निर्भया कांड के चारों दोषियों को तत्काल फांसी देने के लिए दायर याचिका SC ने की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड के दोषियों की मौत की सजा पर तत्काल अमल करने का निर्देश देने के लिए दायर याचिका गुरुवार को खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की,‘आप चाहते हैं कि हम दिल्ली में घूमें और इन लोगों को फांसी दें?’ निर्भया कांड के चारों दोषियों को तत्काल फांसी देने के लिए दायर याचिका SC ने की खारिज

न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव की जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा,‘यह किस तरह का अनुरोध आप कर रहे हैं? आप न्यायालय को हास्यास्पद बना रहे हैं.’

दक्षिण दिल्ली में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात एक चलती बस में छह व्यक्तियों ने 23 वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया था और गंभीर रूप से घायल कर उसे बस से बाहर, सड़क पर फेंक दिया था. इस छात्रा की 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के एक अस्पताल में मृत्यु हो गई थी. 

इस अपराध के सिलसिले में गिरफ्तार आरोपियों में से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य आरोपी किशोर था जिसे अधिकतम तीन साल की कैद हुई थी.

शीर्ष अदालत ने नौ जुलाई को तीन दोषियों मुकेश, पवन गुप्ता और विनय शर्मा की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिनमें उन्होंने मौत की सजा के 2017 के उसके फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था. चौथे दोषी अक्षय कुमार सिंह ने शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की है. दोषियों को दिल्ली उच्च न्यायालय तथा निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी.

अदालत में क्या हुआ?
इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि यद्यपि बलात्कार एवं हत्या के अपराध के लिए मौत की सजा का प्रावधान है लेकिन ऐसे दोषियों की सजा पर अमल में विलंब की वजह से यह भय पैदा करने का काम नहीं कर रहा है.

इस पर पीठ ने सवाल किया,‘क्या मौत की सजा भय पैदा कर रही है? कृपया इस तरह के मामले दायर मत कीजिये अन्यथा हम रजिस्ट्री से कहेंगे कि इन्हें स्वीकार नहीं करे.’ तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज किए हुये साढ़े चार महीने से भी अधिक समय हो गया है लेकिन अभी तक उनकी सजा पर अमल नहीं किया गया है.

क्या कहा गया था याचिक में?
याचिका में कहा गया था कि बलात्कार एवं हत्या के मामलों में दोषियों की किस्मत का फैसला निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक आठ महीने के भीतर किया जाना चाहिए. याचिका में कहा गया था कि मौत की सजा के फैसले पर अमल में इस तरह का विलंब गलत परंपरा के रूप में काम करता है और इसकी वजह से बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि हो रही है.

याचिका में बलात्कार और हत्या जैसे मामलों में दोषी की मौत की सजा के फैसलों पर तेजी से अमल के लिये एक समयबद्ध दिशानिर्देश बनाने का भी अनुरोध किया गया था.

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