दुल्हन की खुशी का आलम यह था की, हर कोई देखता रह गया

‘बेटियां बेटों से कम नहीं’ कहकर शहर की एक दुल्हन ने सामाजिक बंधनों में जकड़ी हुई बेटियों को अपने आजाद सपनों की मिसाल पेश की है। जहांगीराबाद इलाके में बापू कॉलोनी में निवासरत बाल्मीकि परिवार की 28 वर्षीय मनाली मेहरोलिया ने बुधवार को अपनी शादी में दूल्हे की तरह ही घोड़ी पर बारात निकाली। मनाली की खुशी का आलम यह था की वह घोड़ी पर बैठे-बैठे ही हाथ हवा में लहराते हुए नाच भी रही थी।

दुल्हन की इस बारात में परिजन, रिश्तेदारों सहित समाज के सैकड़ों लोग शामिल हुए। यह बारात विभिन्न् मार्गों से होते हुए डेढ़ किलोमीटर दूर जहांगीराबाद थाना के पास परिसर पहुंची। यहां उनके आगे-आगे दूल्हे की बारात चल रही थी और पीछे से दुल्हन की। दोनों की बारात कार्यक्रम स्थल पहुंची। जहां कुनाल चावरिया के साथ उनके विवाह की सभी रस्में पूरी की गईं।

पहले लव मैरिज की इच्छा फिर घोड़ी चढ़ने की

लड़की के पिता महेंद्र कुमार मेहरोलिया का कहना है कि मनाली चार बच्चों में इकलौती बेटी है। वह 12वीं कक्षा तक पढ़ी है। मनाली ने नगर निगम में सेवारत लड़के से लव मैरिज करने का प्रस्ताव रखा था। इस पर परिजनों ने कोई एतराज नहीं जताया। लड़की ने इससे भी बढ़कर कार्यक्रम स्थल तक घोड़ी पर बैठकर जाने की इच्छा जताई। परिजन इस पर भी सहमत हो गए। लड़के वालों ने भी कोई आपत्ति नहीं ली। उन्होंने बताया कि बुधवार को रात 9 बजे दूल्हा गाजे-बाजे के साथ दुल्हन के घर तोरण की रस्म निभाने आया था। उसके बाद बारात जहांगीराबाद थाने के पास कार्यक्रम स्थल के लिए रवाना हुई।

लोग बनाते रहे वीडियो

जब दुल्हन घोड़ी पर सवार होकर कार्यक्रम स्थल जा रही थी तो रास्ते में सभी समाजजनों ने बेटी का हौसला बढ़ाया। दुल्हन की हिम्मत को देखने के लिए लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। कुछ ने खिड़कियों से इस दृश्य को देखा। लोग इस दृश्य का वीडियो भी बनाने में मशगूल रहे।

बेटियों को बंधनों को तोड़ना होगा

लड़कियों को हमेशा मान्यताओं में बांधकर रखा जाता है। उसे बोला जाता है कि ऐसा करेगी तो समाज तुमको स्वीकार नहीं करेगा। बेटियां भी बेटों से कम नहीं हैं। उन्हें भी हर काम करने की आजादी मिलना चाहिए। लड़कियों को भी चाहिए कि वह परंपराओं में न बंधें, उसका प्रतिकार करें – मनाली मेहरोलिया, बापू नगर, जहांगीराबाद

क्या बोले परिजन

समाज की बेटी ने नई परंपरा की शुरूआत की है। लड़की को कभी छोटा-बड़ा नहीं समझना चाहिए – संतोष गोगलिया, मौसा, महू

हमारे समाज में घोड़े पर बैठने की परंपरा पहली बार शुरू हुई है। हमें विश्वास है यह मुहिम देशभर में मिसाल कायम करेगी – सूरज चांवरे, मामा, इंदौर

हमें अपनी बहन पर गर्व है। ऐसी बहन जिसने बिना संकोच के दूल्हे की तरह घोड़ी की सवारी की है। हम चाहते हैं ऐसी शेरनी हर परिवार में जन्म ले – मोनिष मेहरोलिया, लड़की का भाई

मुझे अच्छा लग रहा है। लड़कियां बड़े-बड़े मुकाम हासिल कर चुकी हैं, तो उन्हें भी बेटों की तरह हर कार्य करने की आजादी मिलना चाहिए- सुरभि गोगलिया, चचेरी बहन

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