पानी पर टिका श्रीगंगानगर का सियासी संग्राम, फिर किसानों को मनाने में जुटी पार्टियां

 प्रदेश में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है. हर क्षेत्र में पार्टियां जनता के बीच जाकर उनकी तमाम समस्याओं के समाधन देने का वादा करने में जुटी है. ऐसा ही कुछ हाल बीकानेर के श्रीगंगानहर का भी है जहां पानी की समस्या को लेकर तमाम पार्टियों की सियासत उफान पर है. हालांकि इस इलाके में हमेशा पानी को लेकर सियासी संग्राम लड़े गए है. इलाके का समस्याओं का बात करें तो कहीं पानी के लिए नहर का अधूरा वादा मुंह चिढ़ाता है तो कहीं पंजाब से अपने हिस्से का पूरा पानी न ले पाने की पीड़ा किसानों के माथे की सिलवटें बढ़ा देती है.पानी पर टिका श्रीगंगानगर का सियासी संग्राम, फिर किसानों को मनाने में जुटी पार्टियां

किसान आंदोलन के नाम पर सरकार को चुनौती देकर कितनी बार किसान नेताओं ने अपनी सियासत चमकाई और जीत कर विधानसभा तक गए, लेकिन लेकिन आंदोलन से उपजे नेता विधानसभा में पहुंचने के बाद किसानो के इस मुद्दे पर मौन हो जाते है. बता दें कि श्रीगंगानगर जिले में पंजाब से आने वाले पानी से सिंचाई की जाती है.  पिछले कुछ दशकों में गंगानगर से लेकर घड़साना-रावला तक सिंचाई पानी पर खूब आंदोलन हुए. वहीं किसान नेताओ ने पानी पर सियासत कर अपनी राजनीति की नैया पार लगाई. मगर सत्ता में जाने के बाद पानी के नाम पर किसानो से लिए वोटो को भूलकर अपने राजनीतिक नफे नुकसान का हिसाब लगाने में जुटे रहते है.

राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले का नहरी तंत्र समझना उतना ही मुश्किल है जितना राजनीति के दंगल में उतरे राजनीतिक पार्टियों के नेताओ द्वारा किये जाने वाले वायदों को समझना. पंजाब से लगते श्रीगंगानगर जिले के खेतो को देखे तो यहां के खेतो में लहलहाती फसलों की हरियाली नजर आएगी, लेकिन पिछले तीन दशकों से जिले के किसानो को पानी के नाम पर जिस प्रकार से नेताओ ने चुनावी वादे कर अपनी राजनीति चमकाई है उससे अब यहां के किसान खासे आक्रोशित है.

नेताओं के चुनावी वादों के कारण कहीं किसानों की आंखों में पानी है तो कहीं गुस्से की ज्वाला दिखाई दे रही है. हालांकि यहां पानी के मुद्दों ने नेताओं की समय-समय पर चुनावी नैया पार लगाई है लेकिन इस बार यही पानी के मुद्दे तमाम पार्टियों के लिए मुसीबत बन सकता है. बता दें कि श्रीगंगानगर जिले के करीब साढ़े 13 लाख मतदाताओं में से एक तिहाई से ज्यादा तो खेती-किसानी करने वाले हैं. पानी उनकी पहली जरूरत है. 

पानी के नाम पर नेताओ ने यहां के किसानो को बरगलाकर खूब वोट बटोरे और सत्ता के सिंघासन पर सवार होकर किसानो की समस्याओं को भूल गए. लेकिन अब भी किसान व किसान नेता पानी के मुद्दे पर सरकार से लेकर विधानसभा पहुंचने वाले नेताओ को कोस रहे है. उधर मंत्री से लेकर विधायक बने भाजपा के पूर्व विधायक राधेशयाम का कहना है कि इलाके में हमेशा से पानी की समस्या पर सियासत होती आई है, तो समाधान भी जरूर होगा. हालांकि जानकारों की मानें तो सत्ता में रहने के बाद भी नेता इस मुद्दे का समाधान इस लिहाज से भी नहीं करवाते क्योंकि मुद्दा समाप्त हुआ तो पानी की सियासत का खेल कैसे खेला जायेगा. उधर कांग्रेस नेता भी पानी के मुद्दे को किसान का बड़ा मुद्दा बताते है, लेकिन वे कांग्रेस से चुने जनप्रतिनिधियों द्वारा सियासत नहीं करने की बात भी कहते है.

किसानो को जब सिंचाई पानी की जरूरत होती है तब नहरों में पानी कम हो जाता है. जिससे पानी के अभाव में फसल खराब हो जाती है. सिंचाई पानी के मसले ने न जाने कितने नेताओं ने चुनावी नैया पार की है, लेकिन अब मतदाता जागरूक होने लगा है. चुनाव को प्रभावित करने वाले पानी के मुद्दे को जमीदारा पार्टी अध्यक्ष बीड़ी अग्रवाल दोनों पार्टियों को कोई स्थाई समाधान न खोजने का दोषी मानते हैं. साथ ही वह सरकार में आने पर पानी उपलब्ध करवाने की बात कहते हुए पानी के मुद्दे का हल निकालने का कह रहे है. 

वहीं जमीदारा अध्यक्ष कांग्रेस-बीजेपी दोनों पार्टियों के नेताओ के आलाकमान दिल्ली में होने को कारण मानते हुए राजस्थान के किसानो की समस्या का न होने की बात कर रहे हैं. उधर कांग्रेस नेता पानी की राजनीति करके नेताओ के विधानसभा पहुंचने की बात कहते हुए सत्ता में आने पर पानी के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने का चुनावी वायदा कर रहे है. जबकि दूसरी ओर किसान नेता ऐसे मुद्दों को केवल सियासत का हिस्सा बताकर चुनाव में नेताओ को सबक सीखने की बात कहते है.

बहरहाल सिंचाई पानी के अभाव में सुखी फसल व खाली नहरे ये बताने के लिए काफी है की किसानों द्वार चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने विधानसभा में जाकर पानी के मुद्दे का समाधान करने के लिए क्या किया है. ऐसे में चुनाव आते ही एक बार फिर सिंचाई पानी के मुद्दे का उठना यह बताता है की एक बार फिर पानी सियासत का हिस्सा  बनेगा. ऐसे में इस बार किसकी नैयै पार होगी यह आने वाला समय बताएगा

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