ज्यादा दाम देकर मास्क खरीद रहा है अमेरिका

न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस से जंग लड़ने के कई हथियारों में शामिल मास्क की डिमांड बढ़ गई है। जाहिर है कोरोना का संक्रमण रोकने में मास्क सबसे कारगर है इसलिए इसकी जरूरत पूरी दुनिया को है। कोरोना संक्रमित देश मास्क की व्यवस्था में लगे हुए है और इस बीच दुनिया भर में कई कंपनियां मास्क बनाने में जुटी हुई है। इस बीच मास्क को लेकर यूरोप ने अमेरिका पर बड़ा आरोप लगाया।
यूरोप का आरोप है कि जिन कंपनियों के साथ उनकी मास्क खरीदने की डील हो चुकी हैं, अमेरिका उन्हें ज्यादा दाम देकर मास्क खरीद रहा है। जर्मनी और फ्रांस ने आरोप लगाया है कि अमेरिका बाजार के तय दामों से ज्यादा देने को तैयार है और कई मामलों में डील तय हो जाने के बाद भी ऑर्डर कैंसल हो रहे हैं क्योंकि अमेरिका उन्हें ले ले रहा है। कुल मिलाकर अमेरिकी पूंजीवाद का नियम संकट की इस घड़ी में भी वाजिब है, “बाजार की ताकत उसी के हाथ में है जो ज्यादा दाम देने को तैयार है।”
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दुनिया में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 11,19,000 पर पहुंच गई है। वहीं मरने वालों का आंकड़ा 58,955 हैं। दुनिया में सबसे अधिक संक्रमित मरीजों की संख्या अमरीका में है। यहां 2.76 लाख से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हैं। कोरोना से दुनियाभर में सबसे अधिक 14,681 मौतें इटली में हुईं है, उसके बाद स्पेन और अमरीका का नंबर है। ऐसे में चिकित्सीय सुविधाओं को लेकर देशों के बीच रस्साकशी चल रही है। मास्क, दस्ताने, बॉडी सूट और वेंटिलेटर जैसे जरूरी सामान के लिए सभी देशों में होड़ लगी हुई है।
वेब पोर्टल डीडब्ल्यू हिंदी के अनुसार, जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के एक सदस्य ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, “पैसे की उन्हें कोई चिंता नहीं है। वे कोई भी कीमत देने को तैयार हैं क्योंकि वे डेस्परेट हैं।” वहीं एक अन्य सूत्र का कहना है कि “अमेरिका इस वक्त निकल पड़ा है, खूब सारा पैसा लेकर।” अमेरिका निकल पड़ा है मास्क बनाने वाली कंपनियों को अच्छा दाम देकर उन्हें खरीदने के लिए।
दुनिया भर में इस समय मास्क की मांग बढ़ गई है और बाजारों में ज्यादातर मास्क चीन से ही आ रहे हैं। वहीं अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्यूरिटी (डीएचएस) ने यह बात मानी है कि अमेरिका इस सामान के लिए बाजार के तय दामों से ज्यादा दाम दे रहा है। डीडब्ल्यू हिंदी के अनुसार, अपना नाम ना बताने की शर्त पर डीएचएस के एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि अमेरिका इस खरीद को तब तक नहीं रोकेगा जब तक जरूरत से ज्यादा सामान जमा नहीं हो जाता। ऐसे में मुमकिन है कि अगस्त तक यह खरीद जारी रहेगी।
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पिछले सप्ताह से अमेरिका में संक्रमित मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ जिसके बाद से यहां सप्लाई की तुलना में डिमांड बहुत बढ़ गई है। इसलिए अमेरिका मुंहमांगी कीमत पर मास्क खरीद रहा है। इसीलिए कहा जा रहा है कि अब कॉन्ट्रैक्ट साइन करने का मतलब यह नहीं रहा कि डिलीवरी भी मिलगी।
वहीं फ्रांस का कहना है कि आखिरी पल में कनसाइनमेंट दूसरों को दिया जा रहा है। यहां तक कि माल के एयरपोर्ट तक पहुंच जाने के बाद भी यूरोपीय देश उसे हासिल नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि “एयरपोर्ट पर ही अमेरिकी तीन गुना ज्यादा दाम देने को तैयार हैं।”
फ्रांस के विदेश मंत्रालय का कहना है कि वह इसकी जांच कर रहा है लेकिन अधिकारियों को किसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं है। अभी तो यह शुरुआत है। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि कोरोना वायरस से जंग में अमेरिका आने वाला समय में जीत जाए यह जरूरी नहीं है। हाल के दिनों में हालात सुधरेंगे यह कह पाना जल्दबाजी होगा। इसलिए कोरोना से लडऩे वाले हथियार को लेकर मारामारी तय है।
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