बिहार चुनाव : सुशांत की मौत के शोर में गुम हुए बुनियादी मसाएल

राजनितिक डेस्क। बिहार आज भी एक बीमार सूबा माना जाता है। इस समय वह बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहा है। कोरोना का संक्रमण भी तेजी फैल रहा है। कोरोना काल में सूबे में रोजगार का संकट और गहरा हुआ है। आबादी के एक बड़े हिस्से को भरपेट भोजन नसीब नहीं हो रहा है। लेकिन ये सारे मसायल सत्तारूढ़ जनता दल (यू) और भाजपा समेत किसी भी सियासी पार्टी के एजेंडे में नहीं हैं। इस समय सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए अहम मुद्दा अभिनेता सुशांत राजपूत की मौत है।

बिहार में चुनावी सरगर्मियां चरम पर हैं। असली मुद्दे ओझल हो चुके हैं। तरह-तरह के दाव-पेंच आजमाए जा रहे हैं। सूबे की गठबंधन सरकार में साझीदार भाजपा ने सुशांत सिंह राजपूत की तस्वीर के साथ एक पोस्टर तैयार किया है, जिसका शीर्षक है- ‘जस्टिस फॉर सुशांत: ना भूले हैं ना भूलने देंगे!’ इस पोस्टर पर सुशांत की तस्वीर के साथ ही भाजपा का चुनाव चिन्ह भी अंकित है। इसके अलावा वाहनों पर लगाने के लिए भी इसी तरह के स्टिकर और पर्चे भी घर-घर बांटे जा रहे हैं। सुशांत की मौत की जांच की मांग को लेकर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली अभिनेत्री कंगना राणावत को भी भाजपा ने सर-माथे बैठा लिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उसे वाई श्रेणी की सुरक्षा भी मुहैया करा दी।
स्पष्ट है कि जदयू -भाजपा गठबंधन बिहार चुनाव में एक नशेड़ी अभिनेता की मौत को क्षेत्रीय और जातीय अस्मिता का मुद्दा बनाकर भुनाने की तैयारी में है। वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त अभिनेत्री कंगना उसकी स्टार प्रचारक होगी, जो खुद भी नशीले पदार्थों का सेवन करते रहने की बात कुबूल कर चुकी है। भाजपा की यह रणनीति उसके सहयोगी और बिहार में सरकार का नेतृत्व कर रहे जदयू को भी रास आ रही है, क्योंकि सुशांत की मौत के शोर में बिहार के तमाम बुनियादी मुद्दे दब गए हैं।
नितीश सरकार के पास वैसे भी उपलब्धि के नाम पर लोगों को दिखाने के लिए कुछ ख़ास नहीं है। नितीश सरकार कोरोना महामारी से निबटने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। लॉकडाउन के दौरान देश के विभिन्न महानगरों से लौटे करीब 50 लाख प्रवासी मजदूरों ने सूबे में पहले से ही जारी रोजगार के संकट को और भी गहरा दिया है, जिससे निबटने के लिए सरकार के पास कोई नीति नहीं है। बची-खुची कसर बाढ़ ने पूरी कर दी है। लाखों लोग बेघर हो गए हैं, उनकी खेती-बाड़ी और मकान बर्बाद हो गए हैं। सूबे की कानून-व्यवस्था भगवान भरोसे है।
इन तमाम अहम और बुनियादी मुद्दों फ़िक्र न तो सत्तारूढ़ गठबंधन को फिक्र और न ही विपक्षी दलों को। सभी पार्टियां सुशांत के परिवार को न्याय दिलाने में जुटी हैं। हर कोई बिहारी अस्मिता की रक्षा के लिए ताल ठोक रहा है। ये कवायद बिहार के 5.2 फीसद राजपूत वोटों और 17 फीसद सवर्ण मतदाताओं के वोटों को सहेजने के लिए हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि बिहार की जाति आधारित राजनीति में भूमिहार और राजपूत अलग-अलग रहते हैं। चूंकि भूमिहार समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा से जुड़ा है, इसलिए राजपूत समुदाय का समर्थन हर चुनाव में आम तौर पर राजद को मिलता है। इसलिए राजद भी सुशांत के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए ताल थोक रही है। कांग्रेस का बिहार में कोई ख़ास वजूद रह नहीं गया है। ऐसी स्थिति में सवर्ण और कुर्मी वोटरों के सहारे भाजपा-जदयू गठबंधन सत्ता में वापसी की राह बना रहा है।
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