बड़ी खबर: पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत अपने पंजाब दौरे के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू से मिलेंगे

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत अपनी नई जिम्मेदारी के साथ अभी तक पंजाब नहीं पहुंचे हैं। लेकिन पंजाब के कांग्रेसी नेताओं ने उन तक सूबे में पार्टी के अंदरूनी हालात और खींचतान का सारा विवरण पहुंचा दिया है। पता चला है कि हरीश रावत अगले कुछ दिनों में ही पंजाब का दौरा करेंगे।

इसी दौरान, हरीश रावत के कुछ संकेतों ने पंजाब कांग्रेस में नई हलचल भी पैदा कर दी है। रावत ने पिछले साल से हाशिए पर चल रहे विधायक और पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को सूबे की सियासत में फिर से सक्रिय भूमिका में लाने के संकेत दिए हैं। फिलहाल, इस मामले में कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके कैबिनेट सहयोगियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
इसी बीच, पिछले साल कैप्टन से मनमुटाव के बाद जुलाई में कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ने के बाद सक्रिय राजनीति से दूरी बनाए हुए नवजोत सिद्धू अचानक कृषि विधेयकों के खिलाफ खुलकर किसानों के पक्ष में उतर आए हैं। यह भी पता चला है कि हरीश रावत अपने पंजाब दौरे के दौरान नवजोत सिद्धू से भी मिलेंगे। सिद्धू के अचानक सक्रिय होने और हरीश रावत के उनके प्रति रुख को एक ही रणनीति की कड़ियों के रूप में देखा जा रहा है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार की कार्य प्रणाली पर लगातार उंगली उठाने वाले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो से भी हरीश रावत की मुलाकात होना तय है।
यह मुलाकात भी ऐसे समय होगी जब सुनील जाखड़ के नेतृत्व में पंजाब कांग्रेस ने पार्टी आलाकमान से बाजवा और दूलो को पार्टी से हटाए जाने का आग्रह किया हुआ है। इस तरह, कैप्टन समर्थक जहां बाजवा व दूलो को हटाने की मांग उठा रहे हैं, वहीं हरीश रावत इन दोनों वरिष्ठ नेताओं को पार्टी से जोड़े रखने की कवायद तेज करेंगे।
पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रावत के पास धड़ेबंदी का पूरा ब्योरा पहुंच गया है। इनमें से अधिकांश की शिकायत एक जैसी है कि कैप्टन के नेतृत्व वाली सरकार में उनकी कोई सुनवाई नहीं है और वे खुद को अनदेखा किए जाने से आहत हैं।
इसके अलावा अनेक कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने रावत से यह शिकायत की है कि कांग्रेस सरकार के तीन साल बीत जाने के बाद भी उन्हें कोई सियासी ओहदा या सरकार में कोई पद नहीं दिया गया है। ऐसे नेताओं की शिकायत है कि विधानसभा चुनाव के दौरान यह कहते हुए टिकट नहीं दिया गया था कि सरकार बनने के बाद उन्हें विभिन्न नियुक्तियों में तरजीह दी जाएगी।

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