बिहार में ‘झोला छाप डॉक्टरों’ को लेकर क्यों मचा हैं बवाल ?

न्यूज डेस्क
नीति आयोग ने जून 2019 में स्वास्थ्य के मामलों में भारत के राज्यों की जो रैंकिंग बनाई थी, उसमें बिहार का नम्बर 21वां था। वहीं बिहार सरकार ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में भी बताया था कि उसके पास जितनी जरूरत है उसकी तुलना में 57 फीसदी डॉक्टर कम हैं और 71 फीसदी नर्सों की कमी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को 21 दिन के लिए पूरे देश को लॉकडाउन करने की घोषणा की थी। 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद बिहार में दूसरे राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आए। वहीं नीतीश कुमार ने पहले ही कहा था कि बाहर से आने वाले लोगों के लिए उनके घर के पास बने अस्थायी क्वारंटाइन सेंटर में 14 दिनों के लिए रखा जाएगा। स्वास्थ्य विभाग वैसा ही कर रहा है लेकिन डॉक्टरों की कमी आड़े आ रही है।
एक ओर डॉक्टरों की कमी तो वहीं दूसरी ओर झोला छाप डॉक्टरों को लेकर बिहार के स्वास्थ्य विभाग में बवाल मचा हुआ है। दरअसल यह बवाल एक सिविल सर्जन के आदेश को लेकर हुआ है।
सिवान के सिविल सर्जन ने 25 मार्च को एक आदेश जारी किया जिसमें लिखा गया, “कोरोना वायरस से बचाव हेतु सभी प्रखंडों में झोला छाप चिकित्सकों को चिन्हित करते हुए उनसे इलाज हेतु सहमति पत्र लेते हुए प्रशिक्षण देना है। इसलिए अपने क्षेत्र के झोला छाप चिकित्सकों की सूची व मोबाइल नंबर भेजकर 26 मार्च से प्रशिक्षण देना शुरू करें।”
यह भी पढ़े:  किस देश ने कहा कि पत्नियां घर पर भी सज सवंर कर रहें और पति को ‘तंग’ न करें

कोरोना संदिग्धों के इलाज के लिए सिविल सर्जन द्वारा झोला छाप डॉक्टरों की मदद लेने के आदेश की कॉपी जब सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और WHO के गाइडलाइन के उल्लंघन का मामला बना, तब बिहार सरकार ने उक्त आदेश को रद्द करते हुए सिविल सर्जन को निलंबित करने का नया फरमान जारी कर दिया।
स्वास्थ्य विभाग के नए आदेश में लिखा हुआ है, “सिविल सर्जन के इस तरह आदेश जारी करने से कोविड-19 के संक्रमण के रोकथाम के लिए विभाग और सरकार द्वारा किए जा रहे सारे प्रयास अंडरमाइन प्रतीत होते हैं। ऐसा आदेश जारी करने से पहले न तो विभाग से सूचना ली गई और ना ही सूचना दी गई। पत्र के सोशल मीडिया पर वायरल होने से विभाग को आलोचना का शिकार होना पड़ा। सिविल सर्जन के ऐसे आदेश से पूरे देश में बिहार के स्वास्थ्य विभाग की छवि धूमिल हुई।”
सिवान के जिस सिविल सर्जन ने यह आदेश जारी किया था, उनका नाम डॉ. अशेष कुमार है। सिवान ही वह जिला भी है जहां अब तक विदेश से आए सबसे अधिक लोगों को कोरोना के संदिग्ध के तौर पर सर्विलांस में रखा गया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार झोलाछाप डॉक्टरों की मदद लेने पर अपने निलंबन से पहले उन्होंने कहा, “गांव में एमबीबीएस डॉक्टर हम कहां से लाएं? शहरों में तो एमबीबीएस मिल नहीं रहे। वैसे भी गांव में लोग इन्हीं झोला छाप डाक्टरों के पास जाते हैं। ऐसे हालात में वही काम आएंगे। ”
अब जब वह निलंबित हो गए हैं, तब उन्होंने कहा, “काम का बोझ इतना अधिक था कि साइन करते वक्त देख नहीं सके थे कि झोला-छाप लिखा हुआ है। दरअसल, हमने अपने अफसरों को उन डॉक्टरों की मदद लेने को कहा था जो ग्रामीण स्तर पर चिकित्सा का काम करते हैं। ”
यह भी पढ़े: पीएम मोदी के अपील के बाद क्‍या बोले अखिलेश और मायावती

बिहार के स्वास्थ्य विभाग ने सिविल सर्जन को निलंबित कर दिया लेकिन अब जो आदेश पारित किया है उसमें से झोलाछाप डाक्टरों का जिक्र हटा दें तो वह आदेश सिविल सर्जन के आदेश से मिलता-जुलता है। स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों के सिविल सर्जन को यह जिम्मेदारी दी थी कि वे अपने जिले के निजी अस्पतालों के डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और ग्रामीण स्तर पर चिकित्सा कार्य कर रहे लोगों की सूची तैयार कर उन्हें क्वारंटाइन सेंटर की व्यवस्था में लगाया जाए।
स्वास्थ्य विभाग ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि बिहार जितनी बड़ी आबादी के लिहाज़ से न तो यहां सरकारी डॉक्टर हैं और ना ही इंतज़ाम।
WHO के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना जरूरी है। मगर बिहार में यह अनुपात काफी कम है। यहां 28 हजार की आबादी की आबादी पर एक डॉक्टर हैं और एक लाख की आबादी पर एक बेड उपलब्ध है।
जहां तक बात बिहार में झोला छाप डॉक्टरों की है तो सरकार इन डाक्टरों की ट्रेनिंग देने का कोर्स ख़ुद कराती है। हृढ्ढह्रस् के जरिए एक तीन महीने का और एक पांच महीने का ट्रेनिंग प्रोग्राम चलता है। जितने भी झोला छाप डॉक्टर हैं, उन्होंने इस कोर्स में दाखिला लिया है ताकि उन्हें सरकारी मान्यता मिल जाए। सरकार यही चाहती भी है। फिर सवाल उठता है कि उनसे सेवा लेने में दिक्कत क्या है।
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में झोला छाप डॉक्टरों वाले आदेश को भले अब कागजों पर वापस ले लिया गया हो, मगर सच्चाई यही है कि स्कूलों में बने क्वारंटाइन सेंटर और गांवों में जिला प्रशासन की टीम इन्हीं डॉक्टरों से काम करा रही है। गांव में बने क्वारंटाइन सेंटरों में जांच के नाम पर खाना पूर्ति होने की बात कही जा रही है। वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं।
गया के बाराचट्टी प्रखंड के पीएचसी के एक वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि क्वारंटाइन सेंटर पर बिहार में बाहर से आए लोगों का केवल नाम-पता दर्ज कर लिया जा रहा है और क्वारंटाइन का ठप्पा लगा दिया जा रहा है। उसी वीडियो में जब जांच करा रहे लोग इस पर सवाल उठाते हैं तो ड्यूटी पर तैनात अधिकारी कहते हैं, “हमारे पास जो व्यवस्था दिया गया है, उसी में न करेंगे। आपको ज़्यादा जांच करानी है तो कहीं और चले जाइए।”
यह भी पढ़े: ‘कोविड केयर फंड’ बनाने वाला पहला राज्‍य बना यूपी

Back to top button