बिहार: पासवान का गढ़ है यह सीट, इस बार होगा नया चेहरा…

पटना से सटा हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र कई मायनों में अहम है. इसी क्षेत्र से मौजूदा केंद्रीय खाद्य मंत्री राम विलास पासवान आते हैं. पासवान ने कभी यहां से जीत का रिकॉर्ड कायम किया है. पासवान के साथ एक रिकॉर्ड यह भी है कि वे यहां से 8 बार सांसद रह चुके हैं. राजनीतिक करियर में उनका 40 साल इसी संसदीय क्षेत्र की नुमाइंदगी करते गुजरा है. हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में पासवान को रामसुंदर दास के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था. दास तब जदयू के टिकट पर चुनाव जीते थे. हाजीपुर सीट एससी आरक्षित है.बिहार: पासवान का गढ़ है यह सीट, इस बार होगा नया चेहरा...

पासवान को दो बार यहां इतने वोट मिले कि रिकॉर्ड बन गया. इसी सीट पर पहली बार कांग्रेस के उम्मीदवार ने चुनाव जीता था. बीजेपी अभी तक इस सीट पर खाता भी नहीं खोल पाई है.

हाजीपुर में छह विधानसभा सीटें

हाजीपुर संसदीय क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इनके नाम हैं-हाजीपुर, लालगंज, महुआ, राजा पाकर, राघोपुर और महनार.  राघोपुर और लालगंज क्षेत्र ऐसा है जहां से लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी का कब्जा रहा है. उनके बेटे तेजस्वी यादव यहीं से विधायक हैं. जीत का हिसाब देखें तो 2015 के विधानसभा चुनाव में 6 में से 3 सीटों पर आरजेडी और 1-1 सीट पर बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी ने जीत हासिल की है.

कब कौन बना सांसद

1952-आजादी बाद इस साल देश में पहली बार संसदीय चुनाव हुए. चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजेश्वर पटेल जीते और पहली बार सांसद बने.

1957- इस चुनाव में भी राजेश्वर पटेल जीते और सांसद बने. उनकी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी. कांग्रेस के लिए यह चुनाव काफी भाग्यशाली रही क्योंकि उसके कुल 490 उम्मीदवारों में 371 ने जीत दर्ज की थी. तब 490 सीटों पर चुनाव हुए थे.

1962- 62 के चुनाव में भी राजेश्वर पटेल ने बाजी मार ली. इसी के साथ कांग्रेस यहां तीन बार विजेता बनकर उभरी. यह चुनाव इसलिए खास रही क्योंकि 57 में प्रधानमंत्री बने जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में पूरे देश में चुनाव लड़ा गया था और कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत मिली थी.

1967-यह चुनाव भी कांग्रेस के नाम रहा लेकिन विजयी उम्मीदवार राजेश्वर पटेल नहीं थे. पटेल की जगह पर कांग्रेस ने वाल्मिकि चौधरी को मैदान में उतारा था. हालांकि चौधरी ने पटेल की विरासत को आगे बढ़ाते हुए अच्छी-खासी जीत दर्ज की.

1971-पांचवें संसदीय चुनाव में कांग्रेस फिर बाजी मार ले गई और सांसद बने रामशेखर प्रसाद सिंह. इस साल पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी. 1971 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत दिलाई थी. ‘गरीबी हटाओ’ का चुनावी नारा इतना असर कर गया कि कांग्रेस की झोली में 352 सीटें आ गईं. पिछले चुनावों में कांग्रेस को 283 सीटें मिली थीं.

1977-इस साल देश का माहौल पूरी तरह बदल गया और कांग्रेस की आंधी लगभग समाप्त सी हो गई. कारण कांग्रेस और इंदिरा गांधी की ओर से घोषित आपातकाल रहा. इसका असर हाजीपुर चुनाव पर भी दिखा और कांग्रेस की करारी हार हुई. जनता पार्टी के टिकट पर रामविलास पासवान पहली बार यहां से संसद चुने गए.

1980-मात्र 3 साल बाद देश को फिर संसदीय चुनाव का मुंह देखना पड़ा. आपातकाल के विरोध के नाम पर जनता पार्टी ने कांग्रेस को हराया जरूर लेकिन उसकी स्थिति मजबूत नहीं रही. विरोधी लहर के बावजूद हाजीपुर सीट बचाने में रामविलास पासवान सफल रहे और उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर दोबारा चुनाव जीता.

