जानें भारतीय रेलवे का सफरनामा, ये रोचक बातें नहीं जानते होंगे आप

भारतीय रेल (IR) एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह 160 वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता है, जिसके 13 लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। आइए भारतीय रेलवे से जुड़ी सभी जानकारी और सफरनामा जानते हैं।

 

भारतीय रेलवे का सफरनामा

देश में पहली बार 22 दिसंबर, 1851 को रेल पटरी पर दौड़ी।
– पहली यात्री रेल 16 अप्रैल, 1853 को मुबंई से ठाणे के बीच चली।
– वर्ष 1890 में भारतीय रेलवे अधिनियम पारित किया गया।
– वर्ष 1936 में यात्री डिब्बों को वातानुकूलित बनाया गया।
– भारतीय रेलवे का शुभंकर हरी बत्ती वाली लालटेन उठाए एक हाथी (भालू गार्ड) है।
– भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण वर्ष 1950 में हुआ था।
– वर्ष 1952 में छह जोनों के साथ जोनल सिस्टम शुरू होकर वर्तमान में 17 जोन हैं।
– रेलवे में 13.1 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं।
– भारतीय रेल दुनिया में सबसे लंबे और व्यस्त नेटवर्क में से एक मानी जाती है।
– वर्ष में छह अरब से भी अधिक मुसाफिर रेल से यात्रा करते हैं।
– कन्याकुमारी और जम्मू-तवी के बीच चलने वाली हिमसागर एक्सप्रेस सबसे लंबी दूरी की रेल है। – इसका रूट 3745 किलोमीटर है।
– 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली भोपाल शताब्दी एक्सप्रेस देश की सबसे तेज रेल है।
– 1072 मीटर लंबा खड़गपुर रेलवे स्टेशन दुनिया का सबसे लंबा रेलवे प्लेटफॉर्म है।
– फेयरी क्वीन दुनिया में सबसे पुराना इंजन है, जो अभी भी दौड़ता है।
– लाइफलाइन एक्सप्रेस एक विशेष रेल है। इसे हॉस्पिटल ऑन व्हील नाम से भी जाना जाता है। इस रेल में ऑपरेशन रूम से लेकर इलाज की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
– 1974 में हुई भारतीय रेलवे की हड़ताल अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल मानी जाती है। यह हड़ताल 20 दिन चली थी। 1974 के पश्चात रेलवे में कोई हड़ताल नहीं हुई।
– वर्ष 1977 में धरोहर, पर्यटन, शिक्षा, मनोरंजन के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय रेल संग्रहालय खोला गया।
– सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल ट्रेवलर्स ने भारत की भव्य गाडियां डेक्कन ओडिसी, पैलेस ऑन व्हील्स और 100 साल पुरानी टॉय ट्रेन को विश्व की 25 सर्वश्रेष्ठ ट्रेनों की सूची में शामिल किया है।
– वर्ष 2002 में जन शताब्दी ट्रेन की शुरूआत हुई।
– वर्ष 2004 में इंटरनेट के माध्यम से आरक्षण प्रारंभ हुआ।
– वर्ष 2007 में देशभर में टेलीफोन नम्बर 139 द्वारा व्यापक सामान्य ट्रेन पूछताछ सेवा प्रारंभ की गई।

सबसे पहले कब चली रेल
– भारत में सबसे पहले मुंबई से ठाणे के बीच रेलगाड़ी चली। 16 अप्रैल 1853 को इस 35 किमी के सफर का शुभारंभ किया गया था। भाप के इंजन के साथ 14 डिब्बों की रेलगाड़ी मुंबई से ठाणे के बीच रवाना हुई थी।

कितना लंबा नेटवर्क है भारतीय रेलवे का
– भारतीय रेलवे का नेटवर्क 1.16 लाख किमी लंबा है। कोई 15 हजार रेलगाड़ियां इस नेटवर्क पर दौड़ती हैं। इस नेटवर्क पर 6 हजार से ज्यादा स्टेशन हैं। करीब 2 करोड़ लोग रोज रेल‍गाड़ियों के माध्यम से इधर से उधर आते-जाते हैं।

