बिहार के कई जिलों में चमकी बुखार ने बरपाया कहर, जरा सी सावधानी हो तो जानलेवा नहीं ये बीमारी
बिहार के कई जिलों में चमकी बुखार या Acute Encephalitis Syndrome ने कहर बरपा रखा है। इस बीमारी से अबतक 150 बच्चों की जान चली गई है और मौत का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीमारी में सबसे बड़ी बात ये सामने आई है कि जो बच्चे मर रहे हैं वह कुपोषण के शिकार हैं, गरीब हैं और गांवों में रहते हैं। इस अज्ञात बीमारी से मरने वालों में कोई शहरी बच्चा शामिल नहीं है।
गर्मी और चमकी बुखार का है सीधा कनेक्शन
डॉक्टरों की मानें तो गर्मी और चमकी बुखार का सीधा कनेक्शन होता है और जो बच्चे भरी दोपहरी में नंग-धड़ंग गांव के खेत खलिहान में खेलने निकल जाते हैं। जो पानी कम पीते हैं और सूर्य की गर्मी सीधा उनके शरीर को हिट करती है, तो वे दिमागी बुखार के गिरफ्त में पड़ जाते हैं। इसके अलावा जानकारी और जागरूकता की कमी ने भी इस बीमारी को भयावह बना दिया है।
इस बारे में पीएमसीएच के शिशु रोग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर एके जायसवाल ने जागरण.कॉम से विस्तृत बात की और बताया कि दरअसल दिमागी बुखार का दायरा बहुत विस्तृत है जिसमें अनेक संक्रमण शामिल होते हैं और ये छोटे बच्चों को प्रभावित करते हैं, जिससे बच्चा मस्तिष्क बुखार या मस्तिष्क में हुए इन्फेक्शन से ग्रसित हो जाता है।
हर साल ये रहस्यमयी बीमारी लील लेती है बच्चों की जान
हर साल इस रहस्यमयी बीमारी से काफी संख्या में बच्चों की मौत हो जाती है। कुछ तो लापरवाही की वजह से तो कुछ जागरूकता के अभाव के कारण भी ये बीमारी लोगों के बीच भयावह बन गई है। आज सामान्य बुखार होने पर भी लोग डर जा रहे हैं। पीएमसीएच में इस बीमारी के इलाज की पूरी व्यवस्था की गई है और ये बीमारी लाइलाज नहीं है।
उन्होंने बताया कि इस बीमारी में मस्तिष्क का इन्फेक्शन, मस्तिष्क में मलेरिया और दिमागी बुखार से बच्चा पीड़ित हो जाता है जिसकी वजह से ब्लड में शुगर की कमी हो जाती है और ब्रेन डैमेज होने लगता है, जिससे बच्चे की मौत हो जाती है।
बचायी जा सकती है बच्चों की जान, करें ऐसा
अगर थोड़ा-सा पहले ध्यान दिया जाए और बच्चे के बुखार को कम करने के लिए प्राथमिक उपचार के तौर पर ठंडे पानी की पट्टी दी जाए और दवाएं देकर बुखार को कम किया जाए और लापरवाही छोड़कर तत्काल बच्चे को अस्पताल में एडमिट किया जाए तो उपचार से उसे ठीक किया जा सकता है। हालांकि, अस्पताल में एडमिट करने में देर करना ही खतरनाक होता है।
ये बीमारी 1 से 15 वर्ष के कुपोषित बच्चों को ही अपना शिकार बनाती है। ये बच्चे गर्मी में बिना खाना-पानी की परवाह किये धूप में खेलते हैं,चमकी बुखार की चपेट में आते हैं और प्राथमिक उपचार के अभाव में अस्पताल जाते-जाते दम तोड़ देते हैं।
टीकाकरण जरूरी है
डॉक्टर जायसवाल ने बताया कि इस बीमारी से बचाव के लिए सरकारी अस्पतालों में टीका उपलब्ध है, जिसे प्रभावित इलाके के बच्चों को जरूर दिलवाना चाहिए था, जिससे इसपर काबू पाया जा सकता था। हालांकि, अब जागरूकता फैलानी होगी और टीकाकरण के लिए लोगों को प्रेरित करना होगा। टीकाकरण और बच्चों पर ध्यान देकर, बीमार होने पर तुरत इलाज कराने से इस बीमारी से कुछ हद तक बचा जा सकता है।
एईएस, एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम है क्या
