दिल्‍ली की पूर्व CM शीला दीक्षित के निधन पर पंजाब के कपूरथला में गहरा शोक व उदासी….

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन से पंजाब मेें भी शोक है। उनका लालन-पालन कपूरथला में उनके ननिहाल में हुआ था। उनका बचपन यहीं बीता और शुरुआती पढाई-लिखाई भी यहीं हुई। उनके निधन से शोक की लहर है। कुछ समय पहले ही उनके नाना का निधन हो चुका है। शीला दीक्षित का जीवन एक दिलेर पंजाबी लड़की की अद्भूत कहानी है। पंजाब से उनका खास रिश्‍ता रहा अंतिम समय तक रहा।

कपूरथला में गुजरा था शीला दीक्षित का बचपन, ननिहाल में शोक

तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं वरिष्ठ कांग्रेस नेता शीला दीक्षित का कपूरथला से बेहद करीबी रिश्ता रहा है। शीला दीक्षित का बचपन कपूरथला में बीता था। शहर के सिविल अस्पताल के सामने परमजीत गंज स्थित ननिहाल में  उनका जन्म हुआ। शीला तीन बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनकी प्राथमिक शिक्षा कपूरथला स्थित हिंदू पुत्री पाठशाला में हुई।  अपने मामा विश्वनाथ पुरी से उन्हें बेहद प्यार व दुलार मिला। हालांकि उनकी छोटी बहन पम्मी व रमा भी मामा की चहेती थीं, लेकिन सबसे ज्यादा स्नेह शीला के साथ था।

परिजनों के साथ शीला दीक्षित।

दो साल पहले उनके मामा पुरी का निधन हो गया। दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के बाद भी शीला कपूरथला आती रहीं।  पुरी का पूरा परिवार कई सालों से दिल्ली में रह रहा है। उनका घर अब महिला केयर टेकर के हवाले है। शीला दीक्षित का बचपन का हिस्‍सा हेरीटेज सिटी कपूरथला के परमजीत गंज व शेरगढ़ में व्यतीत हुआ। 

ननिहाल में रहने के बाद वह दिल्ली चली गईं। दिल्‍ली की मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह कपूरथला को नहीं भूलीं और य‍हां आती रहीं। उनके नाना वीएन पुरी का दो साल पहले देहांत हो गया था। पुरी का सारा परिवार कई सालों से दिल्ली में रह रहा है। उनके घर अब महिला केयर टेकर के हवाले है।

शीला दीक्षित की कहानी एक ऐसी पंजाबी लड़की की  है, जिसे अपने मायके और ससुराल, दोनों जगह स्वतंत्रता मिली। जिस दौर में लड़कियों को स्कूल न भेजने की मानसिकता काम करती थी, उस दौर में उनके उदारमना पिता श्रीकृष्ण कपूर ने शीला और उनकी बहनों को पूरी आजादी दी। बचपन में हासिल इस खुलेपन ने शीला दीक्षित को एक शिक्षित और उदारवादी व्यक्तित्व में बदला, जिसकी झलक बार-बार देखने को मिलती रही है।

चाहे वह अपने नौकरशाह पति को लखनऊ से कार ड्राइव करते हुए कानपुर छोड़ने और आधी रात में वापस अकेले लौटने की दुस्साहसी घटना हो, ससुर उमाशंकर दीक्षित के राजनीतिक सहायिका की भूमिका में खरे उतरने का मामला हो या ठेठ कन्नौज से राजधानी दिल्ली तक पुरुष-वर्चस्ववादी राजनीति में अपनी स्वतंत्र पहचान कायम करने की क्षमता हो।

दिल्ली में रह रहे शीला के ममेरे भाई संदीप पुरी ने बताया कि दीदी के चले जाने से परिवार व देश को कभी न पूरी होने वाली क्षति हुई है। वह सारे परिवार व रिश्तेदारों से बहुत स्नेह से मिलती थीं। शीला की बचपन की सहेली किरन चोपड़ा ने बताया कि वह बचपन में साथ खेली हैं। जवानी से लेकर बुढ़ापे तक एक-दूसरे के बहुत करीब रही हैं। शीला की छोटी बहन पम्मी के पोते के जन्मदिन पर वे सभी करीब एक माह तक साथ रहीं। केरल के राज्यपाल रहने के दौरान सभी शीला के साथ कई जगह घूमने गए। अब उनके निधन से बड़ा दुख हुआ है।

