पेयजल के लिए करते थे त्राहि-त्राहि, अब गांव में हैं सौ फीसदी नल कनेक्शन

मुख्यमंत्री ग्रामीण नल योजना से ग्रामीणों का सपना हुआ साकार
रूबी सरकार

विदिशा संसदीय सीट वर्ष 1967 में चौथी लोकसभा से अस्तित्व में आई। इस संसदीय सीट पर अब तक जितने चुनाव हुए, उसमें दो बार कांग्रेस प्रत्याशी ने बाजी मारी। बाकी सारे चुनाव जनसंघ और फिर भाजपा ने जीत हासिल की। इनमें अटल बिहारी वाजपेई, सुषमा स्वराज और रामनाथ गोयनका और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जैसे बड़े दिग्गजों के नाम शामिल है।
मध्यभारत प्रांत के मुख्यमंत्री रहे बाबू तख्तमल जैन तथा सांसद रहे बाबू राम सहाय सक्सेना भी विदिशा के ही थे। इन दोनों के प्रयासों से ही भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी बनी।
भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत का भी शुरूआती कार्यक्षेत्र विदिशा रहा है और अब हितानंदजी को भाजपा के प्रदेश का सह संगठन मंत्री बनाया गया है। संघ में उनके जीवन की शुरूआत भी विदिशा से ही हुई है। इन बातों का उल्लेख इसलिए किया जा रहा है, कि इतने दिग्गज नेताओं का कार्यक्षेत्र होने के बावजूद इस क्षे़त्र के लोग वर्षों से प्यासे रहे। जब इस संवाददाता ने इसी संसदीय क्षेत्र का एक गांव उलझावन का दौरा किया, तो पाया, कि पिछले 50 वर्षों से यहां के रहवासी प्यास बुझाने के लिए दिन-रात एक किया करते थे। लेकिन इसी मार्च 2020 को उन्हें मुख्यमंत्री ग्रामीण नल योजना के तहत घरेलू नल कनेक्शन मिला। यह इनके लिए लम्बे समय से देख रहे सपना पूरा होने जैसा है।
गांव की 60 वर्षीय भूरीबाई कहती हैं, कि शुद्ध पेयजल मिलना हमारे लिए सपना था। सोचा भी नहीं था, कि अपने जीवन में मैं घरेलू नल कनेक्शन देख पाऊंगी। ता-उम्र हमने पानी ढोया। किस गंदगी से पानी लाकर पीते थे इसका बयान करना मुश्किल है। क्योंकि वे उस दिन को याद करके उदास नहीं होना चाहती।
भूरी कहती हैं, कि दो-दो किलोमीटर दूर हैण्डपम्प और कुंए में दिन-रात पानी तलाशती फिरती थी। गांव वाले गर्मी में पेयजल के लिए त्राहि-त्राहि करते थे। गला सूखा और आंखों से आंसूं टपकता था। उसने कहा, अपने जीवन में हमने ग्रामीणों को नेताओं के आगे हाथ-पांव जोड़कर मिन्नते करते देखा है। आश्वासन सबसे मिला, परंतु काम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समय में पूरा हुआ। यह शिवराज सिंह का गृह जिला भी है।
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70 वर्षीय राजमल सेन ने बताया, इस उम्र में उसे दूर-दूर से पानी लाना पड़ता था। पानी ढोने के लिए उनका कोई सहारा नहीं था। सुनीता वर्मा कहती हैं, कि वह दिन-भर खेत में काम करने के बाद रात में पानी ढूंढ़ने निकलती थी। उन्हें जंगली जानवरों का डर भी सताता था। फिर भी मजबूरी के चलते बच्चों को घर पर अकेले छोड़कर पानी के लिए निकलती थी। ससुराल आने के बाद यही उसकी दिनचर्या बन गई थी। आज उसे बहुत संतोष है, कि वह अपने बच्चों को समय दे पाती हैं। सुनीता ने कहा, शुद्ध पेयजल के अभाव में गांव के नौनिहाल अक्सर बीमार पड़ते थे।

सीहोर जिले से 22 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव की आबादी वर्तमान में 4 हजार के करीब है। परंतु वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी तीन हजार, 293 और गांव में लगभग 671 घर था। उलझावन ग्राम पंचायत के सरपंच रघुनंदन वर्मा बताते हैं, कि उनसे पहले के सभी सरपंचों ने अपने-अपने स्तर पर पेयजल के लिए प्रयास किये, लेकिन उसका सपना था, कि एक दिन गांव के लोग प्यास लगने पर नल खोलकर पानी पीये। श्री वर्मा शुरू से ही सामाजिक कामों से जुड़े रहे और गांव में पेयजल उपलब्ध कराने को संघर्ष करते रहे।
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सरपंच बनने के बाद वह लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों पर दबाव बनाते रहे। वर्ष 2017 में उसने पंचायत की बैठक में सर्वसम्मति से इसके लिए प्रस्ताव पास करवाया, जिसमें घरेलू नल कनेक्शन की मांग के साथ निर्धारित जलकर की अदायगी नियमित रूप से करने तथा भविष्य में पंचायत द्वारा इसके संचालन और संधारन की सहमति शामिल थी। सरपंच बताते है, कि इस गांव में लगभग 25 हैण्डपम्प हैं, लेकिन पानी लगभग 500 फीट नीचे जाने से केवल दो-चार हैण्डपम्पों में ही पानी आता था।
सीहोर जिले के मुख्य कार्यपालन यंत्री एमसी अहिरवार बताते हैं, कि राज्य शासन ने ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करने के लिए मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल योजना क्रियान्वयन कर रही है। इसी कार्यक्रम के अंतर्गत गांव में नलजल योजनाओं के माध्यम से 70 ली. प्रति व्यक्ति प्रति दिन पानी उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
उन्होंने कहा, कि प्रदेश की अधिकांश ग्रामीण जलप्रदाय योजनाएं भू-गर्भीय जल स्त्रोतों (मुख्यतः नलकूपों) पर आधारित हैं। विभाग द्वारा अधिकाधिक मात्रा में नलजल योजनाओं के अंतर्गत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से ग्रामीण आबादी को पेयजल उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दी जा रही है।
इसके लिए गांव की आबादी कम से कम दो हजार से अधिक होने चाहिए। इस गांव की आबादी वर्ष 2018 में 3 हजार, 850 और कुल घर 735 था। इसलिए योजना में गांव को शामिल करने में कोई अड़चन नहीं आयी। जब मेरे पास ग्राम पंचायत का प्रस्ताव आया, तो फौरन हमने इस गांव को योजना में शामिल कर लिया। बाद की प्रक्रिया में पानी के स्रोत के लिए सर्वेक्षण, अनुमानित बजट, जो लगभग 93 लाख था, जो काम पूरा होने तक एक करोड़ 4 लाख तक पहुंच गया, जिसे विभाग ने शासन से स्वीकृत करवाया। 2 लाख, 25 हजार लीटर क्षमता वाली पानी की टंकी में 30 हजार लीटर के सम्पवेल के जरिये पानी पहुंचाया जाता है। इसके लिए 2 हजार, 2 सौ मीटर की पाईपलाइन अलग से बिछाई गई है। मार्च 2020 में इसका काम पूरा हुआ और विभाग ने इसे ग्राम पंचायत को सौंप दिया। अब इस गांव में सौ फीसदी नल कनेक्शन है।
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