निवृत्त शंकराचार्य पद्मभूषण महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि हो गए ब्रह्मलीन

 भारत माता मंदिर के संस्थापक निवृत्त शंकराचार्य पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी मंगलवार सुबह हरिद्वार में उनके निवास स्थान राघव कुटीर में ब्रह्मलीन हो गए। वह पिछले 15 दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे और उनका देहरादून के मैक्स हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्हें 5 दिन पहले हरिद्वार स्टेट उनके आश्रम ले आया गया था। यहीं पर उनकी कुटी को आईसीयू में तब्दील कर उनका इलाज चल रहा था। साथ ही उनके दीर्घायु होने की कामना को लेकर धार्मिक अनुष्ठान भी किए जा रहे थे।

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी के फिर से और जूना अखाड़ा के आचार महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी के मंगलवार को ब्रह्मलीन होने की जानकारी देते हुए बताया कि स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी को उनके निवास स्थान राघव कुटीर में बुधवार को समाधि दी जाएगी। सत्यमित्रानंद गिरी के ब्रह्मलीन होने से संत समाज में शोक की लहर दौड़ गई है और देशभर के सभी प्रमुख संतो का राघव को ट्वीट पहुंचना शुरू हो गया है। स्वामी अवधेशानंद गिरी जगतगुरु राज राजेश्वर आश्रम महामंडलेश्वर अभी चेतनानंद महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद स्वामी विवेकानंद भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने उनके ब्रह्मलीन होने पर शोक व्यक्त किया है।

पथ-प्रदर्शक, अध्यात्म-चेतना के प्रतीक, तपो व ब्रह्मानिष्ठ, विश्व प्रसिद्ध भारत माता मंदिर के संस्थापक निवृत्त शंकराचार्य पद्मभूषण महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का जन्म 19 सितंबर, 1932 को आगरा में हुआ था। उनका परिवार मूलत: सीतापुर (उत्तर प्रदेश) का निवासी था। संन्यास से पहले वे अंबिका प्रसाद पांडेय के नाम से जाने जाते थे।

राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात शिक्षक उनके पिता शिवशंकर पांडेय ने उन्हें बचपन से ही अध्ययनशीलता, चिंतन और सेवा का का पाठ पढ़ाया था और उन्हें सदैव अपने लक्ष्य के प्रति सजग और सक्रिय रहने की प्रेरणा दी। यही वजह थी कि वह अपने बाल्यावस्था से ही अध्ययनशील, चिंतक और निस्पृही व्यक्तित्व के धनी हो गए थे। सेवाभाव की अधिकता के कारण उनका मन मानव और धर्मसेवा में अधिक लगता था और सांसारिक जीवन से उनका कोई प्रेमभाव कभी नहीं रहा।

अपनी इसी खूबी के कारण देश के भीतर उनका जितना सम्मान था, विदेशों में भी उनकी उतनी ही ख्याति थी। उन्होंने सद्भाव, सांप्रदायिक सौहार्द और समन्वय भाव के प्रसार के लिए विश्व के 65 से अधिक देशों की यात्रा की थी। धर्म, संस्कृति, समाज और विश्व कल्याण की उनकी इन्हीं सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शामिल पद्मभूषण से अलंकृत किया था।

महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी का बचपन का अधिकांश समय संत-महात्माओं या फिर विभिन्न विषयों के विद्वानों के सान्निध्य में ही बीतता था। उन्होंने बेहद कम आयु में ही महामंडलेश्वर स्वामी वेदव्यासानंद महाराज से संन्यास दीक्षा ग्रहण कर गृहत्याग कर ‘सत्यमित्र ब्रह्मचारी’ के रूप में धर्म साधना को अपना कर्म क्षेत्र बना लिया। धर्म के क्षेत्र में उनकी निस्वार्थ सेवा ने उन्हें साधना के विविध सोपान प्रदान किए।

29 अप्रैल 1960 अक्षय तृतीया के दिन मात्र 26 वर्ष की आयु में ज्योतिर्मठ भानपुरा पीठ पर जगद्गुरु शंकराचार्य पद पर उन्हें प्रतिष्ठित किया गया। उन्होंने प्रख्यात चिकित्सक स्व. डॉ. आरएम सोजतिया के सहयोग से भानपुरा और उसके आसपास क्षेत्र के अतिनिर्धन लोगों के उत्थान की दिशा में अनेक वर्ष तक कार्य किया। इसके अलावा उन्होंने देश-विदेश में अनेक जगह मानव सेवा और वंचितों के सेवार्थ कई कार्यक्रम चलाए, उनमें कई अब भी चल रहे हैं।

तमाम जगह पर उन्होंने इसके निमित्त अपने आश्रम और मठ की स्थापना भी की। भानपुरा पीठ के शंकराचार्य के तौर पर करीब नौ वर्षों तक धर्म और मानव के निमित्त सेवा कार्य करने के बाद उन्होंने 1969 में स्वयं को शंकराचार्य पद से मुक्त कर गंगा में दंड का विसर्जन कर दिया। और खुद को परिव्राजक संन्यासी के रूप में प्रस्तुत कर धर्म और मानव सेवा के आजीवन संकल्प संग देश-विदेश में भारतीय संस्कृति व अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में लग गए और जीवन के अंतिम समय तक इसी में लीन रहे। उन्होंने अपना सारा जीवन दीन-दुखी, गिरिवासी, वनवासी, हरिजनों की सेवा और सांप्रदायिक मतभेदों को दूर करने, समन्वय-भावना का विश्व में प्रसार करने में होम कर दिया, जिसके लिए उन्होंने सनातन हिंदू धर्म की महानतम पद-पदवी शंकराचार्य का त्याग कर दिया।