दुनिया का चौथा नेटवर्क 
– भारतीय रेलवे का नेटवर्क दुनिया में अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। हालंकि तकनीक के मामले में ये तीनों देश भारत से कुछ या बहुत आगे हैं, किंतु भारतीय रेलवे भी इनसे एकदम उन्नीस भी नहीं है, बीस ही है।

चीन आगे निकल गया 
– भारत में सबसे पहले रेल 1853 में दौड़ी थी, जबकि चीन में इसके 23 साल बाद यानी 1876 में। जब भारत आजाद हुआ तो भारत में रेल नेटवर्क की कुल लंबाई 53,596 किमी थी, जबकि चीन का रेल नेटवर्क सिर्फ 27,000 किमी ही था।

– आजादी के इन 65 वर्षों में भारत में केवल 10,000 किमी की या उसे कुछ ही अधिक बढ़ोतरी हो पाई है, जबकि चीन 78,000 किमी के रेल नेटवर्क के साथ भारत से काफी आगे निकल गया है तथा उसका रेल नेटवर्क भारत की तुलना में फैलता ही जा रहा है। उसने ठेठ तिब्बत तक रेल लाइन डाल दी है।

तीन तरह की ‍प‍टरियां  
भारतीय रेलवे में तीन तरह की प‍टरियां बिछी हुई हैं, ये हैं- बड़ी लाइन, छोटी लाइन तथा संकरी लाइन। इनमें से बड़ी लाइन की पटरियों का संजाल भारत के अधिकांश हिस्सों में फैला हुआ है। अधिकतर गा‍ड़ियां इसी पटरी पर चलती हैं।

– छोटी लाइन की पटरियां अब धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं। मध्यप्रदेश में संभवत: रतलाम से अकोला तक का छोटी लाइन का नेटवर्क बचा हुआ है। यह भाग भी अब शीघ्र ही बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा।

– संकरी लाइन का भी भाग मप्र में संभवत: नागपुर-छिंदवाड़ा-जबलपुर वाले भाग में ही शेष रह गया है, जो कि भविष्य में बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा। इसके बाद शायद ही कोई छोटी या संकरी लाइन मप्र में शेष रह पाएगी।

सस्ती सवारी, रेलगाड़ी हमारी  
भारतीय रेलवे दुनिया में संभवत: सबसे सस्ता रेलवे है। कोई 10 पैसे प्रति किमी की दर से रेलवे द्वारा किराया वसूला जाता है, जबकि बसों में किराया इससे करीब 10 गुना ज्यादा यानी 1 रुपए प्रति किमी के करीब है। यही कारण है कि सस्ता होने के कारण रेलगाड़ियों में काफी भीड़भाड़ रहती है। लोग डिब्बों में ठूंस-ठूंसकर भरे रहते हैं। वार-त्योहार व शादी-ब्याह तथा ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में तो किसी भी श्रेणी में जगह खाली नहीं रहती है। वेटिंग काफी लंबी हो जाती है।

तीन तरह की रेल‍गाड़ियां व स‍ुविधाएं  
– आमतौर पर जनता की सुविधा हेतु 3 तरह की रेल‍गाड़ियां चलाई जाती हैं। ये हैं – पैसेंजर, एक्सप्रेस व मेल (एक्सप्रेस)। इनमें से पैसेंजर का किराया सबसे कम होता है। एक्सप्रेस का उससे ज्यादा तथा मेल (एक्सप्रेस) का सबसे ज्यादा किराया लगता है।

– जनरल बोगी (सेकंड क्लास) का किराया सबसे कम होता है, जबकि स्लीपर में उससे ज्यादा तथा एसी का किराया सबसे अधिक लगता है।

