पूर्व क्रिकेटर और पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिद्धू फिर विवादों में

नवजोत सिंह सिद्धू…. एक ऐसा नाम है जिससे विवादों का सीधा नाता जुड़़ जाता है। यूं कहें कि विवादों से इनका चोली दामन-सा रिश्‍ता है। विस्‍फोटक बल्‍लेबाज रहे सिद्धू का क्रिकेट करियर के दौरान भी विवादों से करीबी रिश्‍ता रहा और अब राजनीति के मैदान में भी वह लगातार विवाद के कारण सुर्खियों में हैं। क्रिकेट में वह अपने बल्‍लेबाजी से अधिक अपने विवादों से ज्‍यादा चर्चा में रहे।

विवादों के कारण उन्‍होंने भारतीय टीम के विदेश दौरे के बीच संन्‍यास ले लिया। बाद में क्रिकेट में फिर वापसी की। अब राजनीति के मैदान में भी इसी राह पर हैं। पहले विवादों के भाजपा छोड़ी तो लगा राजनीति में अलग-थलग पड़ जाएंगे। फिर कांग्रेस में जगह मिली तो वहां भी अपने तेवरों से विवादों में हैं। संभव है कि कांग्रेस में कड़ी कार्रवाई का भी उन्‍हें सामना करना पड़े। जानकारों का कहना है कि दरअसल सिद्धू अति महत्‍वाकांक्षी हैं और इसी कारण वह उतावलेपन में विवादों को गले लगा लेते हैं।

अति महत्वाकांक्षा के चलते टिक कर बैटिंग नहीं कर पाते, क्रिकेट के बाद राजनीति के पिच पर भी अस्थिर

बात 1996 की है जब इंग्लैंंड में चल रही सीरीज के दौरान कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन से मतभेद होने के कारण क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू दौरा बीच में ही छोड़कर स्वदेश वापस आ गए थे। 23 साल बाद किरदार जरूर बदल गए हैं, लेकिन सिद्धू का स्वभाव आज भी वही है। एक बार फिर उनकी अपने कप्तान से नहीं बन रही है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का नाम लिए बिना उनके खिलाफ की गई बेवक्त की बयानबाजी कांग्रेस का नुकसान कर सकती है। सिद्धू की जुबान ही उनकी मजबूती है, लेकिन अक्सर वह आवेग में आकर कई बार ऐसी बातें कह जाते हैं जिससे पार्टी का फायदा होने के बजाय नुकसान हो जाता है।

क्रिकेट के मैदान में मोहम्मद अजहरुद्दीन के साथ नवजोत सिंह सिद्धू। (फाइल फोटो)

वह पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से अपने संबंधों और उनके शपथ ग्रहण समारोह में जाने को लेकर भी चर्चाओं में आ गए। वहां पाकिस्‍तानी आर्मी चीफ से गले मिलने और फिर पुलवामा आतंकी हमले पर उनके बयानों ने भी खासा विवाद पैदा किया। इसके बाद उन्‍हें देश में काफी विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन सिद्धू अपने रुख पर अडिेग रहे।

अजहरुद्दीन से मतभेद होने पर 1996 में इंग्लैैंड दौरा छोड़ आ गए थे स्वदेश

क्रिकेट टीम में रहते हुए 1996 में जब अपने कप्तान से नाराज होकर सिद्धू स्वदेश लौटे तब भी उनके बारे में कहा गया कि उन्होंने यह बड़ी गलती की है। अरुण जेटली उन्हें 2004 में भारतीय जनता पार्टी में लाए। अमृतसर से छह बार लोकसभा चुनाव जीते कांग्रेस के दिग्गज रघुनंदन लाल भाटिया के खिलाफ सिद्धू चुनाव लड़े तो उन्हें शानदार जीत मिली। उस दौरान वह प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल व बादल परिवार के खूब गुण गाते थे, लेकिन 2007 में जब प्रदेश में बादल सरकार बनी और अमृतसर में वर्चस्व को लेकर सवाल उठने शुरू हुए तो सिद्धू अकाली दल के बिक्रम मजीठिया से भिड़ गए। धीरे-धीरे यह नाराजगी दुश्मनी में बदलती चली गई।

