की अपील भी की है। इसे देखते हुए ही सूरत में होने वाली मोरारी बापू की राम कथा को चुनाव पर धर्म और राष्ट्रवाद का रंग चढ़ाने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। आयोजन से सैन्य परिवारों को जोड़ना सीधे राष्ट्रवाद का उभार ही कहा जाएगा।