टॉप हिल स्टेशन लिस्ट में शामिल है ये जगह, ये बातें बनाती है इसे खूबसूरत

बादलों के ऊपर चलना, उससे होकर गुजरना कैसा लगता है? यदि आप इस एहसास को जीना चाहते हैं तो चले आइए देहरादून के पास स्थित मसूरी। उत्तराखंड के हिल स्टेशन मसूरी के दृश्य ऐसे हैं मानो किसी चित्रकार ने अपनी सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग की रचना की हो। इसे यूं ही नहीं कहा जाता है ‘पहाड़ों की रानी’। आज चलते हैं मसूरी के दिलकश सफर पर..टॉप हिल स्टेशन लिस्ट में शामिल है ये जगह, ये बातें बनाती है इसे खूबसूरत

हिमालय पर्वतमाला की शिवालिक श्रेणी में स्थित है देश के सर्वश्रेष्ठ हिल स्टेशन में शुमार मसूरी। बुरांस और चीड़ के वृक्षों की झूमती सर्पीली सड़क पर तन को छूती चंचल हवा मन को जो शीतलता देती है वैसा एहसास शायद ही कहीं और मिले। मानसून के शुरुआती दिनों में यहां फिसलन बढ़ने से परेशानी हो सकती है, लेकिन अगस्त माह से यह मुश्किल भी खत्म हो जाती है और पहाड़ों की यह रानी एक अनोखी दमक से भर जाती है। हरे लिबास में सजी पहाड़ों की रानी के इस रंग को देखकर आप दिल थामकर कह उठेंगे-स्वर्ग के कितने रूप हैं देश में!

जॉर्ज एवरेस्ट रहते थे यहीं

समुद्रतल से 6600 फीट की ऊंचाई पर बसा मसूरी का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। ब्रिटिशराज में अंग्रेजों ने ही इसकी खोज की थी। इसका श्रेय अंग्रेज अधिकारी कैप्टन यंग को जाता है। उन्होंने मसूरी की खोज वर्ष 1825 में की थी। मसूरी के इतिहास के जानकार जयप्रकाश भारद्वाज बताते हैं कि कैप्टन यंग को यहां की आबोहवा इंग्लैंड जैसी लगी और उन्होंने यहां एक बंगले का निर्माण कराया। इसके बाद वर्ष 1827 में मसूरी में पहला सैनिटोरियम बना। आज यह इलाका लंढौर कैंट के नाम से जाना जाता है। कुछ साल बाद ब्रिटिशकालीन भारत के पहले सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट ने भी मसूरी को अपना घर बनाया। उल्लेखनीय है कि इन्हीं के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (हिमालय) है।

मॉल रोड की रौनकें

अंग्रेजों द्वारा बसाई गई इस नगरी में हर इमारत पर ब्रिटिश छाप नजर आती है। आप इसे यहां हर कहीं देख सकते हैं। मॉल रोड की रौनक तब ऐसी थी कि यहां केवल अंग्रेज अफसरों को ही टहलने की इजाजत थी। उस जमाने में यहां भारतीयों का प्रवेश वर्जित था। इतिहासकार भारद्वाज बताते हैं, ‘स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता प. मोती लाल नेहरू अक्सर मसूरी आते थे। उन्होंने मॉल रोड पर भारतीयों के प्रवेश पर प्रतिबंध को तोड़ यहां सैर की थी।’ इसके अलावा पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी मसूरी की नैसर्गिक छटा खूब भाती थी। आज आप मॉल रोड को देखेंगे तो यहां अंग्रेजों की पुरानी यादें तो मौजूद हैं ही, इसकी रौनक में आज भी कोई कमी नहीं आई है। यहां की नाइट लाइफ का नजारा और बेहतरीन होता है। आधुनिकता के रंग में नहाये इस रोड की सैर का आनंद ही कुछ और है।

गनहिल रोपवे का रोमांच

मसूरी आए और गन हिल नहीं देखा तो क्या देखा। चोटी पर स्थित इस स्थान से हिमालय की बंदरपूंछ, श्रीकांता, पिठवाड़ा और गंगोत्री हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां नजर आती हैं।

यहां से मसूरी और दून (देहरादून) का विहंगम दृश्य भी इसका खास आकर्षण है। ब्रिटिश काल में इस चोटी पर तोप से गोले दागे जाते था। दोपहर ठीक 12 बजे दागे जाने वाले गोले की आवाज से लोग अपनी घड़ी का मिलान करते थे। इसलिए चोटी का नाम ही पड़ गया गन हिल। यहां तक पहुंचने के लिए रोपवे का रोमांच भी लिया जा सकता है। चार सौ मीटर लंबे रोपवे से चोटी तक पहुंचने में करीब 20 मिनट लगते हैं। इस चोटी पर चढ़ते हुए आप ट्रैकिंग का लुत्फ भी उठा सकते हैं। ट्रैकिंग के लिए सामान यहां किराये पर उपलब्ध हो जाता है।

