मेडिकल कोडिंग में करियर बनाने के लिए अपनाये ये टिप्स

लाइफ साइंस के छात्रों के लिए मेडिकल कोडिंग एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि मडेकिल कोडिंग है क्या। असल में मेडिकल कोडिंग का मतलब है मरीज की रिपोर्ट, इलाज पता लगाने की प्रक्रिया, चिकित्सा सेवाओं और उपकरणों को एक खास तरह के कोड में लिखना। मेडिकल बिलिंग के लिए यह काफी अहम होता है। मेडिकल सर्विस प्रवाइड करने वाले को इसी के आधार पर रीइंबर्समेंट मिलता है।

मेडिकल कोडिंग के पेशेवरों की बढ़ती मांग
हेल्थकेयर आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री का बिजनस तेजी से बढ़ रहा है। इसके साथ ही मेडिकल कोडिंग के पेशेवरों की मांग भी बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार , हेल्थकेयर आउटसोर्सिंग के मामले में अमेरिका के बाद भारत ही दूसरे सबसे बड़े स्थान के तौर पर उभरा है। इससे आउटसोर्सिंग सेक्टर को मेडिकल कोडिंग और बिलिंग में एक्सपर्ट लोगों को हायर करने की मांग बढ़ रही है।

कोर्स
वैसे तो मेडिकल कोडिंग में करियर बनाने के लिए कोई भी डिग्री चलेगी लेकिन लाइफ साइंस में जिनलोगों के पास डिग्री है, उनको प्राथमिकता दी जाती है। मानव शरीर रचना विज्ञान, मानव शरीर क्रिय वज्ञान और चिकित्सीय शब्दावली की मजबूत जानकारी रखने वाले को मेडिकल कोडिंग स्पेशलिस्ट बनने में ज्यादा आसानी होती है।

सर्टिफिकेट कोर्स
मेडिकल कोडिंग के लिए सर्टिफिकेट प्रोग्राम की जरूरत तो नहीं है लेकिन इससे नौकरी मिलने की संभावना बढ़ जाती है। किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से मेडिकल कोडिंग में सर्टिफिकेट प्राप्त कैंडिडेट को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि वे सही कोड की पहचान करने और उसको लागू करने में ज्यादा सक्षम होते हैं। कई संस्थान हैं जो मेडिकल कोडिंग में ट्रेनिंग और सर्टिफिकेट मुहैया कराते हैं।

फीस स्ट्रक्चर
आमतौर पर इसकी फीस 20 हजार रुपये से लेकर 30 हजार रुपये तक होती है। फीस एक बार में ही देनी होती है। अलग-अलग संस्थानों की फीस अलग-अलग होती है। ऐडमिशन लेने से पहले आपको पता कर लेना चाहिए। जिस संस्थान में कम फीस हो और प्रतिभाशाली छात्रों के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप प्रोग्राम की व्यवस्था हो, वहां दाखिला लेना चाहिए।

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