जितने तिल आज करेंगे दान, उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग में करेंगे वास

वर्तमान में माघ का महीना चल रहा है। जो अंत्यत पुण्यदायी है। इस माह में पड़ने वाली कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को षट्त‌िला एकादशी कहा जाता है। यह पुण्यमयी दिन आज है। इस दिन किया गया त‌िल का प्रयोग पापों से मुक्ति दिलवाता है और हजारों वर्षों तक परलोक में सुखों का भागी बनाता है। मान्यता के अनुसार आज जितने तिलों का दान करेंगे उतने हजार वर्षों तक स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी सांपत्तिक स्थिति के अनुसार दान पुण्य करता है।

भगवान भी उस दान को सहर्ष स्वीकार करते हैं लेकिन जो दान दीनों और गरीबों की भलाई के लिए न किया जाए वह दान ‘सात्विक दान’ की श्रेणी में नहीं आ सकता। संसार में दान से बढ़कर श्रेष्ठ कोई कार्य नहीं। धन प्राप्ति के लिए मनुष्य प्राणों का मोह त्याग दुष्कर कठिन कार्य करता है। अपनी मान-मर्यादा भुलाकर धन कमाता है। कष्ट से कमाए धन का ही दान संसार में सर्वश्रेष्ठ है। शुद्ध अंत:करण से सुपात्र को थोड़ा दान भी अनंत सुखदाई और फलदाई है। 
दान के स्थल 
पुराणों के अनुसार, दान करते वक्त दान देने वाले का मुंह पूर्व दिशा की तरफ और दान लेने वाले का मुंह उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए। दान खास जगह देने से विशेष पुण्य फल देते हैं। घर में दिया गया दान दस गुना, गौशाला में दिया गया दान सौ गुना, तीर्थों में हजार गुना और शिवलिंग के समक्ष किया गया दान अनंतफल देता है। गंगासागर, वाराणसी, कुरुक्षेत्र, पुष्कर, तीर्थराज, प्रयाग, समुद्र के तट, नैमिशारण्य, अमरकण्टक, श्री पर्वत, महाकाल वन (उज्जैन), गोकर्ण, वेद-पर्वत दान के लिए अति पवित्र स्थल माने गए हैं।

 
दान की दक्षिणा
दान करते समय दान लेने वाले के हाथ पर जल गिराना चाहिए। दान लेने वाले को दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। पुराने जमाने में दक्षिणा सोने के रूप में दी जाती थी लेकिन अगर सोने का दान किया जा रहा हो तो उसकी दक्षिणा चांदी के रूप में दी जाती है। दक्षिणा हमेशा एक, पांच, ग्यारह, इक्कीस, इक्यावन, एक सौ एक, एक सौ इक्कीस, एक सौ इक्यावन जैसे सामर्थ्यनुसार होनी चाहिए। दक्षिणा में कभी भी अंत में शून्य नहीं होना चाहिए। जैसे 50, 100 और 500 आदि।

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