जमीन के बदले जमीन 53 को, पर हकदार 7500 परिवार थे
बड़वानी/ इंदौर.नर्मदा घाटी में पुलिस की गाड़ियां घूम रही हैं। सरकारी अमला पुनर्वास के इंतजाम दिखाने में लगा है। बारिश में डूब के डर से किसानों का ध्यान फसलों से ज्यादा नई बसाहटों पर है, जो कहीं नहीं हैं। गांवों में विस्थापन और पुनर्वास को लेकर सरकार और लोग आमने-सामने हैं। जमीनें गंवाने वाले 53 परिवारों को ही जमीन मिली। जबकि करीब 7500 परिवार हकदार थे।
इनके आवेदन भी लगे। किसी भी गांव से शुरू कीजिए। मुआवजे और पुनर्वास की ऐसी ही उलझी अनगिनत कहानियां हैं।
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गुस्से की वजह
पट्टे दिए, जमीन गायब :पिछोड़ी गांव के प्रभु रालिया को नंदगांव में प्लॉट का पट्टा मिला। यहां 136 प्लॉट पहले दिए जा चुके हैं। इसके बाद के सारे प्लॉट नाले पर हैं और पट्टे के पहले यह जमीन सरकार ने अधिगृहित नहीं की है। वे अपना 148 नंबर का प्लॉट ढूंढ रहे हैं, जो मामूली बारिश में ही नाले का हिस्सा होगा। दूसरी जगह घर बनाने के लिए आवेदन लंबित है।
खेती के लिए नाव से जाइए : चिखल्दा गांव के हेमंत का घर डूब में माना। खेत को नहीं। उसे घर बनाने के लिए कई साल पहले 60 हजार रु. मिले। लेकिन टापू की शक्ल में बचे खेत के चारों तरफ पानी होगा। ऐसी मुश्किलें हर गांव में हैं। इसका हल एनवीडीए के स्थानीय अफसरों ने गांव वालों को बताया कि खेती के लिए आप नाव से जा सकते हैं।
अब 300 में से 89 को डूब में माना :पिछोड़ी गांव में 300 घर हैं। पहले ये सभी डूब में माने गए थे। सबको नए घर बनाने के लिए 10 हजार से लेकर पांच लाख रुपए तक का मुआवजा भी दिया गया। लेकिन अब नई स्टडी के आधार पर सिर्फ 89 को ही डूब में माना गया है। बाकी लोगों को सरकारी फरमान है कि वे डूब से बाहर हैं। इसलिए जहां हैं, वहीं रहें।
60 लाख का पैकेज 745 लोगों को :जिनकी 25 फीसदी से ज्यादा जमीन डूब में है, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फरवरी के आदेश के बाद 60 लाख रुपए के पैकेज का हकदार माना गया। सरकार ने इस ऊंची रकम के पैकेज खूब प्रचार किया। मगर यह मिला सिर्फ 745 लोगों को। जबकि इस दायरे में दो हजार से ज्यादा विस्थापित हैं।
ढाई हजार ये मामले: भीलखेड़ा के कैलाश अवास्या के पिता के देहांत के बाद 4.5 एकड़ जमीन पर आठ खातेदारों में मां, तीन भाई और चार बहनें हैं। मां और बहनों को कुछ नहीं मिला। ऐसे करीब ढाई हजार मामले हैं, जिनमें महिलाओं को छोड़ दिया गया।
क्या होना था, क्या किया :यह जरूरी था कि एक बसाहट को एक यूनिट मानकर पूरी एक ही जगह नए सिरे से बसाया जाए। ज्यादातर जगहों पर ऐसा नहीं हुआ। अलीराजपुर जिले के 26 विस्थापित गांवों को कहीं पुनर्वास स्थल नहीं मिला। पिछोड़ी गांव का पुनर्वास पांच अलग-अलग स्थानों पर किया गया।