बीवी से लगी शर्त, 6 हफ्तों में भाषा सीख ‘कन्नड़ रैपिडेक्स’ बना अंग्रेज

बेंगलुरु में ‘ऊटा आइथा’ की तरह अगर कोई और कहावत मशहूर है तो वह शायद ‘नानागे कन्नड़ गोठिला’ है। लेकिन एक अंग्रेज उसी सहजता और सरलता से यह कहावत कहता है जैसे अंग्रेजी बोलता है, आप सुनकर हैरान रह जाएंगे।बीवी से लगी शर्त, 6 हफ्तों में भाषा सीख 'कन्नड़ रैपिडेक्स' बना अंग्रेजअंग्रेज डेविड लेबॉर ने महज 6 हफ्तों में कन्नड़ बोलना सीखा, उनके लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं था। लेबॉर कम्यनुकेटिव लैंग्वेज ट्रेनर हैं और नई भाषाएं सीखने में रुचि रखते हैं। पढा़ई के बाद वह बर्लिन चले गए जहां उन्होंने नई भाषाएं सिखाने के लिए टूल विकसित किए। जर्मनी में वह एक टीवी शो होस्ट करते हैं, उनके शो के जरिए बाहर से आए लोगों को जर्मन सीखने में खासी मदद मिलती है।

लेबॉर ने बताया, ‘मैंने भारतीय भाषा सीखने के बारे में तब सोचा जब मेरी पत्नी ने मुझसे शर्त लगाई। उन्होंने कहा, यूरोप में रहते हुए यूरोपीय भाषा सीखना आसान है, लेकिन मेरी टेक्नीक का असल टेस्ट तब होगा जब मैं कोई भारतीय भाषा सीख पाऊंगा।’ लेबॉर ने आगे बताया कि जब उन्होंने पत्नी से पूछा कि वह कौन-सी भारतीय भाषा बोलती हैं तो जवाब मिला ‘कन्नड़’। इसके बाद लेबॉर ने कन्नड़ सीखने का फैसला किया और जल्द बर्लिन से बेंगलुरु पहुंच गए।

लेबॉर कोई भाषाविद् नहीं हैं लेकिन ऐसा नियम विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जिसके जरिए विदेशी लोग जल्द से जल्द उस देश की भाषा सीख जाएं, कम से कम बोलना। वह खुद को शिक्षा के व्यवसायी कहते हैं और ऐसी वेबसाइट डिवेलप करने की योजना बना रहे हैं, जहां अलग-अलग भाषाओं को फ्री में सीखा जा सकेगा।

उन्होंने बताया, ‘मैं एक ऐप डिवेलप करने पर भी काम कर रहा हूं, लेकिन वह अभी पाइपलाइन में है। अपने अनुभवों से मैंने सीखा है कि कोई भाषा सीखने के लिए क्लासरूम से बाहर निकलने की जरूरत है। तरीका बेहद आसान है, मैं कहावतों को समझने के लिए कुछ ब्रेन मैपिंग मेथड्स का इस्तेमाल करता हूं और बोलचाल में उसका प्रयोग आसानी से कर पाता हूं।’ ये बातें उन्होंने कन्नड़ भाषा में ही बोलीं।

लेबॉर 6 भाषाएं बोल लेते हैं, जिसमें कन्नड़ पहली और अकेली भारतीय भाषा है। कन्नड़ सीखने में लेबॉर को मात्र 6 हफ्तों का समय लगा। वह अब बांग्ला सीखने वाले हैं। वह बांग्ला सीखने की प्रोग्रेस को रिकॉर्ड करवाने के लिए एक टीवी चैनल के संपर्क में हैं।

उन्होंने बताया, ‘मैं मेरा टारगेट अगली पीढ़ी है क्योंकि बढ़ते इमिग्रेशन के कारण दुनिया छोटी होती प्रतीत हो रही है, दूसरे देश में जाकर वहां की भाषा न समझ पाना मुश्किलें पैदा करता है। मेरा मकसद लोगों के जीवन को आसान बनाना है।’

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