बांबे हाई कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई करते हुए यह कहा…

हर नागरिक के साथ चाहे वह गरीब हो या अमीर सरकार सम्मान के साथ पेश आए। बांबे हाई कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई करते हुए यह कहा। करीब 15000 परिवारों को मुंबई के रासायनिक प्रदूषण से प्रभावित माहुल इलाके में रहने के लिए मजबूर करने पर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की खिंचाई की है।

चीफ जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और जस्टिस भारती डंगरे ने नूह की बाइबिल कथा का उल्लेख भी किया। पीठ ने कहा, ‘जब सैलाब आया तो नूह ने एक भी पशु को नहीं छोड़ा बल्कि सभी को अपनी नाव पर सवार करा लिया। उसी प्रकार आप अपने हर नागरिक चाहे वह गरीब हो या अमीर सभी के हितों का ध्यान रखें।’ पीठ बृहन्मुंबई म्यूनिसिपल कारपोरेशन के तोड़-फोड़ अभियान से प्रभावित कुछ निवासियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचियों ने कहा है कि नगर निकाय ने उन्हें निवास के लिए वैकल्पिक स्थान लेने के लिए मुआवजा देने से इन्कार किया है।

करीब 15000 परिवार या 60,000 लोग बीएमसी के सभी प्रकार के अतिक्रमण या गैरकानूनी निर्माण हटाने की कार्रवाई से प्रभावित हुए हैं। बीएमसी ने शहर में टेंसा जल पाइपलाइन के साथ ऐसे निर्माणों को हटाने का काम किया है। वहां रहने वालों को उपनगरीय क्षेत्र चेंबुर के समीप माहुल में वैकल्पिक निवास मुहैया कराने का फैसला लिया गया। हालांकि यह क्षेत्र तीन रिफाइनरी और एक रासायनिक कारखाने से घिरा है। 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे निवास के अयोग्य घोषित किया था। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बांबे ने भी इस साल निवास योग्य नहीं माना। लोगों ने इस इलाके में रहने से मना कर दिया और हाई कोर्ट पहुंचे।

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