पांच माह पहले ग्वालियर चंबल संभाग में ऐसा क्या हुआ कि सिंधिया भी हारे

पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों से तुलना करें तो लगता है कि दोनों चुनाव का अंतराल पांच माह नहीं पांच साल का हो। पांच माह पहले ग्वालियर चंबल संभाग में भाजपा का सूपड़ा साफ था। बड़े-बड़े दिग्गज धराशायी थे, लेकिन अबकी बार, बारी कांग्रेस की थी। सूपड़ा साफ होने की भी और दिग्गजों के धराशायी होने की भी। अंचल की चारों सीटों पर बढ़त बनाकर भाजपा ने इसलिए भी सबको चौंका दिया, क्योंकि चार में से एक सीट ग्वालियर राजघराने के ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी है। जिस राजघराने ने आज तक हार का स्वाद नहीं चखा।

सिंधिया अपनी परंपरागत सीट गुना से फिलहाल सवा लाख से ज्यादा मतों से भाजपा के एक ऐसे उम्मीदवार से पराजित हो गए जो कुछ समय पहले तक खुद उनका प्रतिनिधि था। गुना से उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया और पिता माधवराव सिंधिया भी लंबे समय तक सांसद रह चुके हैं। अंचल की 34 में से 26 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस ने दमदार एंट्री ली थी। भाजपा को महज सात सीट मिली थी। कांग्रेस नेताओं को यह समझ नहीं आ रहा कि पांच माह गुजरतेगुजरते ऐसा क्या हो गया कि तीन-तीन कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद इस अंचल से पार्टी का सफाया हो गया।

अंचल की दूसरी महत्वपूर्ण सीट पर भाजपा उम्मीदवार और मोदी सरकार के पावरफुल मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कड़े मुकाबले में आहिस्ता-आहिस्ता जीत हासिल कर गए। ग्वालियर लोकसभा सीट पर यह माना जा रहा था कि भाजपा की हालत पतली रहेगी, लेकिन वहां भी भाजपा मजबूत बनकर उभरी है। इस सीट पर भाजपा के विवेक शेजवलकर ने शानदार जीत दर्ज की। भिंड में राहुल गांधी की पसंद पर दिल्ली विश्वविद्यालय के जिस छात्र देवाशीष जरारिया को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था, वह भी टिक नहीं पाया।

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