गर्व है मसूरी का नागरिक हूं

यहां के कुदरती नजारे और अद्भुत शांति मुझे साहित्य सृजन के लिए प्रेरित करती है। हालांकि आज यहां की जनसंख्या में काफी बढोत्तरी हो चुकी है, लेकिन मसूरी तो मसूरी है। मुझे गर्व है कि मैं मसूरी का नागरिक हूं।

(रस्किन बांड, जाने-माने लेखक)

लाल बहादुर शास्त्री अकादमी

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के लिए चुने गए प्रोबेशनर्स को प्रशिक्षण देने के लिए बनी यह अकादमी अपने आप में खास है। हालांकि पर्यटक यहां प्रवेश नहीं कर सकते, लेकिन यह मसूरी की शान है।

कथाकार और कलाकारों की पसंद

मसूरी लेखकों और कलाकारों की पसंद रही है। प्रसिद्ध अभिनेता दिवंगत टॉम आल्टर ने तो यहीं से स्कूली दिनों में थियेटर की शुरुआत की थी। विश्र्व प्रसिद्ध साहित्यकार रस्किन बांड की रचना का पूरा संसार मसूरी में ही बसता है। मसूरी लंबे समय से बॉलीवुड की पसंद रहा है। नब्बे के दशक में अनिल शर्मा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘फरिश्ते’ के एक गाने ‘तेरे बिन जग लगता है सूना’ की शूटिंग कैंप्टीफॉल की सुंदर वादियों में हुई थी। फिल्म ‘फरिश्ते’ के इस गाने की शूटिंग के लिए अभिनेत्री श्रीदेवी और अभिनेता विनोद खन्ना यहां आए थे। तब अभिनेत्री श्रीदेवी ने मसूरी की काफी तारीफ की थी। पिछले कुछ सालों की बात करें तो एक बार फिर बॉलीवुड ने उत्तराखंड का रुख करना शुरू कर दिया है और अधिकांश शूटिंग देहरादून व मसूरी की खूबसूरत लोकेशंस में हो रही हैं। अभी पिछले दो सालों में ही अभिनेता अजय देवगन ने फिल्म ‘शिवॉय’ की शूटिंग के लिए मसूरी को चुना। इसके बाद अनिल शर्मा की फिल्म ‘जीनियस’ के कुछ दृश्य भी यहीं फिल्माय गए। फिल्म ‘परमाणु’ की अधिकांश शूटिंग तो राजस्थान में हुई है, लेकिन फिल्म में दर्शाए गए अभिनेता जॉन अब्राहम के घर की शूटिंग मसूरी में हुई। वहीं धर्मा प्रोडेक्शन की सुपर हिट सीरीज ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ की शूटिंग के बाद ही उसका दूसरा पार्ट ‘स्टूडेंट ऑफ द इयर-2’  की शूटिंग भी मसूरी और देहरादून की वादियों में की गई। मसूरी के पास ही स्थित भट्टा फाल में अभिनेता टाइगर श्राफ के घर का सेट बनाया गया था। फिल्म ‘बत्तीगुल, मीटर चालू की शूटिंग मसूरी में भी हुई। अधिकांश शूटिंग मॉल रोड, भट्टा फॉल, गन हिल, कंपनी गार्डन, सिस्टर बाजार, झड़ी पानी, लंढौर, चार दुकान आदि लोकेशन में की जाती है।

कैमल बैक रोड

तीन किलोमीटर लंबा यह रोड कुलरी बाजार से लाइब्रेरी बाजार तक है। इस सड़क पर पैदल चलने का अपना ही आनंद है। यहां से हिमालय में सूर्यास्त का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है। दूर से यह इलाका ऊंट के कूबड़ जैसा नजर आता है।

1959 में आए थे दलाई लामा

चीन अधिकृत तिब्बत से निर्वासित होने के बाद वर्ष 1959 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा पहले पहल मसूरी ही आए थे। यहीं तिब्बत की पहली निर्वासित सरकार बनी थी। बाद में वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के पास मैक्लोडगंज स्थानांतरित हो गए। 

ऐतिहासिक स्कूली इमारतें

ब्रिटिश काल में बने स्कूल भी मसूरी के प्रमुख आकर्षण में से हैं। रोमन कैथोलिक शैली में बने सेंट जॉर्ज स्कूल की मशहूर इमारत पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेती है। इसकी स्थापना वर्ष 1853 में की गई थी। इसके अलावा, 1850 में स्थापित वुडस्टॉक भी खास है। इसकी स्थापना अंग्रेज अफसरों की पत्?नियों के एक समूह ने की थी।

