दिल्लीवासियों ने माना, अगर ये हैं तो दिल्ली है वरना दिल्ली नहीं

 देश में यूं तो बहुत से मंदिर मस्जिद हैं, जो प्राचीन और प्रसिद्ध हैं। लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी हैं। जिनके नाम से कई शहर और जिले पहचाने जाते हैं। जानकारी के अनुसार बता दें कि दिल्ली के पश्चिम में बसे महान सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह ऐसे वाली की दरगाह है। जिसने सभी को दुनिया भर में इंसानियत, भाईचारे और प्यार की सीख दी है। वहीं बता दें कि इनके बारे में कहा जाता है की इनके कहने पर 1303 में मुगल सेना ने युद्ध रोक दिया था।

वहीं बता दें कि देश में इस तरह की कई दरगाह और मजारें हैं जिनकी अपनी ही गाथा है। वहीं बता दें कि उसके बाद इनको हर धर्म के लोग मानने लगे थे। इसके साथ ही इन्हे लोग वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल कहा करते हैं। आपको बता दें की हजरत निज़ामुद्दीन, चिश्ती घराने के चौथे संत थे। वहीं इस महान संत ने 92 वर्ष की आयु में अपने प्राण त्यागे और उसी साल उनके मकबरे का निर्माण शुरू कर दिया गया था।

गौरतलब है कि दिल्ली के पश्चिम में बसे इस दरगाह के भीतर संगमरमर से बना एक छोटा चौकोर कमरा है। वहीं इस मकबरे को चारों ओर से मदर ऑफ पर्ल केनॉपी और मेहराबों से घिरा है, जो झिलमिलाती चादरों से ढकी रहती हैं। इसके साथ ही इस दरगाह में की गई कारीगरी को इस्लामिक वास्तुशैली एक बेहतरीन नमूना माना जाता है। साथ ही यहां आने वाले लोग अपने मन्नत का धागा दरगाह में बनी जालियों में बांधते हैं। बता दें कि दिल्ली के लोगों का मानना है की हजरत साहब हैं तो दिल्ली है वरना दिल्ली नहीं है। कहा जाता है की खिलजी वंश का आखिरी शासक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह ने हजरत साहब की शान में गुस्ताखी की थी तो कुछ ऐसा हुआ की उसके वंश में कोई नहीं बचा।

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