नहायृ-खाय के साथ चार दिवसीय महापर्व छठ आज से शुरू, तट पर लगी श्रद्धालुओं की काफी भीड़…..

लोक आस्था का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान गुरुवार को नहाय-खाय के साथ आरंभ हो गया है। अनुष्ठान की शुरुआत शरीर की शुद्धि प्रक्रिया यानी नहाय-खाय के साथ 31 अक्टूबर की सुबह से शुरू हो चुकी है। आज सुबह- सुबह घर की साफ-सफाई कर पवित्र किया जाएगा।

व्रती आम के दातून से दांतों की सफाई कर, गंगा स्नान करने के बाद नहाय-खाय का प्रसाद,  पवित्र तरीके से कद्दू की सब्जी, चने की दाल और चावल बनाएंगी। व्रती के प्रसाद का सेवन करने के बाद व्रत की शुरुआत हो जाएगी। व्रती लोगों के भोजन करने के बाद घर के बाकी लोग आज भोजन करते हैं।

छठ को लेकर पटना के एनआइटी घाट, काली घाट दरभंगा हाउस, दीघा घाट, बांस घाट सहित प्रमुखों घाटों को चुस्त-दुरुस्त कर दिया गया है। बुधवार को बाजार में भी चहल-पहल दिखाई पड़ी। व्रती अपने परिवार के साथ बाजार में पूजन सामग्री की खरीदारी करते नजर आए। नहाय-खाय का प्रसाद बनाने के लिए गंगा घाटों से गंगाजल लेकर घर जाते लोग भी दिखे। पंडित राकेश झा ने कहा कि सौम्य एवं स्थिर योग में चार दिवसीय अनुष्ठान संपन्न होगा।

घाट से लेकर सड़क तक रोशनी से है सराबोर  

छठ को लेकर घाट से लेकर सड़क सभी रोशनी से सराबोर हैं। बुधवार की शाम रंगीन और दुधिया रोशनी से जगमग करतीं सड़कों और घाटों की भव्यता देखते बन रही थी। विभिन्न पूजा समितियों की ओर से बेहतर पंडाल बनाए गए हैं। वही घाट से लेकर सड़कों तक गूंज रहे छठी मइया के गीत शहर को छठमय बना रहे हैं।

नहाय-खाय के बाद बनेगा खरना का प्रसाद 

गुरुवार को नहाय-खाय के बाद व्रती 24 घंटे का निर्जला उपवास करेंगे। इसके बाद व्रती शुक्रवार को खरना का प्रसाद बनाएंगी। व्रती पूरे दिन उपवास रहकर शाम में गंगा अथवा अन्य नदी-तालाब में स्नान कर खरना का प्रसाद खीर और रोटी बनाएंगी।

खरना के प्रसाद में गंगाजल, दूध, गुड़, अरवा चावल का प्रयोग कर मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी से प्रसाद बनाने के बाद भगवान सूर्य को अर्पित करने के बाद ग्रहण करेंगी।

चार दिवसीय अनुष्ठान के मौके पर ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग

पंडित राकेश झा ने कहा कि कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को रवियोग में गुरुवार को नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो जाएगा। वही शुक्रवार को व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला व्रत कर तीन नवंबर को उदीयमान सूर्य को अघ्र्य देेने के साथ व्रत का समापन करेंगी।

शनिवार दो नवंबर को व्रती सायंकालीन अघ्र्य त्रिपुष्कर योग में देंगी। वही तीन नवंबर रविवार को उदीयमान सूर्य को सर्वार्थ-सिद्धि योग में भगवान सूर्य को अघ्र्य देकर व्रत का समापन करेंगी। पंडित झा ने पुराणों के हवाले से बताया कि सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है।

स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत किया था। राजा प्रियव्रत कुष्ठ रोग से प्रभावित थे। भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए छठ का व्रत किया था।

नहाय-खाय एवं खरना के प्रसाद का बड़ा महत्व 

छठ महापर्व के प्रथम दिन नहाय-खाय के दिन व्रती लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चाशनी का सेवन करती हैं। इसका खास महत्व है। वही खरना के प्रसाद में ईख का कच्चा रस और गुड़ के सेवन किया जाता है।

ऐसी लोक मान्यता है कि प्रसाद में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के सेवन से त्वचा रोग एवं आंखों की पीड़ा समाप्त होती है। तेजस्विता, निरोगिता एवं बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र में अघ्र्य देने से आरोग्यता का वरदान मिलता है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता है।

भगवान सूर्य की मानस बहन हैं षष्ठी देवी

पंडित झा की मानें ने भगवान सूर्य की मानस बहन षष्ठी देवी हैं। षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष देवता भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। ऐसे में उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। छठ महापर्व खास तौर पर शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि का पर्व है।

खरना पूजा व अर्घ्य मुहूर्त 

खरना पूजा –

शुक्रवार शाम – 5.32 बजे से 7.40 बजे तक

अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य – शनिवार शाम 5.32 बजे तक

प्रात:काल सूर्य को अघ्र्य – रविवार सुबह 6.29 बजे के बाद

व्रत में इन चीजों की है महत्ता 

सूप, डाला – अर्घ्य में नए बांस से बने सूप व डाला का प्रयोग किया जाता है। सूप को वंश की वृद्धि और वंश की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।

ईख – ईख को आरोग्यता का प्रतीक माना जाता है। लीवर के लिए ईख का रस काफी फायदेमंद माना जाता है।

ठेकुआ – आटे और गुड़ से बना ठेकुआ समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

ऋतुफल – छठ पूजा में ऋतुफल का विशेष महत्व है। व्रती मानते हैं कि सूर्यदेव को फल अर्पित करने से विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।

पष्ठी तिथि को शाम को सूर्यदेव की पूजा के लिए गंगा-यमुना के विभिन्न घाटों पर हजारों श्रद्धालु एकत्र होंगे। पर्व को लेकर घरों में खासा उत्साह है। महिलाएं छठ मइया के पारंपरिक गीतों को गाते हुए प्रसाद के लिए गेहूं को धोने, पिसाने की तैयारियों में जुट गयी हैं।

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