– जनरल बोगी में साधारण-सी सुविधाएं होती हैं। स्लीपर में जनरल से थोड़ी अच्‍छी व सोने की सुविधा होती है, ज‍‍बकि एसी कोच में वातानुकूलन समेत ‘ए’ क्लास की सुविधाएं मिलती हैं।

काफी पूंजी की जरूरत 
– नई रेलवे लाइन डालने व अन्य सुविधाओं के लिए रेलवे को काफी पूंजी की जरूरत है, किंतु राजनीतिक कारणों से रेलवे का इतना मामूली किराया पिछले 8-10 वर्षों में बढ़ाया गया है कि वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है। अगर थोड़ी भी ज्यादा वृद्धि कर दी जाए तो रेलवे के पास काफी पूंजी आ सकती है और वह अपना कायाकल्प कर सकता है। किन्तु वोटों की राजनीति के चलते रेलवे को मोहरा बनाया जा रहा है, जो इसके लिए नुकसानदेह ही साबित होगा।

– इतना सब होने के बावजूद आज भी रेलगाड़ी की सवारी हम सबको खूब लुभाती है। हर कोई इसमें यात्रा करना चाहता है व चाहेगा, आखिर क्यों नहीं आरामदेह जो है।

– जिन्हें बस या अन्य साधनों से परेशानी होती है, वे इसी में बैठना पसंद करते हैं। तो फिर देर किस बात की, आप भी तैयार हो जाइए लेलगाली’ में बैठने के लिए।

– मुंबई और अमृतसर के बीच चलने वाली गोल्डन टेंपल ट्रेन 1 सितंबर को अपने 84 साल पूरे कर चुकी है। वर्ष 1928 में शुरू हुई यह ट्रेन कभी देश की सबसे लंबी और तेज गति से चलने वाली ट्रेन हुआ करती थी।

– उस समय यह पाकिस्तान के पेशावर को मुंबई से जोड़ती थी। अविभाजित हिंदुस्तान के फ्रंट से चलने वाली इस ट्रेन का नाम पहले फ्रंटियर मेल था। यह कोटा में इतनी मशहूर थी कि लोग इसकी आवाज सुनकर ही अपनी घड़ी का टाइम सेट करते थे।

– बंटवारे के बाद से यह ट्रेन मुंबई से अमृतसर के बीच में चल रही है। नाम बदलने के बावजूद कोटा में आज भी लोग इसको फ्रंटियर मेल के नाम से बुलाते हैं। इस ट्रेन से कोटा की कई यादें जुड़ी हैं।

– तब तीन टुकड़े कर दिए थे ट्रेन के
इस ट्रेन के मुख्य गाड़ी नियंत्रक रहे अब्दुल मुईद बताते हैं कि 2 मई 1974 को ऐतिहासिक रेल हड़ताल के दौरान डिब्बों के बीच के ज्वॉइंट खोलकर इस ट्रेन के कोटा में तीन टुकड़े कर दिए थे। उस समय स्टेशन पर लाठीचार्ज भी हुआ था। उस समय ड्राइवर मिस्टर विलियम इस ट्रेन को जैसे-तैसे छुड़ा कर ले गए थे।

– एक पैसे में मिलते थे चमन के अंगूर
रेलवे में रहे वरिष्ठ बाबू रामस्वरूप सिंह ने बताया कि तब इस ट्रेन में पेशावर से चमन के अंगूर आते थे, जो कोटा में कभी-कभी ही देखने को मिलते थे। यह अंगूर इतने रसीले और मीठे होते थे कि दिख जाएं तो लोग मांगने में भी संकोच नहीं करते थे।

– फर्स्ट क्लास में सलाम करते थे हैड टीटी
उस समय इस ट्रेन में फर्स्ट क्लास में सफर करने वाले का अलग ही सम्मान होता था। फर्स्ट क्लास का इतना रुतबा था कि ट्रेन के रुकने पर हैड टीटी आकर डिब्बे में सलाम मारकर सार-संभाल करते थे। भोजनालय में इतना स्वादिष्ट खाना बनता था कि शहर से लोग डबल रोटी लेने ट्रेन तक जाया करते थे।

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