…तो इस वजह से जगदेव बाबू के नाम से जुड़ना चाहता है बिहार का हर राजनीतिक दल

‘बिहार का लेनिन’ कहे जाने वाले जगदेव प्रसाद एक बार फिर बिहार के राजनीतिक गलियारों में सुर्खियों में है. बीते 2 फरवरी को उनकी जयंती के बाद से अब तक हर दल ने उनका नाम लिया है और खुद को उनसे जोड़ने की कोशिश की है. शुक्रवार को सीएम नीतीश कुमार ने जगदेव बाबू की प्रतिमा का अनावरण किया....तो इस वजह से जगदेव बाबू के नाम से जुड़ना चाहता है बिहार का हर राजनीतिक दल

इसी कार्यक्रम में जगदेव बाबू के बेटे नागमणि ने सीएम नीतीश की तारीफ की तो आरएलएसपी ने उन्हें पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटा दिया.

जबकि इससे पहले 7 फरवरी को आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने आरोप लगाया कि 4 मार्च को आक्रोश मार्च के दौरान उन्हें जगदेव बाबू की तरह मारने की प्लानिंग की गई थी.

इसी तरह 2 फरवरी को तेजस्वी यादव ने खुद को जगदेव बाबू का फॉलोअर बताते हुए सामाजिक परिवर्तन का नायक बनने का एलान किया. इसके बाद वे ‘आरक्षण बढ़ाओ-बेरोजगारी हटाओ’ यात्रा पर निकले हैं. लालू प्रसाद यादव भी जगदेव बाबू का नाम लेकर अपनी राजनीति चमकाते रहे हैं.

जाहिर है उनकी मृत्यु के साढ़े चार दशक के बाद भी उनकी बिहार की राजनीति में इतनी अहमियत अब भी है कि उनसे हर दल जुड़ना चाहता है. उनका नाम लेकर राजनीति करना चाहता है. आइये हम जानते हैं कि आखिर ‘कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला’ की बात करने वाले जगदेव बाबू कौन थे.

दस का शासन नब्बे पर,

नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.

सौ में नब्बे शोषित है,

नब्बे भाग हमारा है.

धन-धरती और राजपाट में,

नब्बे भाग हमारा है.

जगदेव बाबू के गांव में दीवारों पर लिखे उनका नारा

जगदेव बाबू ने जब 1967 शोषित दल नाम से नयी पार्टी बनाई तो उनका यह नारा बहुत प्रचलित हुआ था. उनके नारो से लोगों में एक नया ही जोश उत्पन्न होता था. एक जन नेता होने की वजह से बाबू जगदेव की जनसभाओं में लोगो का हुजूम उमड़ पड़ता था.

2 फरवरी 1922 को बोध गया के कुर्था प्रखंड के कुरहारी गांव में जगदेव बाबू का जन्म हुआ था. साधारण परिवार में जन्मे जगदेव बाबू बचपन से विद्रोही स्वभाव के थे. स्कूल जीवन से लेकर सामाजिक जीवन में इन्होंने कई विद्रोहात्मक कार्य किए.

वे बचपन से ही ज्योतिबा फूले, पेरियार साहेब, डा. आंबेडकर और महामानववादी रामस्वरूप वर्मा जैसी शख्सियतों के विचारों से प्रभावित थे. बाबू जगदेव बचपन से ही विद्रोही स्वभाव व समता के पक्षधर रहे थे.

जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष. नशा उन्मूलन, सामंतवादी व्यवस्था का विरोध और भूदान आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले जगदेव बाबू को कालांतर में बिहार की जनता इन्हें ‘बिहार के लेनिन’ के नाम से बुलाने लगी.

1967 में जगदेव बाबू ने संसोपा (संयुक्त समाजवादी दल) उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की. उनकी और कर्पूरी ठाकुर की सूझबूझ से पहली बार बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार का गठन किया गया.

संसोपा पार्टी की नीतियों को लेकर जगदेव बाबू की लोहिया से अनबन हुई और ‘कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला’ की स्थिति को देखकर पार्टी छोड़ दी. 25 अगस्त 1967 को उन्होंने शोषित दल नाम से नयी पार्टी बनाई.

1970 के दशक में जब जातिवादी व्यवस्था का विरोध हुआ तो इसी समय प्रदेश में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में विशाल छात्र आंदोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा का सूत्रपात हुआ.

हालांकि जगदेव बाबू ने छात्र आंदोलन के इस स्वरुप को स्वीकृति नहीं दी. वे इसे जन-आंदोलव का रूप देने के लिए मई 1974 को 6 सूत्री मांगो को लेकर पूरे बिहार में जन सभाएं करने लगे और सरकार पर दबाव डालने लगे.

सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, जिससे 5 सितम्बर 1974 से राज्यव्यापी सत्याग्रह शुरू करने की योजना बनायी गई. 5 सितम्बर 1974 को जगदेव बाबू हजारों की संख्या में शोषित समाज का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे.

जगदेव बाबू के नाम पर जारी डाक टिकट

गया के कुर्था में तैनात डीएसपी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया. तभी पुलिस ने अचानक हमला बोल दिया. लेकिन जगदेव बाबू चट्टान की तरह जमे रहे और अपना भाषण जरी रखा.

पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी. गोली सीधे उनके गर्दन में जा घुसी. साथ के लोगों ने उन्हें बचाने का प्रयास किया लेकिन पुलिस उन्हें घसीटते हुए थाने ले गई. उन्होंने अपनी सांस थाने में ही ली.

पुलिस प्रशासन ने उनके मृत शरीर को गायब करना चाहा लेकिन भारी जन-दबाव के चलते उनके शव को 6 सितम्बर को पटना लाया गया, उनकी अंतिम शवयात्रा में देश के कोने-कोने से लाखों-लाखों लोग पहुंचे. देश में आज इनको ‘भारत का लेनिन’ इसी वजह से कहा जाता है जिन्होंने आज़ाद भारत में शोषितो के हक़ के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी.

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