बढ़ती बेरोजगारी के दौर में डिग्री के अलावा बहुत ज्यादा की दरकार लेकिन मप्र में भंवर में फंसी है कॉलेज की पढ़ाई

मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नित-नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। जहां छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं, वहीं सरकारी कॉलेजों को सहायक प्राध्यापकों का इंतजार है। पाठ्यक्रम में बदलाव, उन्हें समय पर पूरा करवाना, परीक्षाएं लेना जैसे नियमित कामों के अलावा बेरोजगारी के दौर में छात्रों का कौशल बढ़ाना भी चुनौती है। मप्र में सरकार बदलने के साथ ही उच्च शिक्षा का परिवेश -प्रकार बदलना भी तय था लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव उच्च शिक्षा के स्तर को लगातार नीचे ले जा रहे हैं। इस क्षेत्र में जारी उठापटक और कुछ ज्वलंत मुद्दों पर वर्तमान और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री से विशेष बातचीत…

जीतू पटवारी उच्च शिक्षा मंत्री, मप्र (इंदौर: डॉ. जितेंद्र व्यास से बातचीत)

मप्र में उच्च शिक्षा के हालात से आप संतुष्ट हैं। इंदौर, उज्जैन में कुलपति को लेकर विवाद जारी है। इंदौर में तो एडमिशन रुके हुए हैं?

– जहां तक उच्च शिक्षा का प्रश्न है तो सभी का ध्येय एक ही है। विद्यार्थियों को बेहतर और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिले। व्यवस्थाएं इतनी बेहतर हों कि पढ़ाई के दौरान किसी तरह की परेशानी न हो। शिक्षा में नवाचार की संभावना लगातार बनी रहती है। हम इस दिशा में सकारात्मक प्रयास कर रहे हैं। इंदौर-उज्जैन विवि में अनियमितताएं सामने आने के बाद कार्रवाई की गई।

क्या कुलपति की नियुक्ति को राजनीति से मुक्त नहीं रखा जा सकता। धारा-52 को तो सियासी औजार ही कहा जाता है?

– यह सही है इस पर राजनीति होती है। लेकिन शिक्षा और विश्वविद्यालय के पूरे मामले में जवाबदेही भी तो शासन की होती है। जनता उसी से जवाब मांगती है जिसे चुनती है। सरकार को यदि अपने विजन को मूर्त रूप देने में कहीं कोई परेशानी आती है तो बदलाव भी आवश्यक होते हैं। जहां तक धारा 52 का सवाल है तो यह अकारण नहीं लगाई जाती।

कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक नहीं हैं। उनकी नियुक्ति रुकी हुई है। सरकार उसमें खास प्रयास नहीं कर रही है? भाजपा ने भी नहीं सोचा?

– कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की काफी कमी है। शासन ने प्रयास कर सहायक प्राध्यापकों की भर्ती पर लगा स्थगन हटवाया है। प्राध्यापकों को शिक्षण के क्षेत्र में पारंगत बनाने के लिए भोपाल में उच्च शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान सरकार शुरू करने जा रही है। यहां हर साल चार हजार कॉलेज शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। नए शिक्षकों की भर्ती भी पीएससी की माध्यम से होती रहेगी।

प्रदेश में निजी विश्वविद्यालय और कॉलेजों में नए-नए पेशेवर शिक्षा वाले पाठ्यक्रम शुरू हो रहे हैं, सरकारी कॉलेज कहां हैं?

– सरकारी कॉलेजों में ऐसे नवाचार का अभाव है। आखिर हम उन्हें डिग्री दे रहे हैं या उन्हें नौकरी या व्यवसाय के लिए सक्षम बना रहे हैं। हमारा पाठ्यक्रम सालों से नहीं बदला गया था। आज के दौर में प्रतिस्पर्धा के लिहाज से यह काफी पीछे था। हमने पाठ्यक्रम में बदलाव शुरू किया है। इसमें पूरा फोकस इसी पर रखा जा रहा है कि विद्यार्थी को रोजगारोन्मुखी शिक्षा मिल जाए।

स्मार्ट फोन को लेकर विधानसभा में हंगामा हुआ। शिक्षा प्रदेश के युवाओं के भविष्य का सवाल है, उस पर आप लोग एकमत क्यों नहीं हो पाते।

– स्मार्ट फोन देने का मूल उदेश्य यही था कि विद्यार्थी तकनीक और ज्ञान से वंचित न रहें लेकिन यह योजना राजनीतिक स्टंट बनकर ही रह गई। शिवराज सरकार ने 2014 में इसकी घोषणा की। तीन साल किसी को फोन नहीं दिए और चुनाव के पहले 2017-18 में कुछ फोन बांटें वह भी 2100 रुपए के स्मार्ट फोन। सरकार योजना का परीक्षण कर रही है।

शैक्षणिक कैलेंडर, छात्रसंघ चुनाव जैसी चुनौतियां भी सामने हैं। अगले कदम, योजनाएं और रणनीति क्या रहेगी। क्या रहना चाहिए?

