मध्यप्रदेश में 29 वर्षों से नक्सलियों की पनाहगाह बने बालाघाट में बढ़ रही है इनकी हलचल…

विभाजन के बाद अपना एक हिस्सा और नक्सली समस्या छत्तीसगढ़ को दे चुके मध्यप्रदेश में नक्सलियों की आहट अब तेज होती दिखाई दे रही है। बालाघाट सहित मप्र के कुछ जिलों को सुरक्षित मानते हुए यहां बढ़ रही नक्सली घुसपैठ पुलिस- प्रशासन की चिंता बढ़ा रही है। हाल ही में 14-14 लाख रुपए के दो इनामी नक्सलियों की मुठभेड़ में मौत ने मध्यप्रदेश के सीमावर्ती जिले बालाघाट में नक्सली उपस्थिति की गंभीरता को बढ़ा दिया है। यह चिंता इसलिए भी वाजिब है क्योंकि संयुक्त मप्र में नक्सली इसी जिले में एक मंत्री लिखिराम कांवरे की हत्या कर चुके हैं। वर्ष 1990 में यहां नक्सलियों की आवाजाही शुरू हुई और 29 सालों में नक्सलियों ने बालाघाट को अपनी पनाहगाह बनाए रखा।

तीन राज्यों का सीमावर्ती इलाका होने से बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, अनूपपुर और सिंगरौली जिले नक्सलियों के लिए न केवल बड़ा गलियारा बने बल्कि इनका घना जंगल नक्सलियों के लिए मुफीद भी साबित हुआ है। हालांकि बालाघाट के अलावा इन जिलों में कभी कोई बड़ी नक्सली वारदात सामने नहीं आई। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बालाघाट में नक्सलियों ने अलग-अलग स्थानों में वारदात कर 29 सालों में 87 लोगों को मौत के घाट उतारा है।

वहीं पुलिस मुठभेड़ में अब तक 17 नक्सली मारे गए हैं, जबकि 170 गिरफ्तार हुए हैं। पिछले 10 साल में यहां नक्सली गतिविधियां कम जरूर हुईं, लेकिन थमी नहीं। 2013 के बाद नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी ने एक बार फिर बालाघाट पर फोकस किया और महाराष्ट्र- छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के सीमावर्ती इलाके में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए एमएमसी जोन तैयार किया।

ऐसे हुई शुरुआत : बालाघाट में नक्सली राजनांदगांव (अब छत्तीसगढ़ में) व महाराष्ट्र के भंडारा से घुसे थे। आज भी नक्सली बालाघाट आने के लिए इन्हीं सीमावर्ती इलाकों का रास्ता पकड़ते हैं। छत्तीसगढ़ में वारदात के बाद नक्सली बालाघाट के घने जंगलों और यहां की बसाहट के बीच अपने छिपने के ठिकाने तलाशते हैं। इतना ही नहीं इसके लिए वे उन क्षेत्रों का चयन करते हैं। जहां पुलिस आसानी से न पहुंच सके। सूचना और संपर्क से दूर बसे गांवों में नक्सलियों की दहशत उनके लिए सुरक्षित ठिकाना बनती है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 5 जनवरी 1990 को नक्सलियों ने जिले में पहली दस्तक दी थी। नक्सली महाराष्ट्र के सालेकसा थाना अंतर्गत अदारी गांव से जिले के सीमावर्ती गांव मुरकुटा में पहुंचे थे। आजाद उइके के नेतृत्व में नौ नक्सलियों ने जिले की सीमा में प्रवेश किया था। इसके बाद से बालाघाट में शुरू हुई नक्सली गतिविधियां थम नहीं पाई हैं।

कई बड़ी नक्सली वारदातों की योजना बनी बालाघाट में : महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ सीमा से लगे इलाकों में सक्रिय मलाजखंड दलम,तांडा दलम व गढ़चिरौली में सेंट्रल कमेटी ने नक्सलियों की संख्या बढाई है। देवरी दलम से कुछ सदस्य शामिल हुए हैं। बड़े नक्सली नाम गुहा, संपत, जमुना, पहाड़ सिंह, दीपक के दलम में शामिल होने और दलम की कमान संभालने के बाद से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ ही नहीं झारखंड, ओडिशा व आंध्रप्रदेश में भी वारदात की योजना में बालाघाट कहीं न कहीं शामिल रहा।

ढांचा मजबूत करने की कवायद : नक्सली नेता गुहा व रसूल की गिरफ्तारी के बाद मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ में कमजोर पड़ी अपनी पकड़ को मजबूत करने नक्सली लगातार अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं। एमसीसी (माओवादी कम्युनिस्ट कमेटी) व पीडब्ल्यूजी (पीपुल्स वार ग्रुप) अपना ढांचा मजबूत करने फिर जंगलों में बसे लोगों में नक्सली विचारधारा का बीज बोने की कवायद कर रहे हैं। वहीं मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में भी दलम का विस्तार कर रहे हैं।

लगातार चलाया जा रहा है संयुक्त ऑपरेशन

महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ जंगल में संयुक्त ऑपरेशन लगतार चलाया जा रहा है। नक्सली जंगलों में कैंप न लगा सकें,इसके लिए पुलिस ने अलग-अलग स्थानों पर सीमावर्ती क्षेत्रों में कैंप लगाए हैं। जिससे नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगा है और पुलिस को लगातार सफलता मिल रही है। – केपी वेंकटेश्वर राव, आईजी, बालाघाट रेंज

चौकसी की जरूरत इसलिए…

– नक्सलियों ने बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, अनूपपुर, शहडोल, उमरिया और सिंगरौली तक में बनाया अपना कॉरिडोर। ह सुरक्षा कारणों से वर्ष 1991 में बालाघाट में बढ़ाई गई सुरक्षा चौकियां।

– दिलीप उर्फ गुहा,दीपक व जमुना को यहां की कमान सौंपी गई। 1994-95 के बाद नक्सलियों ने अपनी सक्रियता बढ़ाई।

– वर्ष1999 में लिखिराम कांवरे की हत्या के बाद सरकार इस समस्या पर गंभीर हुई।

– सामुदायिक पुलिसिंग से नक्सलियों की पकड़ कमजोर हुई लेकिन कभी भी ताकतवर हो सकते हैं।

– 2013 में अपनी खोई ताकत वापस पाने नक्सलियों ने एमएमसी जोन बनाया।

…इस तरह बढ़ने से रोका

– मध्य प्रदेश सरकार ने एंटी नक्सल ऑपरेशन फोर्स तैयार किया। हॉक फोर्स में युवाओं की भर्ती की जिन्हें अतिरिक्त जोखिम भत्ता दिया जा रहा है।

– जंगल में पुलिस बल बढ़ने और जनता के बीच मौजूद रहने से जनता में सुरक्षा की भावना बढ़ी। वर्ष 2004 से पुलिस को जनता के सहयोग से कई सफलताएं भी मिलीं।

– थानों और चौकियों का विस्तार किया। 2008 के बाद थानों का भी आधुनिकीकरण किया गया। बालाघाट जिले में किलेनुमा थाने बनाए गए। जिले में 8 एंटी लैंडमाइन व्हीकल भी हैं।

– जनता के बीच विश्वास जगाने और सूचना तंत्र मजबूत करने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग कार्यक्रम चलाए गए।

Back to top button