भाजपा में रहते हुए बादल व सुखबीर पर बोलते थे हमला, अब कैप्टन अमरिंदर व कांग्रेस की बढ़ा रहे मुसीबत

2009 के बाद तो उनके निशाने पर सीधे मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल आ गए। प्रदेश में सरकार होने के बावजूद सिद्धू की उनके साथ कभी नहीं बनी। मौका मिलते ही मुख्यमंत्री बादल पर सिद्धू सीधा हमला करते थे और कहते कि वह जानबूझकर उनके क्षेत्र के विकास में बाधाएं उत्पन्न कर रहे हैं। अमृतसर से 2014 में जब एक बार फिर से उन्हें टिकट देने की बात चली तो शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने इसका विरोध किया। अकाली दल से सालों पुरानी दोस्ती निभाते हुए भाजपा ने उसके कहने पर अरुण जेटली को अमृतसर से मैदान में उतार दिया।

इसके पीछे कारण साफ था कि सिद्धू अपने राजनीतिक गुरु जेटली का विरोध नहीं करेंगे। सिद्धू को दिल्ली या करनाल से टिकट ऑफर किया गया, लेकिन उन्होंने कहा कि वह अमृतसर को नहीं छोड़ेंगे। इसके बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया, लेकिन उनका भाजपा से मोहभंग हो गया। फिर उनके आम आदमी पार्टी में शामिल होने की बात चली। आप को पंजाब में एक मजबूत जट्ट सिख नेता की तलाश में थी, लेकिन यहां भी सिद्धू की अति महत्वाकांक्षा आड़े आ गई।

कैप्टन नहीं चाहते थे कि सिद्धू कांग्रेस में आएं

2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उनकी कांग्रेस में एंट्री हो गई। हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसा हरगिज नहीं चाहते थे, लेकिन पार्टी हाईकमान के दबाव के कारण उन्हें मानना पड़ा। कैप्टन जानते थे कि सिद्धू अति महत्वाकांक्षी हैं। वह आने वाले दिनों में उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। आज वह स्थिति पंजाब में बन गई है। उल्लेखनीय है कि पंजाब में चुनाव प्रचार खत्म होने से ठीक पहले सिद्धू ने बिना नाम लिए कैप्टन पर हमला बोला था। उन्होंने सवाल किया था कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी मामले में आयोग की रिपोर्ट आने पर भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

सिद्धू की पत्नी भी कम नहीं

नवजोत सिद्धू की छवि ईमानदार नेता की है, लेकिन वह काफी व्यस्त रहते हैैं। इसके कारण उनके विभाग के कामकाज में पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू की खासी दखलअंदाजी है। वह भी अक्सर सीधे-सीधे पंगा लेने से पीछे नहीं हटतीं। कई बार तो देखा गया कि पहल डॉ. सिद्धू ही करती हैं और बाद में नवजोत सिंह सिद्धू को भी इसमें कूदते हैं।

पत्‍नी के साथ नवजोत सिंह सिद्धू।

डाॅ. नवजोत कौर पिछली बादल सरकार के दौरान मुख्य संसदीय सचिव रहीं थीं। इस दौरान उनकी अपने ही विभाग के मंत्री मदन मोहन मित्तल से कभी नहीं पटी। उनके बयान अक्सर भाजपा और अकाली दल के लिए मुश्किलें खड़ी कर देते थे। यही हाल अब उनका कांग्रेस में है। वह कहती हैं कि अगर पंजाब में कांग्रेस लोकसभा की सभी 13 सीटें नहीं जीतती है तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस्तीफा दे देना चाहिए।

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