1984-31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी.  कांग्रेस के लिए यह सहानुभूति का बड़ा अवसर लेकर आया और पार्टी ने देश में कई सीटें झटकीं. हाजीपुर में भी कांग्रेस के राम रतन राम चुनाव जीत कर संसद पहुंचे.

1989-कांग्रेस हालांकि यहां अपना जलवा बरकरार न रख सकी और 89 के 9वीं लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान फिर सांसद चुन लिए गए. तब उनकी पार्टी जनता पार्टी न होकर जनता दल हो चुकी थी.

1991-इस चुनाव में राम विलास पासवान की जगह जनता दल ने दलितों के चिरपरिचित नेता राम सुंदर दास को उम्मीदवार बनाया और उन्होंने बंपर जीत दर्ज की. इस साल के 10वीं लोकसभा चुनाव मध्यावधि थे क्योंकि पिछली लोकसभा को सरकार के गठन के सिर्फ 16 महीने बाद भंग कर दिया गया था.

1996-इस साल राम सुंदर दास की जगह रामविलास पासवान जनता दल के टिकट पर फिर सांसद चुने गए. यह उनकी चौथी जीत थी. हालांकि इस साल संसद में त्रिशंकु सरकार बनी और 2 साल तक घोर राजनीतिक अस्थिरता रही जिसमें 3 प्रधानमंत्रियों ने कार्यकाल संभाला.

1998-जनता दल के उम्मीदवार रहे रामविलास पासवान फिर सांसद चुने गए. यह उनकी पांचवीं जीत थी. मई 1996 के आम चुनावों से 18 महीनों बाद ही संयुक्त मोर्चा की दूसरी सरकार 28 नवंबर, 1997 को गिर गई थी. इसके बाद चुनाव हुए जिसमें पासवान हाजीपुर से जीत कर संसद पहुंचे.

1999-98 की केंद्र सरकार मात्र एक साल चली और 99 में फिर चुनाव हुए. 17 अप्रैल 1999 को वाजपेयी ने लोकसभा में विश्वास मत खो दिया और उनकी गठबंधन सरकार ने इस्तीफा दे दिया. 99 में फिर चुनाव हुए और रामविलास पासवान जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर उम्मीदवार बने. उन्होंने यहां से बंपर जीत दर्ज की.

2004-इस साल भी रामविलास पासवान चुनाव जीत गए. उनकी पार्टी  जेडीयू थी. यह 14वीं लोकसभा थी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में बीजेपी की एनडीए सरकार ने 2004 में 5 साल पूरे किए और 20 अप्रैल से 10 मई 2004 के बीच 4 चरणों के चुनाव हुए.

2009-इस साल जेडीयू ने राम सुंदर दास को टिकट दिया और उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की. 1977 के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब रामविलास पासवान चुनाव हारे. इस साल कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए गठबंधन ने केंद्र में सरकार बनाया.

2014 – इस साल रामविलास पासवान हाजीपुर से फिर सांसद चुने गए. पासवान 8वीं बार लोकसभा के सांसद चुने गए.

सीट का समीकरण

इस सीट पर अबतक 15 बार संसदीय चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को 4 बार, कांग्रेस (गठबंधन) को 1 बार, जनता पार्टी को 2 बार, जनता दल को 4 बार, जेडीयू को 2 बार और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) को 2 बार जीत मिली है. इस सीट पर बीजेपी और आरजेडी एक बार भी चुनाव नहीं जीत पाई है. रामविलास पासवान इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे क्योंकि उन्होंने तबीयत का हवाला देते हुए राज्यसभा जाने का फैसला किया है.

पासवान का सांसद निधि खर्च

हाजीपुर संसदीय क्षेत्र के लिए 25 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित है. भारत सरकार ने कुल 25 करोड़ रुपए जारी किए. ब्याज के साथ यह राशि 26.64 करोड़ रुपए हुई. सांसद पासवान ने अपने क्षेत्र के लिए 71.42 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा जिसमें 25.83 करोड़ रुपए पास हुए. इसमें 23.81 करोड़ रुपए खर्च हुए. कुल राशि का 94.35 प्रतिशत हिस्सा खर्च हुआ और 2.83 प्रतिशत बचा रह गया.

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