मंत्रिमंडल में दिखेगी अवसरवाद की ताकत….

दिनेश निगम ‘त्यागी’
नई दिल्ली: सरकार के गठन में अवसरवाद के इक्का-दुक्का उदाहरण हमेशा मिलते रहे हैं। प्रदेश की राजनीति में पहली बार ऐसा देखने को मिलेगा, जब सरकार में अवसरवादी ज्यादा ताकतवर दिखेंगे और भाजपा में अपना जीवन खपाने वाले किनारे व कमजोर। इन्हें सिर्फ इस पर संतोष करना होगा कि प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार है। कुछ दिन पहले तक कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे, अब भाजपा सरकार में मंत्री बन जाएंगे। जो विधायक कांग्रेस में थे, वे भी शिवराज सरकार में ताकतवर रहेंगे। आखिर, इनकी बदौलत भाजपा प्रदेश की सत्ता में आई है। खुद को ठगा महसूस करेंगे भाजपा के वे विधायक जिन्होंने पार्टी में अपना पूरा जीवन खपा दिया। उनके हाथ इंतजार और इंतजार के सिवाय कुछ नहीं लगेगा। भाजपा के कई दिग्गजों का भी पत्ता कट सकता है। मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले सदस्यों की संख्या सीमित है और दावेदार दिग्गजों की तादाद ज्यादा। इसलिए यदि शिवराज के खास भूपेंद्र सिंह, रामपाल सिंह, पारस जैन, बृजेंद्र प्रताप सिंह, नागेंद्र सिंह, केदारनाथ शुक्ल, कमल पटेल तथा अजय विश्नोई जैसे दिग्गज मंत्री बनने से वंचित रह जाएं तो अचरज नहीं किया जाना चाहिए। आखिर पार्टी के लिए जब बलि की नौबत आएगी तो अपनों की ही दी जाएगी न। ऐसे में हमेशा मंत्री पद की कतार में रहे अरविंद भदौरिया, प्रदीप लारिया, शैलेंद्र जैन, रामेश्वर शर्मा, ऊषा ठाकुर, नीना वर्मा जैसे विधायकों का क्या होगा, कोई नहीं जानता।
क्या बंगले के प्रति लगाव ले आया भाजपा में….
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी परंपरागत लोकसभा सीट गुना-शिवपुरी से चुनाव हारे तो उनका दिल्ली स्थिति बंगला खाली हो गया था। यह वो बंगला था जिसमें वे पैदा हुए थे। यहां उनका बचपन बीता था। इस बंगले से उनकी भावनाएं एवं यादें जुड़ी थीं। बंगला खाली होने के बाद सिंधिया से जुड़े एक प्रमुख नेता की टिप्पणी थी, महाराज को जितना दुख लोकसभा चुनाव में पराजय का नहीं है, उससे कहीं ज्यादा दिल्ली का बंगला चले जाने का है। सवाल उठता है कि क्या सिर्फ दिल्ली का बंगला हासिल करने के लिए सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी? ऐसा इसलिए भी क्योंकि भाजपा में जाते ही उन्हें राज्यसभा का टिकट मिल गया। उनका केंद्र में मंत्री बनना तय माना जा रहा है। वे मंत्री न बनें तब भी राज्यसभा सदस्य के नाते केंद्र सरकार उनका बंगला वापस दे सकती है। आखिर, मप्र में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा को सत्ता में लाने का इतना ईनाम तो उन्हें मिल ही सकता है। सिंधिया अपनी ही कांग्रेस सरकार से भोपाल स्थित एक बंगले को लेकर भी दुखी थे। यह है पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह का बंगला। सरकार बनने के तत्काल बाद उन्होंने कमलनाथ सरकार से सांसद के नाते यह बंगला मांगा था लेकिन नहीं दिया गया था। इधर सिंधिया लोकसभा का चुनाव हारे, उधर कमलनाथ ने अपने बेटे सांसद नकुलनाथ को यह बंगला आवंटित कर दिया।बताते हैं, सिंधिया के मन में इसे लेकर भी टीस थी। इसलिए बंगला सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का एक मात्र कारण भले न हो, लेकिन प्रमुख कारणों में शामिल जरूर है।
दिल के अरमां आंसुओं में बह गए….