– शैक्षणिक कैलेंडर का पालन तो हर हालत में होना चाहिए। इसे लेकर मैं लगातार काम कर रहा हूं। सही समय पर प्रवेश, सही समय पर पढाई हो, परीक्षा और परिणाम भी सही समय पर आए यह प्रयास सरकार के साथ-साथ संस्थानों का भी होना चाहिए। छात्रसंघ चुनाव का प्रश्न है तो हम सबसे पहले प्रत्यक्ष प्रणाली से लोकतंत्र की सीख विद्यार्थियों तक पहुंचे, यह प्रयास करेंगे।

जयभान सिंह पवैया पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री, मप्र (ग्वालियर : दीपक सविता से बातचीत)

मप्र में उच्च शिक्षा के हालात से आप संतुष्ट हैं। इंदौर, उज्जैन में कुलपति को लेकर विवाद जारी है। इंदौर में तो एडमिशन रुके हुए हैं?

– प्रदेश में उच्च शिक्षा में प्रवेश प्रकिया के हालात ठीक नहीं हैं। इंदौर- उज्जैन विश्वविद्यालय में अनिर्णय की स्थिति है। कुलपतियों के मामले में कुलाधिपति के निर्णय को मान्य करने का नियम भी है और परंपरा भी है। विश्वविद्यालयों में सीधा राजनीतिक हस्तक्षेप उचित नहीं है। शासन राय भेजता है निर्णय राज्यपाल ही करते हैं। प्रवेश प्रक्रिया रुक जाना बहुत गंभीर विषय है।

क्या कुलपति की नियुक्ति को राजनीति से मुक्त नहीं रखा जा सकता। धारा-52 को तो सियासी औजार ही कहा जाता है?

– धारा-52 का उपयोग तब किया जाता है जब स्थिति नियत्रंण से बाहर हो और शैक्षणिक परिसर व शिक्षा की गिरावट को रोकने के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं बचा हो। राजनीतिक दृष्टिकोण से ये कार्रवाईयां ही उच्च शिक्षा जगत में गुणवत्ता से खिलवाड़ ही हैं। शिक्षा के मंदिरों को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए।

कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक नहीं हैं। उनकी नियुक्ति रुकी हुई है। सरकार उसमें खास प्रयास नहीं कर रही है? भाजपा ने भी नहीं सोचा?

– हमने अपनी सरकार के समय, खास तौर पर मैंने उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए प्रकरणों का निराकरण करते हुए मप्र लोक सेवा आयोग से सहायक प्राध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया, वह भी साक्षात्कार व लिखित परीक्षा के आधार पर पूरी पारदर्शिता के साथ कराई थी। अब नियुक्ति और पदस्थापनाएं लंबित क्यों हैं? यह चयनित प्राध्यापकों और छात्रों के भविष्य के साथ अन्याय है।

प्रदेश में निजी विश्वविद्यालय और कॉलेजों में नए-नए पेशेवर शिक्षा वाले पाठ्यक्रम शुरू हो रहे हैं, सरकारी कॉलेज कहां हैं?

– हमने अपने समय रोजगारदायी डिग्री, डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कोर्सेस की शुरुआत की थी। यह एक दिन का विषय नहीं है। इसमें लगातार काम होना चाहिए। हमने शुरुआत कर इसे गति दे दी थी। वर्तमान सरकार को इसे आगे बढ़ाना चाहिए ताकि प्रदेश के छात्र हर लिहाज से सक्षम हो सकें।

स्मार्ट फोन को लेकर विधानसभा में हंगामा हुआ। शिक्षा प्रदेश के युवाओं के भविष्य का सवाल है, उस पर आप लोग एकमत क्यों नहीं हो पाते।

– मुझे नहीं पता स्मार्ट फोन को लेकर क्या विवाद हुआ। मैं सिद्धांतत: इस बात से सहमत हूं कि शैक्षणिक सुधार के मुद्दे राजनीति से ऊपर होते हैं। हां, गुणवत्ता और पारदर्शिता पर बहस हो। मैंने उच्च शिक्षा मंत्री के नाते विपक्ष का विश्वास जीतते हुए और मतदान व ध्वनि मत के सर्वसम्मति से विधेयक पारित कराए हैं।

शैक्षणिक कैलेंडर, छात्रसंघ चुनाव जैसी चुनौतियां भी सामने हैं। अगले कदम, योजनाएं और रणनीति क्या रहेगी। क्या रहना चाहिए?

– छात्र राजनीति ने देश को कई दिग्गज नेता दिए हैं। इसे राजनीति की नर्सरी कहना अनुचित नहीं होगा। छात्रसंघ चुनाव की मांग अन्य संगठनों के साथ कांग्रेस का छात्र संगठन भी करता था। हमने शैक्षणिक परिसर में शांति और अनुशासन के साथ चुनाव कराए थे। अब वर्तमान सरकार को इस पर कदम उठाना चाहिए।

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