मध्यप्रदेश चुनाव: शिवराज की राह नहीं आसान, किसानों का गुस्सा बिगाडे़गा भाजपा का गेम प्लान?

मध्यप्रदेश में मतदाताओं का एक तबका जो किसानी करता है,वो इन चुनावी में किंग मेकर की भूमिका निभा सकता है।मध्यप्रदेश चुनाव: शिवराज की राह नहीं आसान, किसानों का गुस्सा बिगाडे़गा भाजपा का गेम प्लान?

मंदसौर में हुए किसान आंदोलन के बाद सरकार के प्रति किसानों की नाराजगी खुलकर सामने आई। किसानों की मांगों के आगे झुकते हुए सरकार ने भावांतर भुगतान योजना शुरू की। मगर इस योजना के शुरू होने के बावजूद जमीनी हकीकत में ज्यादा बदलाव नहीं दिखता।

क्वालिटी चेक करके सरकार खरीदती है फसल

पन्ना के गुन्नौर विधानसभा में सरकार कैंप लगाकर उड़द दाल खरीद रही है। पहले फसलों का क्वालिटी चेक होता है और फिर खरीदा जाता है। कुछ किसानों की फसलें मिट्टी युक्त होने की वजह से नहीं खरीदी जाती। हालांकि इस प्रकिया में भी भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रहती हैं। आरोप है कि क्वालिटी चेक में फेल होने वाले किसान, अधिकारियों को कुछ पैसे देकर अपनी फसल बेच देते हैं।

भावांतर योजना के अंतर्गत दाल, 5,600 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर खरीदी जा रही है जबकि मंडी में यह भाव 3,600 रुपये के आस-पास है। फसल नहीं बिकने पर किसानों को शुरुआत में ही हजारों का नुकसान झेलना पड़ता है। लिहाजा अपनी फसल बेचने के लिए उन्हें निजी खरीदारों की शरण लेनी पड़ती है।

पैसों के लिए करना पड़ता है इंतजार

जिन किसानों की फसल सरकार खरीद लेती है उन्हें पैसों का भुगतान सीधे बैंक खाते में किया जाता है। किसानों को इसके लिए कुछ हफ्तों का इंतजार करना पड़ता है, कई बार यह इंतजार महीनों का हो जाता है। पैसों के भुगतान में देरी होने से किसान अपने बकाए का भुगतान भी समय पर नहीं कर पाते। 

रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया जटिल होने का आरोप

प्रदेशभर में किसान इस सरकारी योजना की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया जटिल होने की बात कह रहे हैं। किसानों के मुताबिक, यह अमीर किसानों के लिए फायदेमंद है। निजी खरीदारों ने भी अपने दाम गिरा दिए हैं। भावांतर योजना में फसल नहीं बेच पाने वाला किसान कम दाम पर निजी खरीदारों को अपनी फसल बेचने को मजबूर है। 

ऐसा नहीं कि भावांतर योजना से किसानों को लाभ नहीं हुआ। अगर यह सरकारी योजना ना होती तो शायद किसानों की स्थिति और भी बुरी होती। इस योजना के लाभार्थियों से ज्यादा उन किसानों की संख्या है जिनकी फसलें खारिज हो गई। प्रदेशभर में किसान यह मानते हैं कि शिवराज चौहान के राज में सिंचाई, बिजली और मूलभूत सुविधाओं के मामले में स्थिति सुधरी है मगर फिर भी वह भाजपा से खुश नहीं हैं।

माना जाता है कि किसान, जाति-धर्म की बजाय किसान की पहचान से वोट करता है। इसलिए किसानों की समस्या हल किये बिना कोई भी पार्टी राज्य की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती।
 
प्रदेश में 28 नवंबर को मतदान होना है। चुनाव के नतीजे 11 दिसंबर को जारी होंगे। 

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