खिलजी ने पद्मावती को इन्हीं शीशों से देखा था? जानिए क्या है इनकी सच्चाई

चित्तौड़गढ़. महल के गोलाकार कक्ष में रानी पद्मिनी के समय भी कांच थे या नहीं। यह तो कोई नहीं जानता, लेकिन वर्तमान के कांच कब और कैसे लगे, यह जानने वाले शहर में मौजूद हैं। आज इन्हीं में से एक दुर्ग निवासी 76 साल के धनराज की जुबानी कांच की यह कहानी सुना रहा है।

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राणा भूपालसिंह ने इसी कक्ष में नेहरूजी को नाश्ता करवाया, तब ही लगाए गए थे ये चार कांच.

दुर्ग निवासी धनराज कुमावत ने बताया कि पहले के इतिहास पर मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता। पद्मिनी महल के जिन कांच को लेकर विवाद है, वे मेरे देखते लगे। प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू गाडिया लौहारों को दुर्ग प्रवेश कराने 6 अप्रैल 1955 को आए तब तक दुर्ग मेवाड़ स्टेट के जिम्मे था। उनके सत्कार के लिए उदयपुर से महाराणा भूपालसिंह भी आए। नेहरूजी को गोल कक्ष में नाश्ता करवाया गया। ताकि वे यहां से जलमहल देख सकें। नेहरूजी को दिखाने के लिए इस कक्ष में चार कांच लगाए गए। इसके बाद गाइड टूरिस्ट्स को इसमें पद्मिनी को दिखाने की कहानी बताने लगे।

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