त्‍योहार, पटाखे और प्रतिबंध की बात

firecrackers_29_10_2015तीन बच्चे अपनी यह मासूम प्रार्थना लेकर सर्वोच्च न्यायालय गए थे कि दिवाली में पटाखे फोड़ने पर सीमा लगाई जाए। वे चाहते थे कि इसके लिए तीन घंटे तय कर दिए जाएं और पटाखे चलाने का स्थान भी पूर्वनिर्धारित हो। लेकिन बच्चों की अर्जी के आगे धार्मिक परंपरा के अलावा अरबों रुपए के पटाखा उद्योग के भी हित खड़े थे। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार की राय पूछी। इस पर केंद्र ने कहा कि वह दिवाली में पटाखों पर प्रतिबंध के पक्ष में नहीं है। केंद्र ने दलील दी कि पटाखे प्रदूषण का अकेला कारण नहीं हैं।

हिंदू संगठनों की तरफ से कहा गया कि दिवाली पर पटाखे चलाना सदियों से हिंदू परंपरा का हिस्सा है। इस पर रोक लगी तो उससे हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। पटाखा निर्माता कंपनियों ने कहा कि ऐसी पाबंदी का पटाखा उद्योग पर बुरा असर होगा। उसकी तरफ से ध्यान दिलाया गया कि 1000 करोड़ रुपए के सालाना कारोबार वाले पटाखा उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से तीन लाख और परोक्ष रूप से 10 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट को इन सभी बातों का खयाल रखना था। फिर उसे कानूनी स्थिति पर भी ध्यान देना था। नतीजतन, प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस अरुण मिश्र की खंडपीठ ने कहा – ‘ऐसे निर्देश जारी करना संभव नहीं है, जिन्हें लागू नहीं किया जा सके। अगर कोई नागरिक अपने निवास के बाहर पटाखा फोड़ना चाहे तो वह कह सकता है कि ‘यह मेरा अधिकार है”। हम लोगों से नहीं कह सकते कि मैदान में जाकर पटाखा चलाओ।”

इससे सार्वजनिक हित में कोर्ट गए बच्चों को मायूसी जरूर हुई होगी, लेकिन उनकी उम्मीद अभी टूटी नहीं है। इसलिए कि खंडपीठ ने याचिका खारिज नहीं की। बल्कि कहा कि वह अगले साल फरवरी में पटाखा चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध की गुजारिश पर सुनवाई शुरू करेगा। इसके अलावा कोर्ट ने दोहराया कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच पटाखा चलाने पर पहले से लगी न्यायिक रोक आगे भी जारी रहेगी। यानी अदालत ने जल्दबाजी में कोई आदेश देने से इनकार किया, मगर मामले को अभी खुला रखा है। साथ ही खंडपीठ ने सरकार से पटाखों के दुष्प्रभाव के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए प्रभावी अभियान चलाने को कहा और इस पर नाखुशी जताई कि अब तक ऐसा नहीं किया गया है।

तो सर्वोच्च न्यायालय की सहानुभूति किस पक्ष के साथ थी, यह साफ है। लेकिन उसने ऐसा आदेश न देकर ठीक ही किया, जिससे समाज के एक हिस्से में नाराजगी पैदा होती। बहरहाल, उसने अब गेंद सरकार तथा आमजन के पाले में डाल दी है। सरकार को पटाखों के खिलाफ असरदार मुहिम तुरंत शुरू करनी चहिए। साथ ही अब यह आम नागरिकों का भी दायित्व है कि वे अपनी तथा पर्यावरण की फिक्र करें। इसके साथ-साथ उन मासूम चिंताओं का भी खयाल करें, जिनके लिए तीन बच्चों ने इतनी जद्दोजहद की है।

 
 
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