बीमा कंपनियां ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नारे को पलीता लगा रहीं

ऐसा लगता है कि मोदी सरकार का ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का नारा बीमा क्षेत्र की कंपनियों के कानों तक नहीं पहुंचा है। अगर पहुंचा भी है तो भी बीमा क्षेत्र की सरकारी व निजी कंपनियां इस नारे को ताक पर रखने में कोई परहेज नहीं कर रही हैं। बीमा क्षेत्र की नियामक एजेंसी बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आइआरडीए) के आंकड़े अपने आप में ही इस तथ्य को उजागर करते हैं कि साधारण बीमा क्षेत्र में क्लेम लेने की मुश्किल कितनी है।

इन आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016-17 में साधारण बीमा क्षेत्र की सरकारी कंपनियों का क्लेम रेश्यो (ग्राहकों की तरफ से आए कुल क्लेम और वास्तविक भुगतान का अनुपात) 100.02 फीसद से घट कर 2017-18 में 93.73 फीसद हो गया था। निजी क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों के लिए तो यह अनुपात 79.1 फीसद से घट कर 75.46 फीसद रह गया है।

दैनिक जागरण की छानबीन से पता चलता है कि फायर इंश्योरेंस यानी अग्नि बीमा को लेकर बीमा कंपनियों का रवैया खासतौर पर बेहद टालमटोल वाला रहता है। यही वजह है कि फायर इंश्योरेंस में क्लेम रेश्यो सबसे खराब है। बीमा के इंतजार में महीनों तो क्या, वर्षो का इंतजार भी कम पड़ जाता है और व्यवसाय प्रभावित होता है। वर्ष 2017-18 में अग्नि बीमा क्षेत्र में सरकारी बीमा कंपनियों का क्लेम रेश्यो 91.31 फीसद था जबकि निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों के लिए यह अनुपात महज 47.19 फीसद था।

निजी बीमा कंपनियों के लिए यह अनुपात एक वित्त वर्ष पहले (2016-17) में 52.37 फीसद का था। जबकि फायर इंश्योरेंस से इन कंपनियों का प्रीमियम रेवेन्यू बीमा क्षेत्र में सबसे ज्यादा है। सिर्फ जुलाई, 2019 के आंकड़े को देखें तो पता चलता है कि सभी तरह के साधारण बीमा उत्पादों के प्रीमियम रेवेन्यू में अगर 11.9 फीसद का इजाफा हुआ है तो अग्नि बीमा क्षेत्र से मिलने वाले प्रीमियम में 49.7 फीसद की वृद्धि हुई है।

दूसरे शब्दों में कहें तो अग्नि बीमा से होने वाली कमाई बढ़ती जा रही है लेकिन आवश्यकता पड़ने पर ग्राहकों को इसके क्लेम भुगतान में कमी आ रही है। ये कंपनियां बीमा ग्राहकों के क्लेम को रिजेक्ट करने के लिए एक से बढ़कर एक बहाने भी बनाती हैं। मसलन, मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक किसी भी तरह के दुर्घटना क्लेम का निपटान 30 दिनों के भीतर किए जाने की व्यवस्था है। लेकिन दैनिक जागरण की बात कुछ ऐसे ग्राहकों से भी हुई जो महीनों से नहीं, बल्कि वर्षो से बीमा कंपनियों के दफ्तर के चक्कर लगा रही हैं।

कई बार ये कंपनियां अपने सर्वेयर की रिपोर्ट को भी नहीं मानतीं और ग्राहकों के क्लेम को चुकाने में आनाकानी करती हैं। चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस के ग्राहक नरेश कुमार कौशिक कहते हैं कि उन्हें कंपनी के एक व्यक्ति ने प्रीमियम में छूट दी। लेकिन उनके क्लेम को इस आधार पर ठुकराया गया कि उन्होंने डिस्काउंट पर बीमा करवा रखा है। कंपनियों की मनमानी के सामने आइआरडीए भी असहाय दिखता है।

इंश्योरेंस ब्रोकर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के निदेशक किशन अग्रवाल के मुताबिक, ‘साधारण बीमा कारोबार में स्वास्थ्य और मोटर बीमा तो काफी हद तक कैशलेस हो गया है, लेकिन दुर्घटना बीमा को लेकर यह स्थिति नहीं बन पाई है। इसलिए ग्राहकों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जहां तक अग्नि बीमा का सवाल है तो उनकी प्रक्रिया काफी लंबी है। क्लेम लेने के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं।’

देश के करोड़ो कारोबारियों के संगठन कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने बताया, ‘कारोबारी समुदाय के लिए बीमा क्लेम हासिल करना दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है। अग्नि, चोरी जैसे बीमा के लिए तो कंपनियों की मंशा यही होती है कि किसी तरह से क्लेम का भुगतान नहीं करना पड़े। रोजाना अलग-अलग कागज मांगे जाते हैं। बार-बार सर्वेयर भेजे जाते हैं। अपने ही सर्वेयर की रिपोर्ट को नकार कर नए सर्वेयर भेजकर परेशानी खड़ी की जाती है ताकि कम पैसे देने पड़ें।

जब तक सरकार और आइआरडीए की तरफ से कंपनियों की तरफ से होने वाली देरी पर सख्त जुर्माने का प्रावधान नहीं होगा तब तक स्थिति नहीं सुधरेगी।’आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड के प्रमुख (अंडरराइटिंग, रिइंश्योरेंस व क्लेम्स) संजय दत्ता का कहना है कि क्लेम लेने में होने वाली परेशानी के पीछे एक बड़ी वजह जागरूकता का अभाव भी है। किस तरह की सूचना देनी है, कब देनी है, इसका भी काफी महत्व होता है।

कई बार ग्राहक पॉलिसी को समझ भी नहीं पाते और इसकी वजह से भी बाद में क्लेम लेने में परेशानी आती है। बजाज आलियांज के सीआर मोहन ने भी कहा कि बीमित वस्तु के कुल मूल्य की सही जानकारी नहीं देने से भी दिक्कत आती है।

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