भारत ने कहा -जब तक पुराने प्री-2020 के वादों को पूरा नहीं करते, तब तक सफल नही हो सकता पेरिस समझौता

भारत ने कहा है कि वह पेरिस समझौते में अपने योगदान को लेकर प्रतिबद्ध है। लेकिन जब तक विकसित देश प्री-2020 के वादों को पूरा नहीं करते तब तक पेरिस समझौते के सभी पहलुओं को सफलता से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

भारत ने कहा -जब तक पुराने प्री-2020 के वादों को पूरा नहीं करते, तब तक सफल नही हो सकता पेरिस समझौता

बॉन में चल रहे जलवायु परिवर्तन के महासम्मेलन में पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने सीओपी 23 की उच्चस्तरीय बैठक में भारत का रुख साफ किया। सम्मेलन में बृहस्पतिवार को तमाम सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने अपने राष्ट्र का पक्ष रखा।

भारत जलवायु परिवर्तन के खतरों से प्रभावित होने वाले देशों में से एक है। कार्बन उत्सर्जन में कटौती का असर भी भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं पर सबसे अधिक पड़ेगा। साल 2030 तक भारत ने अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33-35 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा है।

इसके लिये कृषि, जल संसाधन, तटीय क्षेत्रों, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर भारी निवेश की जरूरत है। भारत को उम्मीद है कि क्योटो समझौते के मुताबिक विकसित देश पर्यावरण संरक्षण के लिए अनुदान देंगे।

पर्यावरण मंत्री ने कहा क्योटो प्रोटोकाल में तय हुआ था कि विकसित देश भारत जैसे विकासशील देशों को आर्थिक मदद के अलावा तकनीक स्थानांतरण, आधारभूत जरूरतों के लिए सहयोग देंगे ताकि वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस के अंदर सीमित रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस के आदर्श लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

उन्होंने कहा-भारत इसके लिए प्रतिबद्ध है और वह वैकल्पिक ऊर्जा और वन संरक्षण पर जोर दे रहा है। हर्षवर्धन ने कहा कि कोयले का उत्पादन और ऊर्जा के लिए उसका उपयोग भारत की मजबूरी है।

इसे एकदम से बंद नहीं किया जा सकता। पर्यावरण मंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा सीधे जीवन शैली से जुड़ा है। उपभोक्तावादी जीवन शैली ने इस संकट को और गहरा किया है।

भारत हमेशा से संयमित जीवन दर्शन पर बात करता रहा है। प्रकृति के साथ जुड़ने का यही जीवन दर्शन पर्यावरण की इस समस्या से निपट सकता है। दुनिया को भारत के इस जीवन दर्शन को समझना होगा। हर्षवर्धन ने आह्वान किया कि सभी प्रतिनिधि सम्मेलन के इंडिया पवेलियन में आए, जहां योग के जरिए मानव और प्रकृति के मेल को रेखांकित किया गया है।

नहीं हो सकी प्री-2020 पर चर्चा

आखिरकार विकसित देश क्योटो प्रोटोकाल के तहत किए वादों पर बात करने के लिए तैयार नहीं हुए। इसके तहत उन्हें विकासशील देशों को अनुदान के साथ तकनीक सहयोग मुहैया करना था। इसमें काफी खर्च आना है, इसलिए विकसित देश इसे बच रहे हैं। अमेरिका पहले ही कह चुका है कि वह भारत, चीन या किसी देश को पर्यावरण के नाम पर आर्थिक मदद नहीं देगा।

हालांकि भारत के पर्यावरण सचिव सीके मिश्र ने बताया कि विकसित देश अगले साल पोलैंड में होने वाली अगली बैठक में इस बिंदु को एजेंडे में रखने को राजी हो गए हैं। लेकिन पर्यावरणविद कहते हैं कि ये बहुत दूर की कौड़ी है। विकसित देश जिस तरह से पुरानी बातों से पीछे हट रहे हैं, उससे पेरिस समझौते का हाल भी यही हो सकता है। 

 
 
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