फूलपुर उपचुनावः ‘गठबंधन’ से जूझेगा मोदी का ग्लैमर बदले-बदले से नजर आ रहें है समीकरण

फूलपुर उपचुनाव के समीकरण अब बदले-बदले से हैं। मोदी मैजिक को भाजपाई खेमा वोट में तब्दील करने के हर जतन कर रहा है, लेकिन ऐन मौके पर चले गए सपा-बसपा के ‘गठबंधन हथियार’ ने मुकाबला कांटे का कर दिया है। जंग में बने रहने के लिए कांग्रेस भी जोर लगा रही है, प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर लगातार चुनाव क्षेत्र में बने हुए हैं, तो अचानक बिना चर्चा के चुनाव मैदान में उतरे पूर्व सांसद और बाहुबली अतीक अहमद की जेल से सक्रियता भी परिणाम को प्रभावित करेगी।

प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई फूलपुर सीट पर उपचुनाव हो रहा है। घोषणा के साथ ही भाजपा के विजयरथ के आगे बढ़ने की चर्चा शुरू हो गई। पूर्वोत्तर में धमाकेदार जीत के बाद कमल का शोर बढ़ा लेकिन बसपा के सियासी पैंतरे ने अचानक चुनावी समीकरण को उलझा दिया।

दरअसल 19 लाख 37 हजार वोटरों में पटेल, मुसलमान और दलित मतदाताओं की संख्या तकरीबन तीन-तीन लाख है। वहीं यादव मतदाता तकरीबन ढाई लाख तथा अन्य पिछड़ों की संख्या डेढ़ लाख के करीब हैं। इन्हीं वोटों का गणित सपा अपने पक्ष में करने का जोर लगाए हुए है। यही वजह है कि जैसे ही सपा को समर्थन देने की घोषणा बसपा ने की सपाइयों ने गठबंधन को प्रचार का मुख्य एजेंडा बना लिया।

प्रचार वाले हाथियों पर सपा और बसपा के झंडे दिखाई देने लगे, तो दोनों दलों के मेल वाले नारे कार्यकर्ता बुलंद करने लगे। चौराहों पर चर्चा शुरू हो गई। वोटरों में गठबंधन को लेकर बढ़ती सुगबुगाहट को भांपकर भाजपा की चिंता बढ़ी तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 8 मार्च को ताबड़तोड़ तीन सभाएं कीं और गठबंधन को टारगेट कर ही वार किए।

उन्होंने जहां सपा और बसपा की नाकामियों की याद दिलाकर वोट मांगा तो वहीं शुक्रवार को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने बमरौली से फाफामऊ तक 25 किलोमीटर का रोड शो कर माहौल बनाया। उनके काफिले की हर गाड़ी पर सपा और बसपा का झंडा था तो सुभाष चौक, चर्च, हनुमान मंदिर चौराहे समेत पूरे रास्ते जिंदाबाद के नारे लगते रहे।

अखिलेश की मौजूदगी में प्रचार युद्ध का समापन तो हो गया, लेकिन अब 11 को वोटों की जंग होनी है जिसमें मोदी के ग्लैमर से गठबंधन का हथियार टकराएगा। भाजपा की चिंता गठबंधन है तो सपा की चिंता अतीक के उतरने से मुस्लिम वोटों का बिखराव है जिसे सहेजने के लिए अहमद हसन, अब्दुल्ला आजम जैसे मुस्लिम चेहरों को उतारा गया था तो भाजपा इस गठबंधन की काट के लिए निचले स्तर पर सभी जातियों में अपने दिग्गज नेताओं को भेजकर माहौल बनाने की रणनीति अपना रही है।

ये हैं मुख्य प्रत्याशी
नाम प्रत्याशी
कौशलेंद्र पटेल——–भाजपा
नागेंद्र पटेल———–सपा
कांग्रेस—————मनीष मिश्र
अतीक अहमद——– निर्दल

जातीय गणित
पटेल———तीन लाख
दलित———तीन लाख
मुसलमान——तीन लाख
यादव———ढाई लाख
अन्य पिछड़े—–डेढ़ लाख
ब्राह्मण———तीन लाख
कायस्थ———दो लाख
अन्य जातियां—–डेढ़ लाख

सपा, बसपा
2014 के लोकसभा और पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव छोड़ दिए जाएं तो फूलपुर क्षेत्र में सपा और बसपा का मजबूत जनाधार रहा है। फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में 2014 में पहली बार कमल खिला था। इससे पहले 2009 के चुनाव में बसपा के कपिल मुनि करवरिया इस क्षेत्र से सांसद चुने गए थे।

इससे पहले 2004 में सपा के अतीक अहमद तो 1999 में धर्मराज पटेल विजयी हुए थे। इससे पहले 1996 और 1998 में सपा के ही जंगबहादुर पटेल लगातार दो बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। इससे पहले 1989 के चुनाव में भी जनता दल के टिकट पर रामपूजन पटेल विजयी हुए थे। पिछले चुनाव में भी सपा दूसरे तथा बसपा तीसरे स्थान पर रही।

युवाओं पर सबकी नजर
फूलपुर संसदीय क्षेत्र में युवा वोटरों की संख्या ज्यादा है जिससे पार्टियों की नजर इनपर टिकी हुई है। पहले ही दिन से चाहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहे हों या सपा मुखिया अखिलेश यादव उनके प्रचार एजेंडे में युवा टाप पर रहे। मोदी ने जहां रोजगार की बौछार करने की बात कही है वहीं अखिलेश भाजपा को झूठा करार देते हुए अबतक बेरोजगारों के लिए किए गए कामों का हिसाब मांगा है।

आयु वर्ग मतदाताओं की संख्या
18 से 19 18358
20 से 29 493424
30 से 39 479883
40 से 49 411442
50 से 59 282028
60 से 69 172243
70 से 79 76379
80 से ऊपर 29786

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