मुख्यमंत्रियों की उप-समिति, कृषि जिंसों पर आवश्यक वस्तु अधिनियम के खिलाफ है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर गठित मुख्यमंत्रियों की उप-समिति ने गुरुवार को अपनी पहली बैठक में कृषि जिंसों पर आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) को गैरवाजिब करार दिया है। उप-समिति के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि इसे तत्काल हटाने की जरूरत है। बैठक के बाद उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्रियों की राय में गैर-कृषि उत्पादों पर भले ही यह कानून लागू हो, लेकिन कृषि जिंसों पर इसकी जरूरत नहीं है।

फड़नवीस ने यह भी कहा कि कृषि उपज मंडियों पर सीमित लोगों का वर्चस्व चिंता का विषय है। उप-समिति की अगली बैठक सात अगस्त को मुंबई में होगी, जिनमें पहली बैठक में चिन्हित मुद्दों पर विचार किया जाएगा। उप-समिति का मानना था कि जिंस बाजार अब वैश्विक हो चुका है, जिसके मद्देनजर नीतियां बनानी होंगी। इनमें कृषि व वाणिज्य मंत्रालयों को मिलकर काम करना होगा। बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी व अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू मौजूद थे।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ इस बैठक में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा सत्र चलने की वजह से इसमें शामिल नहीं हो सके। पहली बैठक में शामिल सभी मुख्यमंत्रियों की राय थी कि कृषि क्षेत्र में सुधार की सख्त जरूरत है, जिसमें राज्यों का दायित्व ज्यादा है। कृषि को घाटे से उबारने और नई दिशा देने के लिए तत्काल एक नई नीति चाहिए।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के बारे में फड़नवीस ने चर्चा करते हुए कहा कि इस पर गंभीरता की जरूरत है। बैठक में कृषि क्षेत्र में सुधार के साथ-साथ विकास के लिए निवेश बढ़ाने की आवश्यकता पर खासतौर पर बल दिया गया। फड़नवीस ने कहा कि 1991 के बाद गैर-कृषि क्षेत्र में आर्थिक सुधार तो हुआ, लेकिन कृषि क्षेत्र लगातार पिछड़ता गया। खेतिहर मजदूरों और औद्योगिक मजदूरों की मजदूरी में फर्क बढ़ता गया। सब्सिडी अनाज की खेती पर ज्यादा दी गई, लेकिन विकास दर बढ़ाने में मत्स्य क्षेत्र की भागीदारी ज्यादा है।

मंडी कानून पर फोड़ा ठीकरा

फड़नवीस ने कहा कि कृषि उपज मंडियों की हालत राज्यों के बनाए मंडी कानून से ही खराब हो गई है। मंडियों पर सीमित लोगों का एकाधिकार हो गया। उपज के भाव मुट्ठीभर लोग मिलकर तय करने लगे। ऐसे में किसानों को लाभ मिलना मुश्किल ही था। ई-नाम की शुरुआत हुई, मगर इसका विस्तार नहीं हो पाया, जिससे इसका पूरा उपयोग नहीं हो सका। उप-समिति इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी।

निवेश तत्काल बढ़ाने की जरूरत

उप-समिति का मानना था कि कृषि क्षेत्र में निवेश नहीं बढ़ने से हालात नाजुक हो रहे हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। गैर-कृषि क्षेत्र में निवेश की रफ्तार 36 फीसद है, जबकि कृषि क्षेत्र में वास्तविक निवेश की दर महज तीन फीसद है। इसमें निजी क्षेत्र को शामिल करने की जरूरत है। इसके लिए कृषि क्षेत्र के कानून में सुधार किए जाएंगे। फड़नवीस ने कहा कि जिन राज्यों में ठेके पर खेती का प्रावधान है, वहां निवेश आ रहा है।

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