ट्रंप की गलतियों से पीएम मोदी को ‘मेक इन इंडिया’ के लिए लेनी चाहिए ये बड़ी सीख

मेक इन इंडिया और मेक इन अमेरिका दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कोशिश है जिसके जरिए वह खुद को ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाते हुए अपने-अपने देश में रोजगार के बड़े संसाधन पैदा करने की है.

ट्रंप की गलतियों से पीएम मोदी को 'मेक इन इंडिया' के लिए लेनी चाहिए ये बड़ी सीख

बीते 9 महीनों के दौरान अमेरिका में यह कोशिश अब इसलिए फेल कही जा रही है क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मेक इन अमेरिका के लिए बनी बिजनेस काउंसिल को भंग करना पड़ा. वहीं भारत को मेक इन इंडिया की राह पर आगे बढ़ने के लिए कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. लिहाजा, जरूरत है कि भारत को अमेरिका की विफलता से सबक लेते हुए अपने मेक इन इंडिया कार्यक्रम को विफल होने से बचाने का प्रयास करना चाहिए.

क्यों चाहिए मेक इन इंडिया?

केन्द्र सरकार की फ्लैगशिप योजना है जिसके तहत देश को ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाते हुए रोजगार के बड़े संसाधन पैदा करना है. इस परियोजना को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सत्ता की कमान संभालने के बाद शुरू की और बीते तीन साल से इसे किकस्टार्ट देने की कोशिश की जा रही है. इस योजना के तहत देश में ऐसे प्रोडक्ट्स का उत्पादन करना है जिसकी खपत पूरी दुनिया में हो सके. इसका फायदा देश में कारोबारी गतिविधियां तेज करने के साथ-साथ रोजगार के बड़े अवसर पैदा करना है.

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क्यों विफल हो गया मेक इन अमेरिका?

मेक इन इंडिया की तर्ज पर दिसंबर 2016 में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी मेक इन अमेरिका की शुरुआत की. ट्रंप की योजना का मकसद भी अमेरिका में नए रोजगार पैदा करने की थी. इसके लिए अमेरिका में सत्ता की कमान संभालते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने देश की टॉप कंपनियो के प्रमुखों को शामिल करते हुए व्हाइट हाउस में बिजनेस एडवाइजरी काउंसिल गठित की. लेकिन महज 9 महीने में मजबूर होकर ट्रंप को इस काउंसिल को भंग करना पड़ा और यह मानने पर मजबूर होना पड़ा कि मेक इन अमेरिका कारोबार के फायदे का सौदा नहीं है.

दरअसल मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में कीमत कम करने के लिए बीते कई दशकों से अमेरिका ने दुनिया के दूसरे देशों में अपनी फैक्ट्रियां लगाई है. इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए मैन्यूफैक्चरिंग की लागत कम हुई और उनका मुनाफा बढ़ा. लेकिन इसके चलते राजगार के क्षेत्र में बड़े अवसर अमेरिका से बाहर चले गए. अब ट्रंप प्रशासन की रोजगार वापस लाने की कोशिशों के सामने अमेरिकी कंपनियों के सामने चुनौती उत्पाद की प्रोडक्ट बढ़ने और मुनाफा सिमटने की है.

भारत को अमेरिका से मिली ये सीख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्यमिता को प्रोत्साहन देने की मुहिमों पर राय जानने के लिए आज 212 युवा उद्यमियों से मुलाकात कर रहे हैं. नीति आयोग द्वारा आयोजित कार्यक्रम चैंपियंस ऑफ चेंज के तहत युवा उद्यमियों से छह मुद्दों पर विचार विमर्श किया जाएगा. ये छह मुद्दे न्यू इंडिया 2022, डिजिटल इंडिया, इमर्जिंग अ सस्टेनेबल टुमॉरो, हेल्थ एंड न्यूट्रिशन, एजुकेशन एंड स्किल डेवलपमेंट और सॉफ्ट पावर हैं. प्रधानमंत्री की यह कवायद देश में मेक इन इंडिया को सफल बनाने के लिए की जा रही है. लेकिन अमेरिका में मैन्यूफैक्चरिंग पर जोर देने की विफलता से सरकार को यह समझने की जरूरत है कि उसे देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति का जायजा लेते हुए ही इस दिशा में नीति बनाने की है. महज चीन की तर्ज पर मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की कोशिश करने से पूरी योजना की विफलता लगभग तय हैं.

दरअसल, अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दुनिया के लिए मैन्यूफैक्चरिंग हब का तमगा ले चुका था. इस दौरान अमेरिका ने अपनी कंपनियों को ऐसे उत्पादों में सर्वोपरि बनाया जिसकी मांग दुनिया के हर कोने में थी. इस दौर के बाद अमेरिकी कंपनियों को अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए मैन्यूफैक्चरिंग को दुनिया के अलग-अलग कोनों में स्थापित करने की जरूरत पड़ी. इस कदम से जहां अमेरिकी कंपनियों ने मैन्यूफैक्चरिंग लागत को कम किया और उत्पादों के ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन की लागत को कम करते हुए अपने मुनाफे को और बढ़ा लिया. लेकिन इस दौरान भी अमेरिकी कंपनियों ने टेक्नोलॉजिकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर लगातार जोर दिया और मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में अग्रणी बने रहे.

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