बहनों के साथ शीला दीक्षित।

मायके व ससुराल दोनों जगह स्वतंत्रता मिली : किरन चोपड़ा
किरन चोपड़ा के मुताबिक शीला को अपने मायके और ससुराल, दोनों जगह स्वतंत्रता मिली। जिस दौर में लड़कियों को स्कूल न भेजने की मानसिकता थी उस दौर में उनके उदार मन पिता श्रीकृष्ण कपूर ने शीला और उनकी बहनों को पूरी आजादी दी। यह बहुत बड़ी बात थी। किरन ने बताया कि बचपन में हासिल इस खुलेपन ने शीला को एक शिक्षित और उदारवादी व्यक्तित्व में बदला, जिसकी झलक बाद के दौर में बार-बार मिलती है।

कपूरथला वासियों को गर्व रहेगा : अरोड़ा
रेडक्रास सोसायटी के पूर्व सचिव 90 वर्षीय एसएल अरोड़ा का कहना है कि शीला दीक्षित एक निर्भीक लीडर थीं, जिन पर कपूरथला वासियों को सदैव गर्व रहेगा। शीला के जाने से देश ने एक दृढ़ इरादे वाली नेत्री खो दी है।

परिजनों के साथ शीला दीक्षित। 

राजीव गांधी सक्रिय राजनीति में लाए
करीब 85 वर्षीय कांग्रेस नेता सुरिंदर मढिय़ा ने कहा कि शीला दीक्षित एक दिलेर महिला लीडर थीं। उमाशंकर दीक्षित की पुत्रवधू होने के कारण नेहरू खानदान से उनकी नजदीकी बनी। जवाहर लाल नेहरू ने शिक्षित महिला होने के कारण शीला को देश के लिए कुछ करने को कहा। राजीव गांधी उन्हें सक्रिय राजनीति में लाए तो सोनिया गांधी ने उन्हें दिल्ली की जिम्मेदारी दी। इन तमाम भूमिकाओं में वह खरी उतरीं। खासकर दिल्ली के विकास में शीला दीक्षित के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

कैप्‍टन अमरिंदर ने जताया शोक, कहा- एक राजनीतिक युग का अंत हुआ

इसके साथ ही पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने शीला दीक्षित के निधन पर गहरा शोक जताया है। कैप्‍टन ने कहा कि शीला दीक्षित के निधन एक राजनीतिक युग के अंत की तरह है। कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि वह शीला दीक्षित के आकस्मिक निधन पर स्तब्ध और व्यथित हैं। शीला दीक्षित शालीन राजनीतिज्ञ व बेहतरीन इंसान थीं। वह उन्‍हें व्यक्तिगत रूप से चार दशकों से जानते थे। कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि शीला दीक्षित न केवल कांग्रेस बल्कि दिल्ली के लोगों द्वारा  हमेशा याद  आएंगी।

1985 में बम बलास्ट में बाल-बाल बच गई थीं शीला दीक्षित

बटाला (गुरदासपुर)। शीला दीक्षित के निधन पर बटाला कांग्रेस के पूर्व मंत्री अश्वनी सेखड़ी व पूर्व शहरी प्रधान स्वर्ण मुंड ने जागरण के साथ उनकी कुछ यादें साझा कीं। अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि 1985 के लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित कांग्रेस की रैली संबोधित करने के लिए बटाला पहुंची थीं। रैली बटाला के लीक वाला तालाब मैदान में थी। रैली के बाद बटाला के जीटी रोड पर स्थित पैरामाउंट होटल में नेताओं के खाने का प्रबंध किया गया था।

सेखड़ी व स्‍वर्ण मुंड ने बताया कि शीला दीक्षित की कार होटल के बाहर पहुंची और वह कार से निकल कर होटल चली गईं। इसी दौरान उनकी खड़ी कार में बम ब्लास्ट हो गया। कार पूरी तरह जलकर राख हो गई। सेखड़ी ने बताया कि इस बम ब्लास्ट के पीछे खालिस्तान कमांडो फोर्स का हाथ सामने आया था। इस दौरान आसपास ठेले और रेहडिय़ों पर खड़े तीन-चार बच्चे भी घायल हो गए, जिनमें से कुछ की बाद में मौत हो गई थी। उन्होंने कहा कि पूर्व सीएम शीला दीक्षित एक दिलेर व मेहनती नेता थीं।

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