दोहा – गीतिका : दिन-प्रतिदिन होगा प्रखर, हिंदी का दिनमान

प्रो.विश्वम्भर शुक्ल

बिंदी मां के भाल की, राष्ट्र- धर्म, अभिमान,
अखिल विश्व में नागरी भारत की पहचान।
विविध वेश,संस्कृति अलग,बोली-बानी भिन्न,
हिंदी स्वर्णिम मेखला ,जोड़े देश महान।
हिंदी सहज, सुग्राह्य है,हिंदी विमल प्रसून,
हर कोने में देश के हिंदी का अभियान।
सौमनस्य संग एकता,बाँधे सबकी डोर,
नहीं तोड़ती ,जोड़ती हिंदी हिंदुस्तान।
जटिल ग्रंथ सारे सहज ,हिंदी का आभार,
हिंदी में सबकुछ सुलभ गीता,वेद,पुरान।
क्लिष्ट न हो शब्दावली, सरल रहे अभिव्यक्ति,
दिन -प्रतिदिन होगा प्रखर, हिंदी का दिनमान।।
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