भाजपा के चाणक्‍य कहे जाने वाले पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली काे पंजाब से विशेष लगाव था, पढ़े पूरी खबर

भाजपा के चाणक्‍य कहे जाने वाले पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली काे पंजाब से विशेष लगाव था। केंद्र की राजनीति में अपना अलग स्थान बनाने वाले जेटली का अमृतसर से तो अटूट या यूं कहें कि खून का रिश्ता था। यही कारण है कि वह यहां से चुनाव लड़े और पराजय के बावजूद यहां से उनका खास लगाव कायम रहा। दरअसल उनके परिवार को भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद यहीं आसरा मिला था। लाहौर से आने पर उनकी बुआ ने उनके पिता और पांचों भाइयों को अपने घर आश्रय दिया था।

अमृतसर में थी जेटली की ननिहाल, विभाजन के बाद लाहौर से यहीं आया था परिवार

पंजाबी होने के नाते जेटली का पंजाब की राजनीति में हमेशा दखल रहा। अमृतसर की सियासत उन्हीं से शुरू होती थी। उनसे ही आशीर्वाद लेकर अमृतसर के कई नेता फर्श से अर्श पर पहुंचे। विडंबना यह रही कि जेटली को सियासी हार का दर्द भी इसी धरती पर झेलना पड़ा।

विभाजन के समय फुल्ला वाला चौक में जेटली की बुआ रहती थीं। पाकिस्तान से विस्थापित होकर आया उनका परिवार सबसे पहले अमृतसर में बुआ के घर रुका था। जेटली का ननिहाल भी अमृतसर में ही है। खूह सुनियारिया में उनके मामा मदन लाल वट्टा भी रहते थे। जेटली का जन्म तो दिल्ली में हुआ लेकिन अमृतसर से उनका लगाव हमेशा बना रहा। विशेषकर बुआ जी के पौत्र नरेंद्र शर्मा आज भी उनके बहुत करीब हैं।

पारिवारिक समारोह में उनका हमेशा ही आना जाना रहा। यह अलग बात रही कि राजनीति में ननिहाल परिवार से कोई भी आगे नहीं आया। जेटली की पत्नी का ननिहाल भी अमृतसर की नमक मंडी में है। इस नाते भी उनका जुड़ाव अमृतसर के साथ रहा।

जेटली परिवार के बेहद नजदीकी अनूप त्रिखा बिट्टा ने बताया कि अरुण जेतली के ननिहाल अमृतसर में था। चौक फुल्ला वाला में उनकी बुआजी का घर था। विभाजन के दौरान अरुण जेटली के पिता अपने पांच भाइयों के साथ लाहौर से अमृतसर आए थे और फुल्लां वाला चौक स्थित अपनी बहन के घर रुके थे। अरुण जेटली जब भी अमृतसर आते अपनी बुआजी के घर जरूर जाते। उनके मामा जी मदन लाल वट्टा खूह सुनियारिया में रहते रहे है और अब उनके बच्चे वहां रहते हैं।

देखना पड़ा हार का मुंह
अरुण जेटली की हमेशा ही भाजपा की सियासत में तूती बोलती रही। उनको भाजपा के मुख्‍य रण्‍नीतिकारों में माना जाता था और वह पार्टी के ‘चाणक्‍य’ थे। राज्यसभा के वरिष्ठ सदस्य जेटली पहली बार चुनावी रण में 2014 में उतरे। उनके सामने थे कांग्रेस के उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह। अमृतसर संसदीय सीट से उतरे जेटली अपनी यहां जड़ें होने की वजह से जीत को लेकर आश्वस्त थे। पंजाब में अकाली-भाजपा सरकार, विशेषकर बादल परिवार ने भी उन्हें आश्वासन दिया कि वह यहां से बड़ी जीत दर्ज करेंगे। हालांकि चुनाव में जेटली को 1,02,770 मतों से हार का मुंह देखना पड़ा और अमृतसर की धरती पर ही उन पर हार का दर्द भी झेलना पड़ा।

अमृतसर को आइआइएम, स्मार्ट सिटी व बहुत कुछ दिया

चुनाव में हार के बावजूद जेटली 2014 में एनडीए सरकार में मंत्री बने। उन्होंने अमृतसर के नेताओं से दूरी बना ली लेकिन गुरु नगरी से उनका लगाव कम नहीं हुआ। अमृतसर को उन्होंने आइआइएम दिया। स्मार्ट सिटी और हेरिटेज सिटी का दर्जा देते हुए इसे विश्वस्तरीय शहरों में खड़ा करने में कोई कसर नहीं रखी। अमृतसर के व्यापारी, कारोबारी व नेता जब भी उनके पास समस्याएं लेकर दिल्ली गए तो उन्होंने पहल के आधार पर उनका न सिर्फ हल करवाया और उन्हें बड़ी राहत दिलवाई। शहर के कई नेताओं ने जेटली के आशीर्वाद ले सियासी मुकाम पाया है।

बेहद खास व्‍यक्तित्‍व था अरुण जेटली का, राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सभी दलों में था सम्‍मान

अरुण जेटली का व्‍यक्तित्‍व ऐसा था कि उनका हर दल में सम्‍मान था। पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह से चुनावी मुकाबले के बावजूद जेटली के रिश्‍ते बेहद अच्‍छे रहे। भाजपा से कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू के तो वह राजनीतिक गुरु थे। सिद्धू इसे खुले रूप में स्‍वीकार करते थे। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान  नवजोत सिद्धू अमृतसर में कांग्रेस उम्‍मीदवार थे तो जेटली ने उनके खिलाफ चुनावी सभाओं को संबोधित किया और हमले किए। लेकिन, सिद्धू ने अपने गुरु जेटली पर कोई टिप्‍पणी नहीं की। सिद्धू ने उस समय कहा था, वह मेरे गुरु हैं और रहेंगे। मैं उनके खिलाफ नहीं बोलूंगा। गुरु जीवन भर के लिए होते हैं और वह बदले नहीं जाते। बताया जाता है कि जेटली के जन्‍म दिन पर सिद्धू उनसे आशीर्वाद लेने दिल्‍ली उनके घर भी जाते थे।

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