ग्लोगी पावर हाउस

यह उत्तर भारत के सबसे पुराने पावर प्रोजक्ट में से एक है। अक्टूबर 1907 में इस प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी गई और इसके निर्माण में पांच वर्ष का समय लगा। दिसंबर 1912 में इससे बिजली आपूर्ति शुरू की गई। मसूरी देश के उन गिने-चुने शहरों में शामिल है, जो उस वक्त पहली बार बिजली से रोशन हुए। आज भी यह पावर हाउस 5.4 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन कर रहा है।

कंपनी गार्डन की सैर

वर्ष 1842 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ.एच फाकनार ने मसूरी में एक बगीचे की स्थापना की थी। बगीचे में विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधे लगाए। तब ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम पर इसका नाम रखा गया कंपनी गार्डन। अब इसे म्यूनिसिपल गार्डन या बॉटनिकल गार्डन के नाम से जाना जाता है।

बन आमलेट और दाल बड़ा

यूं तो मसूरी में उत्तर और दक्षिण भारतीय व्यंजन आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन लंढौर कैंट स्थित चार दुकान की बात ही कुछ और है। सचिन तेंदुलकर जब भी मसूरी आते हैं, इस दुकान का बना आमलेट खाना नहीं भूलते। सचिन ही क्यों, बालीवुड सितारे अरशद वारसी को यहां की चाय भाती है । चार दुकान के मालिक अनिल प्रकाश व विपिन प्रकाश भाई हैं। वे बताते हैं, यहां पर आने वाले पर्यटकों को उनकी दुकान के पराठे, मैगी, दाल पकौड़ा, बन आमलेट और पिज्जा खासे पसंद हैं।

माल रोड पर भुट्टों का स्वाद

यदि आप मसूरी आए और भुट्टे का स्वाद नहीं लिया तो फिर यात्रा का आनंद अधूरा है। मॉल रोड पर स्थान-स्थान पर आपको भुने और उबले भुट्टे मिल जाते हैं। आप चाहें तो इसे और तीखा-मसाला वाला तैयार करवाकर इसका जायका ले सकते हैं।

आसपास के आकर्षण

कैंम्पटी और भट्टा फाल

मसूरी से मात्र 15 किलोमीटर दूर कैम्पटी फाल चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा है। इस झरने की तलहटी में  तरोताजा करने वाला एहसास होता है। कहते हैं कि अंग्रेज अधिकारी अक्सर छुट्टी के दिन यहा टी-पार्टी के लिए आते थे। इसी तरह मसूरी से नौ किलोमीटर दूर देहरादून पर मार्ग पर पडऩे वाला झरना भट्टा फाल भी पर्यटकों को खूब लुभाता है।

धनोल्टी का सुकून

मसूरी से महज 30 किलोमीटर दूर देवदार के घने वनों से घिरा है धनोल्टी। यहां से हिमाच्छादित चोटियों का दृश्य मन को मोहने वाला है। यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस, वन विभाग के गेस्ट हाउस के अलावा बंबू हट्स और होटल की सुविधा भी है।

काणाताल की कैंप साइट

यदि आप कैंपिंग के शौकीन है तो मसूरी से 45 किलोमीटर दूर काणाताल आपका इंतजार कर रहा है। देवदार के वृक्षों की छांव में कॉटेज, रिजॉर्ट और हट में कुछ दिन गुजारना दिव्य एहसास से कम नहीं।

सुरकंडा देवी

मसूरी-टिहरी रोड पर मसूरी से लगभग 33 किमी. की दूरी पर है सिद्धपीठ सुरकंडा देवी का मंदिर। यह मंदिर समुद्र तल से 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस स्थान से हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

चंबा करे अचंभा

मसूरी से महज 56 किलोमीटर दूर टिहरी जिले में स्थित चंबा कस्बा अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है। फलों के बागान से गुजरती सर्पीली सड़क पर यात्रा सुकून देने के साथ ही रोमांच से भी भरपूर है। बागानों की पृष्ठभूमि से उभरता हिमालय का दृश्य किसी का भी मन मोह लेता है।

लाखामंडल

मसूरी से कैम्पटी फाल से गुजरते हएु 75 किलोमीटर दूर स्थित लाखामंडल एक पौराणिक स्थल है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां कौरवों ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने का प्रयास किया था। खोदाई में निकली मूर्तियां यहां के ऐतिहासिक महत्व का प्रमाण भी हैं।

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