बच्चे सिर्फ प्रॉपर्टी पर हक न जताएं, माता-पिता की जिम्मेदारी भी उठाएं

मुंबई. बच्चे सिर्फ अपने माता पिता की संपति पर हक ही न जताए बल्कि उनकी देखरेख की जिम्मेदारी भी उठाए। जैसे बचपन में अभिभावक अपने बच्चों की देखरेख करते है वैसे ही बच्चों को बुढ़ापे में अपने बुजुर्ग माता-पिता की जिम्मेदारी संभालनी चाहिए। बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति साधना जाधव ने पिता के घर पर अवैध रूप से कब्जा करनेवाले बेटे को घर खाली करने का आदेश देते हुए यह बात कही है। न्यायमूर्ति ने कहा कि यदि बेटा घर खाली नहीं करता है तो माता-पिता पुलिस का भी सहयोग ले सकते हैं।
बच्चे सिर्फ प्रॉपर्टी पर हक न जताएं, माता-पिता की जिम्मेदारी भी उठाएं
 
न्यायमूर्ति ने कहा कि यह मामला गिरते सामाजिक मूल्यों की ओर इशारा करता है। इसलिए सरकार को मेंटेनेंस एंड वेलफेयर आॅफ पैरेंट एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के प्रावधानों को सख्ती से लागू करना चाहिए। इसके साथ ही सरकार का गृह व स्वास्थ्य विभाग वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण को आश्वस्त करे। इसके साथ ही माता-पिता को सरंक्षण देने व उनकी देखरेख की खातिर बनाए गए कानून का व्यापक रूप से मीडिया, टेलीविजन व रेडियों में प्रचार-प्रसार करे साथ ही लोगों में इस कानून के प्रति जागरुकता फैलाए।

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वृद्धा अवस्था में पिता-पुत्र के झगड़े के मामले को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण मानते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि हर धर्म व संस्कृति में माता-पिता की देखरेख का जिक्र किया गया है लेकिन कहीं न कहीं लोग अभिभावकों की सेवा से विमुख हो रहे हैं इसलिए सरकार ने माता-पिता की देखरेख के लिए विशेष कानून बनाया है। सरकार इसका प्रभावी ढंग से अमल भी सुनिश्चित करे।

 
यह है मामला
मामला एक निजी कंपनी में सुपरवाइज पद से सेवानिवृत्त हुए व्यक्ति का है। जिसके बेटे ने धोखे से पिता के हस्ताक्षर स्टैंप पेपर पर लेकर पिता के पुणे स्थित बंगले के एक हिस्से में कब्जा जमा लिया था। सेवानिवृत्त हाेने के बाद पिता ने दो मंजिला घर बनवाया था ताकि वे ऊपर का हिस्सा किराए पर दे सके जिससे उन्हें थोड़ी आमदनी मिलती रहे। निजी कंपनी से सेवानिवृत्त होने के चलते पिता को पेंशन नहीं मिलती थी। मां मुख्य अध्यापिका के रूप में सेवानिवृत्त हुई थी, इसलिए उन्हें पेंशन मिलती थी। इस बीच जब पिता बीमार पड़े तो बेटे ने उनके इलाज में कोई सहयोग नहीं किया। यहीं नहीं बेटे ने घर के निचले हिस्से पर कब्जा भी जमा लिया। इसके बाद पिता ने पुणे के अतिरिक्त जिलाधिकारी के पास शिकायत की।
 
जिलाधिकारी व उपविभागीय अधिकारी ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाया और घर खाली करने का आदेश दिया। जिसे बेटे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। न्यायमूर्ति ने न सिर्फ बेटे की याचिका को खारिज कर दिया बल्कि अपने मां व पिता को दो हजार रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने को कहा। इसके साथ 25 हजार रुपए मुकदमे के खर्च के रूप में भी देने का निर्देश दिया। अदालत ने मामले को लेकर अतिरिक्त जिलाधिकारी के आदेश को कायम रखा। न्यायमूर्ति ने कहा कि इस मामले में बेटे ने न सिर्फ अपने माता पिता को अपमानित किया है बल्कि भावनात्मक रूप से भी उनकी उपेक्षा की है।
 
 
 
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