गांव की पुरानी कहावत है ‘पुरुष बली न होत है, समय होत बलवान’। समय कब कैसी करवट ले ले, कोई नहीं जानता। कांग्रेस से बगावत कर भाजपा की सरकार बनवाने वाले बागियों पर यह कहावत फिट बैठती है। इन पर एक अन्य कहावत ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए’ भी चरितार्थ हो रही है। दअरसल, बगावत के साथ यह तय था कि वे मंत्री रहते बागी बने थे। घर छोड़कर प्रदेश से बाहर गए थे। इसलिए घर वापस लौटेंगे तो मंत्री पद की शपथ लेकर ही। पर ऐसा नहीं हो सका। जब तक सरकार बनने की नौबत आई तब तक कोरोना आ धमका। शिवराज सिंह चौहान को आनन-फानन अकेले मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना पड़ी। बागी देखते रह गए। कहा गया था कि एक सप्ताह में मंत्रिमंडल विस्तार होगा। अब यह ही नहीं पता कि मंत्रिमंडल का विस्तार कब होगा। बागियों में किसी की हिम्मत नहीं कि भाजपा के किसी नेता या सिंधिया से ही मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बात कर सके। थक हार कर सभी बागियों को शपथ लिए बिना घर वापस होना पड़ा। केंद्र सरकार ने जिस तरह पैकेज की घोषणा की है और बैंक की ओर से तीन माह की इएमआई न लेने का ऐलान किया गया है। इससे साफ है कि कोरोना लंबा चलने वाला है। बागियों को खतरा इस बात का है कि कहीं ऐसा न हो कि कोरोना चलता रहे और उप चुनाव नजदीक आ जाएं। पर हाथ पर हाथ रखे बैठने के अलावा वे कुछ कर भी नहीं सकते। अब वे किसी पर कोई दबाव बनाने की स्थिति में भी नहीं हैं। उन्हें मंत्री न बनाया जाए तब भी कुछ नहीं कर सकते। बेचारे बागी…?
भाजपा के सामने होगा भितरघात का संकट….
कांग्रेस के बागी विधायकों की जिन 24 विधानसभा सीटों के लिए 6 माह के अंदर उप चुनाव होना है, वे करो-मरो की तर्ज पर होंगे। आखिर, शिवराज सरकार का भविष्य इन उप चुनावों पर टिका है। कांग्रेस के बागी वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा भी इनसे जुड़ी है। इसलिए सत्तापक्ष पूरी ताकत झोंकेगा। दूसरी तरफ अपनों की बगावत से कांग्रेस ने सत्ता गंवाई है। इससे खार खाई पार्टी पहली बार पूरी शिद्दत, ताकत व एकजुटता से मैदान में उतरेगी। कांग्रेस ने इसके लिए अभी से जोड़तोड़ शुरू कर दी है। कांग्रेस की नजर भाजपा के उन ताकतवर नेताओं पर है जो विधानसभा का पिछला चुनाव कांग्रेस के बागियों से हार गए थे। इनमें से कोई कांग्रेस में आकर चुनाव लड़ना चाहेगा तो कांग्रेस इन्हें टिकट देने से पीछे नहीं हटेगी। पार्टी के कुछ नेताओं को ऐसे नेताओं से बात करने की जवाबदारी सौंप दी गई है। इस रणनीति पर इसलिए काम शुरू हुआ है क्योंकि अधिकांश सीटों पर बागी ही भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे, भाजपा के किसी नेता को टिकट मिलने की संभावना नहीं है। ऐसे में भितरघात की ज्यादा संभावना भाजपा के अंदर होगी। इसे थामना भाजपा और सिंधिया के लिए बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस इसका फायदा उठाना चाहेगी और कांग्रेस के बागी विधायकों को हराने के लिए कुछ भी करेगी। कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि नतीजा चाहे जो आए लेकिन पहली बार पार्टी एकजुट दिखेगी, जहां भितरघात की कोई संभावना नहीं होगी।
‘शिवराज’ के बाद सबसे अलग ‘गोपाल’….
कोरोना संकट के दौर में राजनेताओं की गतिविधियां जनता के बीच चर्चा के केंद्र में हैं। सोशल मीडिया एवं फेसबुक में इन्हें देखा जा रहा है। पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा बच्चों के साथ मस्ती करते दिख रहे हैं, घर के गायों की देखभाल करते नजर आ रहे हैं। बृजेंद्र प्रताप सिंह ने खुद को पत्नी, बच्चों के साथ लाकडाउन कर रखा है। रामपाल सिंह पूजा-पाठ और टीवी देखकर समय बिता रहे हैं। अरविंद भदौरिया बच्चों को खुश रखने में मस्त हैं। बसपा विधायक रामबाई मुगौड़ी बनाते दिख रही है। हर कोई लाकडाउन का आनंद परिवार के साथ घर में रहकर ले रहा है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव सबसे अलग भूमिका में हैं। कमलनाथ बल्लभ भवन में बैठकर काम करने के लिए चर्चित थे जबकि शिवराज सिंह चौहान अपनी शैली में लाकडाउन तोड़कर सड़कों पर उतर गए। व्यवस्थाएं देखने के साथ काम पर लगे अमले का हौसला बढ़ा रहे हैं। गोपाल भार्गव अपने क्षेत्र के लोगों को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने तीन मोबाइल नंबर जारी किए हैं। क्षेत्र के जिन परिवारों के बच्चे या अन्य सदस्य बाहर हैं, उनके खाते लेकर उन पर पैसा डालने की व्यवस्था कर रहे हैं। कोई आना-जाना चाहता है तो परमिशन दिलाकर वाहन की व्यवस्था कर रहे हैं। कोई कहीं फंसा है और निकलने की स्थिति में नहीं है तो उसके लिए वहां ही खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है। सच कहें तो शिवराज एवं गोपाल जनसेवक की भूमिका में हैं जो कोरोना के दौर में भी परिवार को छोड़कर सेवा के काम में लगे हैं।

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