डॉक्टर जायसवाल ने बताया कि ये बीमारी अभी भी रहस्यमयी बनी हुई है, इसे लेकर रिसर्च चल रहा है कि आखिर ये है क्या? इससे होनेवाली मौतों में कई तरह की बीमारियां सामने आई हैं और इसी वजह से इस एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम नाम दिया गया है। इसमें पांच-छः तरह की बीमारियां सामने आई हैं, जिससे पीड़ित बच्चे की मौत हो जाती है।
क्यों कहते हैं चमकी बुखार
इसमें तेज बुखार आता है और शरीर में ऐंठन होती है। जिस तरह से मिर्गी का दौरा पड़ता है उसी तरह से बच्चा कांपने लगता है, इसलिए इसे सामान्य बोलचाल की भाषा में चमकी बुखार भी कहते हैं। दरअसल मस्तिष्क ज्वर के मरीजों में जो लक्षण पाये जाते हैं वही लक्षण चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों में भी पाये गए हैं। चमकी की चपेट में आए मरीजों में वायरस नहीं पाया गया, बल्कि इनके ब्लड शुगर में कमी पाई गई।
अधपकी लीची भी हो सकती है वजह
इस बीमारी का रिश्ता लीची से भी जोड़ा जाता रहा है, जो लंदन के एक मेडिकल जर्नल ‘द लैन्सेट’ में प्रकाशित शोध के बाद कायम हुआ। इस जर्नल में कहा गया है कि लीची में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थ हाइपोग्लाइसीन-ए और मिथाइल इनसाइक्लोप्रोपीलग्लाइसीन जो अधपकी लीची में पाया जाता है और ये दोनों रसायन पूरे पके हुए लीची के फल में कम मात्रा में पाए जाते हैं। ये दोनों शरीर में फैटी एसिड मेटाबॉलिज्म बनने में रुकावट पैदा करते हैं। लिहाजा खाली पेट अधपकी लीची खाने से शरीर में ब्लड शुगर अचानक कम हो जाता है।
खासकर तब जब रात का खाना न खाने की वजह से शरीर में ब्लड शुगर का लेवल पहले से कम हो और सुबह खाली पेट लीची खा ली जाए तो चमकी बुखार का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, लीची ही इस बीमारी की वजह नहीं है।
कहा-एसकेएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ ने
मैं 14 साल से इस बीमारी से ग्रसित मरीजों को देख रहा हूंं। 2005 में मैंने इस पर शोध भी किया। यह बीमारी वस्तुत: अधिक तापमान और आर्द्रता के असर का नतीजा है। कुछ लोग इसकी वजह लीची बताते हैं। यह बेकार की बात है। मेरी नजर में मौसम ही इसकी सबसे बड़ी वजह है।
डॉ.गोपाल शंकर सहनी, अध्यक्ष, शिशु रोग विभाग, एसकेएमसीएच
कुपोषण और पौष्टिक आहार की कमी से होता है हाइपोग्लाइसीमिया
बिहार में डीएचएस के पूर्व निदेशक कविंदर सिन्हा ने कहा, ‘हाइपोग्लाइसीमिया कोई लक्षण नहीं, बल्कि दिमागी बुखार का संकेत है। बिहार में बच्चों को हुए दिमागी बुखार का संबंध हाइपोग्लाइसीमिया के साथ पाया गया है।यह हाइपोग्लाइसीमिया कुपोषण और पौष्टिक आहार की कमी के कारण होता है।’
मौसम भी है एक बड़ी वजह
इस रहस्यमयी बीमारी की एक वजह मौसम भी है, क्योंकि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है वैसे ही यह बीमारी भी बढ़ती जाती है। इस साल पड़ रही भीषण गर्मी की वजह से भी इस बीमारी ने विकराल रूप धारण कर लिया है और कई जिलों को अपनी चपेट में ले लिया है। बारिश होने पर थोड़ी ठंडक हो जाने पर धीरे-धीरे इसका असर भी कम हो जाता है।
इस बीमारी से बचने के उपाय
बच्चों को भरपेट भोजन कराएं।
मच्छर से बचाएं।
टीका जरूर लगवाएं।
तेज धूप में बच्चों को खेलने ना दें।
बुखार हो तो तुरत बुखार कम करने की दवा दें।
बुखार बढ़े तो बच्चे को तुरंत अस्पताल में भर्ती करें।