पीढ़ी-दर-पीढ़ी बुजुर्गों के नियम से यहां हरा-भरा है जंगल, इस जंगल में कभी भी नहीं लगी आग

सोच सामूहिक होने के साथ यदि सकारात्मक भी हो तो वह भविष्य की पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है। इसका उदाहरण है टिहरी जिले का बमराड़ी गांव। जहां पीढ़ी-दर-पीढ़ी पनपाए बांज (ओक) के जंगल का ग्रामीण न केवल संरक्षण कर रहे हैं, बल्कि उनके प्रयासों से आज तक इस जंगल में कभी आग भी नहीं लगी। यह हरा-भरा जंगल आज ग्रामीणों की जरूरतों को भी पूरा कर रहा है।

थौलधार विकासखंड के सुदूरवर्ती बमराड़ी गांव की पांच सौ की आबादी आज भी बुजुर्गों के तय किए नियमों का प्राण-प्रण से पालन करती है। लगभग छह दशक पूर्व तत्कालीन ग्राम प्रधान विद्यादत्त भट्ट के नेतृत्व में ग्रामीणों ने ग्राम समाज की लगभग दो सौ नाली भूमि पर बांज के पौधों का रोपण करना प्रारंभ किया था। धीरे-धीरे ये पौधे वृक्ष बने और बांज का हरा-भरा जंगल लहलहाने लगा।

 

तब जंगल के दोहन के लिए ग्रामीणों की ओर से सख्त नियम-कायदे तय किए गए। इसके तहत वर्षभर में सिर्फ दो माह ही बांज की पत्तियों को काटने की अनुमति दी जाती है। पत्तियां काटकर लाने वालों की गांव में बाकायदा जांच होती है, ताकि पता चल सके कि किसी ने टहनियां तो नहीं काटी हैं।

आग बुझाने को मानव शृंखला के रूप में बन जाते हैं ढाल 

आसपास के जंगलों में आग लगने की सूचना पर ग्रामीण इस जंगल के चारों ओर मानव शृंखला बनाकर ढाल के रूप में खड़े हो जाते हैं। नई पीढ़ी ने जंगल के प्रति आस्था बढ़ाने के लिए गांव व जंगल की सीमा के बीच एक दशक पूर्व त्रिदेव मंदिर का निर्माण भी किया है। इस मंदिर का अब जीर्णोद्धार कर नया रूप दिया गया है। 12 जून को इसे प्राण प्रतिष्ठा के साथ दर्शनों के लिए खोल दिया गया।

प्रवासियों का भी जंगल से गहरा लगाव 

गांव के जयपाल कोटवाल, क्षेत्र पंचायत सदस्य ओम प्रकाश भट्ट, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य शंभूप्रसाद सकलानी, रमेश भट्ट आदि का कहना है कि गांव की आत्मा इसी जंगल में बसती है। इसी लगाव के कारण प्रवासी भी पूरी तरह गांव से जुड़े हुए हैं।

टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन) में डीजीएम चंदन सिंह राणा बताते हैं कि बुजुर्गों के प्रयासों से बना यह जंगल उन्हें हमेशा अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए वह बार-बार गांव आते रहते हैं। कहते हैं, इस जंगल के तीन तरफ चीड़ का बोलबाला बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए सरकार को ग्रामीणों का सहयोग करना चाहिए।

गांव में नहीं हुआ कभी पानी का संकट 

ग्राम पंचायत बमराड़ी की प्रधान रूपी देवी बताती हैं कि बुजुर्गों के बनाए गए नियमों को और सख्त किया गया है, ताकि जंगल को कोई किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचा सके। ग्रामीणों की सहभागिता से ही यह जंगल आज हरा-भरा है। प्राकृतिक स्रोतों के रिचार्ज होने से गांव में कभी पीने के पानी का संकट भी खड़ा नहीं हुआ।

Back to top button