पंजाब और हरियाणा में अब FIR से हटाए जाएंगे ये दो कॉलम
अब हाईकोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को पार्टी बनाते हुए नोटिस जारी कर जवाब मांग लिया है। मामले की सुनवाई के दौरान पंजाब की तरफ से बताया गया कि राज्य सरकार पंजाब पुलिस रूल्स 1934 में संशोधन कर रही है। क्योंकि एफआईआर में जाति व धर्म का उल्लेख करना उस समय सही था, लेकिन वर्तमान में यह प्रासंगिक नही हैं। कोर्ट को बताया गया कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो सभी राज्यों से एफआईआर में जाति व धर्म की जानकारी मांगता है,
लेकिन पंजाब सरकार ने 18 अक्तूबर को एक पत्र लिख कर नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो को यह जानकारी देने में असमर्थता जता दी थी। चंडीगढ़ प्रशासन ने भी कोर्ट को बताया कि वो भी एफआईआर में जाति व धर्म का कॉलम हटाने के पक्ष में हैं और इस बाबत उनको हलफनामा देने के लिए कुछ समय दिया जाए। इस मामले में हरियाणा सरकार पहले ही हाईकोर्ट को बता चुकी है कि हरियाणा सरकार पुलिस रूल्स में संशोधन करने जा रही है। हालांकि सरकार ने कहा कि एससी/एसटी से संबंधित केसों में इनका लिखा जाना जरूरी होगा।
याची हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील एचसी अरोड़ा के अनुसार पंजाब पुलिस रूल्स-1934 में एफआईआर में अभियुक्त और पीड़ित की जाति लिखे जाने का प्रावधान है। यह गलत है। अपराधी का कोई धर्म नहीं होता और न ही उसकी कोई जाति होती है। वह केवल अपराधी होता है। उसकी जाति और धर्म भी अपराध होता है। अभियुक्त व शिकायतकर्ता की पहचान अन्य तरीके से भी दर्ज की जा सकती है जैसे आधार कार्ड, पिता के साथ दादा का नाम, गली, वार्ड आदि।
हिमाचल हाईकोर्ट दे चुका हैं पहले ही ऐसा आदेश
याची ने कोर्ट को बताया कि पिछले साल सितंबर में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भी पुलिस रूल्स के तहत विभिन्न फार्म में से जाति के कालम को खत्म करने के निर्देश दिए थे। पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को भी ऐसा करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए। याचिका में नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया गया है कि जेलों में 68 .9 फीसदी हिंदू, 17 .7 फीसदी मुस्लिम और बाकी अन्य धर्मों के हैं। इसी तरह 30 फीसदी ओबीसी, 35 फीसदी सामान्य और 21 .9 फीसदी कैदी अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। याची ने कहा कि ये आंकड़े भी इसी जातिवादी भावना के कारण तैयार किए गए हैं।