उनकी विद्वता के कारण वर्तमान समय में उन्हें स्वामी विवेकानंद की अनुकृति भी कहा जाता था। हाल ही में उन्होंने हरिद्वार में देश के शीर्ष संतों को भारत माता आराधना यज्ञ के लिए भारत माता मंदिर में आमंत्रित किया था। इसके लिए यज्ञस्थल पर 101 कुंडीय यज्ञवेदी का निर्माण कराया गया था। इसकी शुरुआत प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत ने की थी और इसमें श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, गायत्री तीर्थ शांतीकुंज प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या सहित देश के तमाम प्रमुख संतों और विद्वानों ने सहभागिता की थी।

भारत माता मंदिर के निर्माण कर बने विश्व चर्चा के केंद्र

पतित पावनी गंगातट सप्तसरोवर पर वर्ष 1983 में अपने आप में अनोखे 108 फीट ऊंचे आठ मंजिला भारत माता मंदिर की स्थापना कर पद्मभूषण निवृत्त शंकराचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी पूरे विश्व में चर्चा का केंद्र बन गए। आठ मंजिला इमारत के रूप में यह एक ऐसा मंदिर है, जिसे भारत देश के निर्माण और रक्षा में सर्वस्व त्याग कर आहुति देने वाले भारतमाता के सपूतों को समर्पित किया गया है, जहां रोजाना उनकी आराधना की जाती है।

आमतौर पर जितने भी मंदिर हैं, वह किसी न किसी देवी-देवताओ को समर्पित हैं पर, भारत माता मंदिर उन संत-महात्माओं, वीरांगनाओं और शूर-वीरों को समर्पित है, जिन्होंने देश के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में अमूल्य योगदान दिया और देश की रक्षा को अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी के अनुसार उन्होंने यह मंदिर देश के ऐतिहासिक रत्नों को देवतुल्य मूर्ति का रूप देकर उनकी याद, देश के लिए दी गई उनकी सेवाओं, त्याग और बलिदान को याद करने, आने वाली पीढ़ी को इसकी जानकारी देने के लिए निर्मित कराया था।

इसमें स्थापित सभी लोग हमारे देश का गौरव कहे जाते हैं, जिनका नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है। मंदिर में रेत से भारत का नक्शा बनाया गया है और इसे लाल, नीली रोशनी से सजाया गया है।  इसकी पहली मंजिल पर भारत माता की मूर्ति स्थापित है। दूसरी पर ‘शूर मंदिर’ जिसमें देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले प्रमुख शूरवीरों और वीरांगनाओं को जगह दी गई है। तीसरी मंजिल पर ‘मातृ मंदिर’ है, यह स्त्री शक्ति को समर्पित है।

चौथी मंजिल ‘महान भारतीय संतों’ को समर्पित है। पांचवीं मंजिल विभिन्न धर्मों की झांकियों, इतिहास और भारत के विभिन्न भागों की सुंदरता को समर्पित है। छठी मंजिल पर ‘शक्ति मंदिर’ है, यह आदि शक्ति की प्रतीक दुर्गा, पार्वती, राधा, काली, सरस्वती आदि को समर्पित है। सातवीं मंजिल पर भगवान विष्णु के दस अवतार स्थापित हैं। आठवीं मंजिल प्रकृति, आध्यात्म और पर्यावरण के साथ भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर से हिमालय, हरिद्वार एवं सप्त सरोवर के सुंदर दृश्यों सहित धर्मनगरी हरिद्वार के प्राकृतिक सौंदर्य का अवलोकन किया जा सकता है। राष्ट्र निर्माण की भावना जन-जागरण करने वाले भारत माता मंदिर से हर साल देश-विदेश के लाखों लोग अध्यात्म, दर्शन, संस्कृति, राष्ट्र और शिक्षा संबंधी विचारों की चेतना और प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

जब दो विपरीत विचारधारा वाले इंदिरा गांधी-रज्जू भइया को बैठाया एक मंच पर

पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी से अपनी विद्वता के सम्मान और राजनीति पर पकड़ का लोहा देश-दुनिया को भारत माता मंदिर के उद्घाटन समारोह के दौरान दो विपरीत विचारधारा वाली हस्तियों तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कट्टर हिंदूवादी संघी नेता रज्जू भइया को एक साथ मंच साझा कराकर मनवाया था। हिंदूवादी विचारधारा का समर्थक होने के कारण भारत माता मंदिर के उद्घाटन अवसर पर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी रज्जू भइया को अपने कार्यक्रम में बतौर विशेष अतिथि आमंत्रित करना चाहते थे, जबकि मुख्य अतिथि के तौर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को। दोनों बातें एक साथ होना संभव नहीं थी, इसके मद्देनजर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई सुरक्षा व खुफिया तंत्र की नकारात्मक रिपोर्ट भी इसे नकार रही थी। सभी को लगने लगा था कि इंदिरा गांधी कार्यक्रम में नहीं आएंगी।

इस पर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी ने सभी तरह की आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए उद्घाटन कार्यक्रम को सर्वधर्म सद्भाव सम्मेलन का स्वरूप प्रदान करते हुए हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख और इसाई धर्मगुरु को बुलाकर सभी धर्मों का पाठ कराया। सर्वधर्म सद्भाव सम्मेलन के इस प्रयास का आदर व सम्मान करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सभी तरह की नकारात्मक सुरक्षा-खुफिया रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए न केवल सम्मेलन में शिरकत की, बल्कि रज्जू भइया के साथ मंच भी साझा किया।

Back to top button