‘नारंगी शकरकंद’ बचा सकता है बच्चों को कुपोषण से

गोरखपुर और संत कबीर नगर जिले के करीब 50 किसान नारंगी शकरकंद की पैदावार कर रहे हैं. ताकि दोनों जिलों के बच्चों में कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सके. नारंगी शकरकंद (ओएफएसपी) का गूदा नारंगी रंग का होता है. इसमें विटामिन-ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.  इसे जैविक तौर पर पोषण (बायो-फोर्टिफाइड) बढ़ाने की तकनीक से विकसित किया गया है. नारंगी शकरकंद उगाने का विचार गोरखपुर के मूल निवासी रामचेत चौधरी का है. वह एक सेवानिवृत्त कृषि विज्ञानी हैं. वह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एंव कृषि संगठन के साथ युगांडा में 2006 से 2012 तक एक तकनीकी सहायक विशेषज्ञ के तौर पर काम कर चुके हैं.'नारंगी शकरकंद' बचा सकता है बच्चों को कुपोषण से

चौधरी एक गैर-सरकारी संगठन के माध्यम लोगों के बीच नारंगी शकरकंद को लेकर जागरुकता फैला रहे हैं.  साथ स्कूलों में बच्चों के भोजन में इस सुपरफुड को शामिल करने की अपील भी कर रहे हैं. चौधरी ने रविवार को को बताया, ‘‘संयुक्त राष्ट्र के साथ युगांडा में काम करते वक्त मैंने नारंगी शकरकंद के बारे में जाना.

यह अफ्रीकी देशों की एक कम लागत वाली फसल है और विटामिन-ए और बीटा का मुख्य स्रोत है.  इसमें गाजर, पपीता इत्यादि से 150 प्रतिशत अधिक विटामिन-ए होता है.  इसलिए इसे सुपरफूड के तौर पर जाना जाता है. ’’ उन्होंने कहा कि यह पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुपोषण से लड़ने में मददगार हो सकता है.

अफ्रीका के 24 देशों में यह कुपोषण से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसके परिणाम 100 प्रतिशत आए हैं. चौधरी ने कहा, ‘‘ 2015-16 में हमने गोरखपुर और संत कबीर नगर में एक सर्वेक्षण किया था. तीन से 12 वर्ष की आयु के 51 प्रतिशत बच्चों में हमने विटामिन-ए की कमी की वजह से आंखों की समस्या पायी.

हमने 2013 में कुछ किसानों की मदद से नारंगी शकरकंद का उत्पादन शुरू किया और 2014 से 2017 में टाटा ट्रस्ट ने हमें वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी. ’’ अभी नारंगी शकरकंद की लागत 30 रुपये प्रति किलोग्राम है. लेकिन यह अभी केवल राम नगर करजहां गांव के पास स्थानीय बाजार में ही उपलब्ध है. गैर-सरकारी संगठन से प्रशिक्षित कुछ महिलाएं इससे 18 तरह के उत्पाद बना रही हैं लेकिन यह अभी भी शहर के बड़े दुकानों में नहीं पहुंच सका है

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