भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के हाथ से कटी पतंग तो वसुंधरा राजे ने कुछ इस तरह ली चुटकी

जयपुर: 14 जनवरी को देशभर में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है, लेकिन जयपुर में इस त्यौहार की खास रंगत पतंगबाजी के चलते मशहूर है. इस बार भी मकर सक्रांति पर जयपुर में पतंगबाजी हुई.  चारदीवारी के भीतर पुराने शहर में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी पतंगबाजी का लुत्फ लेने पहुंचीं. इस दौरान जो कुछ हुआ उसे देख छत पर मौजूद कई लोग हैरान रह गए तो कई मुश्किल से अपनी हंसी रोक पाए. पतंगबाजी के दौरान अशोक परनामी ने राजे से डोर ली और उसके बाद जो कुछ हुआ वह कइयों को चुनाव और नतीजों की यादों के झरोखे में भी ले गया. भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के हाथ से कटी पतंग तो वसुंधरा राजे ने कुछ इस तरह ली चुटकी

प्रदेश में 7 दिसंबर 2013 को विधानसभा चुनाव हुए और उसके नतीजे 11 दिसंबर को घोषित किए गए. इन नतीजों में बीजेपी हार कर सत्ता से बाहर हो गई. बीजेपी के संगठन और उसके नेताओं ने हार को स्वीकार भी किया. बीजेपी विपक्ष में बैठने का मानस बना चुकी है और इसके लिए पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष का चुनाव भी कर लिया. लेकिन जीवन में कई बार कुछ बातें ऐसी हो जाती हैं जो पुरानी यादों को ताजा कर देती है. मकर संक्रांति के दिन राजधानी जयपुर में भी चारदीवारी के भीतर पुराने शहर में ऐसा ही नजारा देखने को मिला. जब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बीजेपी के दिवंगत नेता रामदास अग्रवाल और प्रदेश मंत्री अरुण अग्रवाल के पुश्तैनी मकान पर पतंगबाजी के लिए पहुंची. हालांकि वसुंधरा राजे न तो खांटी पतंगबाज है और न उन्हें पतंग उड़ाने का ज्यादा शौक है. लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के आग्रह पर वह सकरात (संक्रांति) के दिन पतंगबाजी का नजारा देखने छत पर पहुंची.

इस दौरान वसुंधरा राजे के हाथ में भी एक पतंग की डोर थी. पतंग अचानक नीचे जाने लगी तो वसुंधरा राजे ने मदद मांगी. इस मदद के लिए हर बार की तरह तत्पर रहने वाले अशोक परनामी ने हाथ बढ़ा दिए. बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने डोर अपने हाथ में ले ली. इस पर वसुंधरा राजे ने कहा कि आप पतंग संभालो और यह मानो कि मैंने ही डोर हाथ में थाम रखी है.

परनामी भी इतना सुनकर कहां चूकने वाले थे. उन्होंने डूबती पतंग को पहले संभाला, फिर ऊपर आसमान में पतंग ले गए. इसी दौरान परनामी ने दूसरी पतंगों से पेंच भी लड़ाए. परनामी ने डोर अपने इशारों पर रखी, खूब खींचतान भी की, लेकिन फिर भी वह पतंग को नहीं बचा पाए. परनामी के हाथ से पतंग कट गई तो वसुंधरा राजे ने भी अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि “आप तो अच्छे पतंगबाज हुआ करते थे लेकिन इस बार क्या हो गया?”

वैसे तो यह एक सामान्य घटनाक्रम था. लेकिन पतंगबाजी के इस घटनाक्रम की तुलना पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच चुनाव और उसके नतीजों से होती रही. कुछ कार्यकर्ता बरबस ही कह उठे कि वसुंधरा राजे ने चुनाव में कुछ मामलों में अशोक परनामी के हाथ में बागडोर दी और पार्टी का हश्र भी इस कटी पतंग की तरह ही हो गया.

भले ही चुनावी नतीजों के बाद पतंगबाजी के मौसम में वसुंधरा राजे के हाथ से दूसरे नेताओं का डोर थाम लेना और फिर उस पतंग को कटवा देना एक सामान्य घटनाक्रम हो लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को तो यह घटनाक्रम एक नई चर्चा का मौका दे ही गया.

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